ज्योतिष में नौ ग्रहों का प्रभाव पूर्ण रुप से प्रदर्शित होता है. सभी ग्रह अपने कारक स्वरुप को पूर्ण रुप से व्यक्त करते हैं. जातक के जीवन पर होने वाले प्रभाव कुण्डली में स्थित ग्रहों के प्रभाव द्वारा प्रलक्षित होते हैं. सभी ग्रह जातक के स्वास्थ्य उसके कार्यक्षमता व उसके किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं.

कुण्डली में स्थित यह नौ ग्रहों में से जब कोई भी ग्रह पीड़ित होकर लग्न, लग्नेश, षष्ठम भाव अथवा अष्टम भाव से सम्बन्ध बनाता है. तो ग्रह से संबंधित अंग रोग प्रभावित हो सकता है. क्योंकि यह भाव कुण्डली में उत्पन्न समस्याओं को दर्शाते हैं इनकी मुख्य भूमिका इन्हीं के प्रभाव से सिद्ध होती है.

ग्रह का भाव प्रभाव | Effects of Planets in Houses

प्रत्येक ग्रह के पीड़ित रहने पर या कोई ग्रह छठे स्थान का स्वामी होकर लग्न भाव या किसी अन्य भाव में कौन सी बीमारी दे सकता है. किसी भी रोगी जातक की कुंडली का विश्लेषण करते समय सबसे पहले तृतीय, छठे, व अष्टम भव में स्थित ग्रहों की शक्ति का आंकलन करना चाहिए. इन्हीं भावों के द्वारा जातक के जीवन में होने वाले अनेक विवादस्पद क्षण दिखाई देते हैं.

ग्रहों की भाव स्थिति के अनुसार यह ज्ञात होने पर की भविष्य में कौन सी बीमारी होने वाली है. यह रोग होने की संभावना है. उससे बचाव के लिए कई प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं. भावों का प्रभाव जातक की कुण्डली में अनेक प्रकार से संबंध बनाता है यह संबंध जातक के जीवन की स्थितियों में उतार-चढा़व लाने में मुख्य होते हैं.

कुण्डली में छठे भाव और आठवें भाव का प्रभाव

कुण्डली में बीमारी का घर छठवां स्थान माना जाता है और अष्टम स्थान आयु स्थान है. तृतीय स्थान अष्टम से अष्टम होने से यह स्थान भी बीमारी के प्रकार की और इंगित करता है. जैसे तृतीय स्थान में चंद्र पीड़ित हो तो क्षय रोग व मन में असंतोष व मानसिक बीमारी की संभावना रहती है और तृतीय स्थान में शुक्र पीड़ित हो तो मधुमेह की संभावना देखी जा सकती है.

उपरोक्त ग्रहों में जो ग्रह छठे भाव का स्वामी हो या छठे भाव के स्वामी से युति सम्बन्ध बनाए उस ग्रह की दशा में रोग होने के योग बनते हैं. छठे भाव के स्वामी का सम्बन्ध लग्न भाव लग्नेश या अष्टमेश से होना स्वास्थ्य के पक्ष से शुभ नहीं माना जाता है.  जब छठे भाव का स्वामी एकादश भाव में हो तो रोग अधिक होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. इसी प्रकार छठे भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति को लंबी अवधि के रोग होने की अधिक संभावनाएं रहती हैं.

चिकित्सा ज्योतिष के कुछ नियम वेद पुराणों में भी देखे जा सकते हैं. जन्म पत्रिका और हस्त रेखाओं का अध्ययन करने के बाद ज्योतिषी यह बताने का प्रयत्न करते हैं की उक्त व्यक्ति को भविष्य में कौन सी घटना प्रभावित कर सकती है. जैसे जन्म कुण्डली में तुला लग्न या राशि पीड़ित हो तो व्यक्ति को दुविधाओं से घिरा हुआ देखा जा सकता है तथा व्यक्ति कि कमर के निचले वाले भाग में समस्या होने की संभावना रह सकती है.