वक्री ग्रहों को वैदिक ज्योतिष में शक्त अवस्था में माना गया है अर्थात वक्री ग्रह सबसे अधिक शक्तिशाली होते हैं. वक्री ग्रह बार-बार प्रयास कराते हैं. एक ही कार्य को करने के लिए व्यक्ति को कई बार प्रयास करने पर सफलता मिलती है. शनि ग्रह जब वक्री होते हैं तब व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक तथा शारीरिक परेशानियाँ दे सकते हैं. शनि नौ ग्रहों में से सबसे धीमी गति से चलने वाले ग्रह हैं.

शनि के वक्री होने पर किसी भी प्रकार का कोई भी नया कार्य आरम्भ नहीं करना चाहिए अन्यथा उस कार्य की सफलता के लिए जातक को अनेकों बार प्रयास करने पड़ सकते हैं. शनि ग्रह किसी घटना का होना या बताना निश्चित करते हैं.

वक्री शनि में कोई भी नया कार्य शुरु नहीं करना चाहिए, अन्यथा आपको उसी एक काम को करने के लिए बार-बार प्रयास करने पडे़गें. कार्य चलने में व्यवधानों का सामना करना पड़ सकता है.  यदि कोई व्यक्ति व्यवसाय करता है तो व्यवसाय संबंधी निर्णय सावधानीपूर्वक लें. लेन-देन में सावधानी बरतें.

वक्री शनि के प्रभाव | Effects of Retrograde Saturn

भिन्न-भिन्न लग्न के लिए वक्री शनि का भिन्न-भिन्न फल होता है. यह आवश्यक नहीं कि सभी व्यक्तियों के लिए शनि वक्री होने पर अशुभ फल प्रदान करें. शनि ग्रह जब वक्री होते हैं तब यह आवश्यक नहीं कि वह बुरे फल देगें. व्यक्ति के लिए वक्री शनि का फल तब ही खराब होता है जब दशा में शनि का प्रभाव खराब हो और व्यक्ति विशेष की कुण्डली में भी शनि बुरे भावों का स्वामी होकर स्थित हो, अन्यथा शनि के वक्री होने का कोई बुरा प्रभाव नहीं होता है.

मेष लग्न से शनि दशम तथा एकादश भाव का स्वामी है. इसलिए शनि मेष राशि के जातकों के लिए कार्यक्षेत्र तथा लाभ भाव का स्वामी हो जाता है शनि के वक्री होने से आपको अपने कार्य क्षेत्र में पहले से अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं. लाभ प्राप्ति के लिए एक से अधिक बार परिश्रम करना पड़ सकता है.

वृष लग्न से शनि नवम तथा दशम भाव का स्वामी हो जाता है. नवम स्थान से पिता व गुरुजनों तथा दशम भाव से कार्यक्षेत्र का विचार किया जाता है. शनि के वक्री होने से शिक्षा तथा कार्यक्षेत्र में अधिक परिश्रम करना पड़ सकता है. भाग्य साथ देने में थोडा़ अधिक समय लग सकता है. .

मिथुन लग्न से शनि अष्टम तथा नवम भाव का स्वामी होता है. शनि के वक्री होने से भाग्य साथ देने में कंजूसी कर सकता है. अष्टमेश होने से अचानक होने वाली घटनाएं हो सकती है. सुख को बनाए रखने के लिए आपको अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं.

कर्क लग्न से शनि सप्तम तथा आठवें भाव का स्वामी हो जाता है. शनि के वक्री होने से आपके प्रयास दोगुने हो सकते हैं. काम की सफलता के लिए बार-बार छोटी यात्राएं करनी पड़ सकती है अथवा कोई भी कार्य पहली बार में सफलता नहीं दिलाएगा. .

सिंह लग्न से शनि छठे भाव तथा सप्तम भाव का स्वामी होता है. स्थान परिवर्तन के योग बनते हैं. जीवनसाथी से विचारों में भिन्नता की संभावना बनती है. धन का खर्च अधिक हो सकता है. आपको किसी कार्य को करने के लिए ऋण लेना पड़ सकता है.

कन्या लग्न के लिए शनि पंचम भाव तथा छठे भाव का स्वामी होता है. बनते-बनते कार्यों में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए. छाती अथवा पेट संबंधी विकार हो सकते हैं.

तुला राशि से शनि चतुर्थ तथा पंचम भाव का स्वामी ग्रह होते हैं  शनि के वक्री होने से आपको घर के सुख को बनाए रखने के लिए घर के वातावरण को संतुलित बनाकर रखना पड सकता है. माता के स्वास्थ्य में कमी आ सकती है. शिक्षा के क्षेत्र में प्रयास अधिक करने पड़ सकते हैं.

वृश्चिक लग्न के लिए शनि तृतीय तथा चतुर्थ भाव के स्वामी बनते हैं. मित्रों तथा सहयोगियों के सुख में कमी हो सकती है. आपको गले तथा छाती से संबंधित समस्या हो सकती है.

धनु लग्न के लिए शनि द्वितीय और तृतीय भावों के स्वामी होते हैं. व्यर्थ की यात्राएं करनी पड़ सकती हैं. विचारों में भिन्नता होने से मतभेद होने की संभावना बनती है.

मकर लग्न के लिए शनि लग्न और द्वितीय भाव के स्वामी बनते हैं. अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें. कुटुम्ब में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. धन संचय के लिए अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं. बेवजह मानसिक परेशानी हो सकती है.

कुम्भ राशि के जातकों के लिए शनि द्वादश और लग्न भाव के स्वामी होते हैं. शनि के वक्री होने से आपको मानसिक, आर्थिक तथा पारीवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. आपके बनते हुए कार्यों में रुकावटें आ सकती हैं. आपके खर्चें बढ़ सकते हैं. कार्यक्षेत्र में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है.

मीन लग्न के जातकों के लिए शनि एकादश तथा द्वादश भाव का स्वामी है. खर्चें बढ़ सकते हैं. दाम्पत्य जीवन में स्थायित्व की कमी रह सकती है. लाभ की प्राप्ति के लिए प्रयास दोगुने हो सकते हैं.

वक्री शनि के उपाय | Remedies for Retrograde Saturn

यदि शनि के वक्री होने से कठिनाइयाँ आती हैं तब वह शनि ग्रह से संबंधित मंत्र जाप करके शनि के दुष्प्रभाव को कम कर सकता है.

“ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:” तथा “ॐ शं शनैश्चराय नम:” मंत्रों के जाप प्रतिदिन संध्या काल में एक माला करें. इन मंत्रों के जाप करने से शनि के अशुभ प्रभावों में कमी आ सकती है.

प्रत्येक शनिवार के दिन संध्या समय में पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से शनि के अशुभ प्रभावों में कमी आएगी.

प्रत्येक शनिवार के दिन संध्या समय में " दशरथ कृत शनि स्तोत्र " का पाठ करें अथवा "शनि नील स्तोत्र " का पाठ करें. इससे व्यक्ति को शनि के अशुभ फलों से राहत मिलेगी.