ज्योतिष में शनि ग्रह कुंडली से लेकर गोचर, महादशा तथा साढ़ेसाती से हमें प्रभावित करते हैं. शनि ग्रह की स्थिति और उससे होने वाले लाभ या हानि से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता. शनि ग्रह को शनिदेव तथा शनैश्चर कहा जाता है.ज्योतिष अनुसार यह ग्रह कुंडली में किसी भी अन्य ग्रह की अपेक्षा बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकता है.

शनि मुख्य रूप से शारीरिक श्रम और सेवकों का कारक है. श्रमिक, चालक तथा निर्माण कर्ता के रुप में देखा जा सकता है. शनि मनुष्य के शरीर में मुख्य रूप से वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं. तुला राशि में स्थित होने से शनि को सर्वाधिक बली होते हैं तथा इस राशि में स्थित शनि को उच्च का शनि भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त शनि मकर तथा कुंभ में स्थित होने पर भी बल पाते हैं. शनि के प्रभाव जातक को वकील, नेता का काम करने वाले लोग तथा गुढ़ विद्याओं में रुचि रखने वाला बना सकता है.

शनि ग्रह को समझने के लिए सबसे पहले शनि की कारक वस्तुओं को जानना आवश्यक है. शनि ज्योतिष में आयु का कारक ग्रह है. इसके प्रभाव से प्राकृ्तिक आपदायें, बुढापा, रोग, निर्धनता,पाप, भय, गोपनीयता, कारावास, नौकरी, विज्ञान नियम, तेल-खनिज, कामगार, मजदूर सेवक, सेवाभाव, दासता, कृ्षि, त्याग, उंचाई से गिरना,  अपमान, अकाल, ऋण, कठोर परिश्रम, अनाज के काले दानें, लकडी, विष, टांगें, राख, अपंगता, आत्मत्याग, बाजू, ड्कैती, रोग, अवरोध, लकडी, ऊन, यम अछूत, लंगडेपन, इस्पात, कार्यो में देरी लाना.

बुध व शुक्र शनि के मित्र ग्रह हैं.  सूर्य,चन्द्र तथा मंगल शनि के शत्रु ग्रह माने जाते हैं, शनि के साथ गुरु सम संबन्ध रखता है. शनि को मकर व कुम्भ राशियों का स्वामित्व प्राप्त है इनकी मूलत्रिकोण राशि कुम्भ है. कुंभ राशि में शनि 1अंश से 20 अंश के मध्य अपनी मूलत्रिकोण राशि में होते है. शनि तुला राशि में 20 अंश पर उच्च राशिस्थ होते हैं.  शनि की नीच राशि मेष है, मेष राशि में शनि 20 अंश पर होने पर अपनी नीच राशि में होते है. शनि ग्रह को स्त्री प्रधान, और नपुंसक ग्रह कहा गया है. शनि ग्रह पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं. शनि ग्रह का भाग्य रत्न नीलम, कटैला है. शनि भूरा, नेवी, ब्लू रंग, कालापन लिए हुए होते हैं. शनि ग्रह के लिए 8, 17, 26 अंक का प्रयोग करना शुभ रहता है.  शनि ग्रह के लिए ब्रह्मा, शिव का पूजन करना चाहिए.

शनि का बीज मंत्र | Saturn Beej Mantra

ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनैं नम:

शनि का वैदिक मंत्र | Saturn Vedic Mantra

नीलाजंन समाभासं रवि पुत्रम यजाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शज्नैश्वरम।।

शनि की दान योग्य वस्तुएं | Donations associated with Saturn

शनि के लिए लोहा, काली कीलें, काला कपडा, काले फूल, मां की दाल, काली उडद की दाल, कस्तूरी, काली गाय. इन वस्तुओं का दान करने से शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति प्राप्त होती है.

शनि का स्वरुप | Physical features of a person with Saturn

शनि देव लम्बे पतले शरीर वालें, रंग में पीलापन लिए होता है. लम्बे और मुडे हुए नाखून, बडे बडे दांत, वाररोग, आलसी,रुखे उलझे बाल वाले है. शनि देव वायु तत्व रोग, पित्त प्रधान, गर्दन, हड्डियां, दान्त, प्रदूषण के कारण होने वाले रोग, मानसिक विक्षेप,  पेट के रोग, चोट, आघात, अंगहीन, कैन्सर, लकवा, गठिया, बहरापन,लम्बी अवधि के रोग देता है. शनि को देरी, अवरोध, कष्ट, विपत्ति, लोकतन्त्र, मोक्ष का कारक माना गया है.

शनि के विशिष्ठ गुण | Specific qualities of a person with Saturn

शनि तर्क, दर्शन, आत्मत्याग, नपुंसक ग्रह, कृ्पण, विनाशकारी शक्तियां, ठण्डा बर्फीला ग्रह, रहस्यमय, रुखा. आदि गुण देता है.

शनि के कार्यक्षेत्र | Saturn related profession and business

शनि आजीविका भाव का स्वामी होने पर व्यक्ति से सेवा कार्य कराता है. इस योग का व्यक्ति कठोर परिश्रम करने वाला, नौकरी पसन्द, सरकारी नौकरी प्राप्त, दिमागी और शारीरिक कार्य करने में कुशल, लोहा और इस्पात, ईंट, शीशे टायल कारखाना, जूते-चप्पल, लकडी या पत्थर का काम, बढई, तेल का काम, राजगीर, दण्ड देने से संबन्धित उपकरण, शनि से प्रभावित जातक सभी प्रकार के उत्तरदायित्व वाली नौकरियां करने वाला होता है.