ज्योतिष शास्त्र में कुसुम योग का महत्व विस्तार पूर्वक बताया गया है. कुसुम योग बनने के प्रभाव स्वरुप व्यक्ति का जीवन किस प्रकार से प्रभावित होता है इस तथ्य को अनेक ज्योतिष से संबंधित पुस्तकों में जाना जा सकता है. जातक परिजात के अनुसार इस योग में उत्पन्न होने वाला जातका शुभ फलों को पाता है. जीवन में उच्च कुल का स्वामी बनता है तथा पांण्डित्य से युक्त होता है. इस योग में उत्पन्न व्यक्ति सुखी, भोगी, विद्वान, प्रभावशाली, होता है.

कुसुम योग का निर्माण | Formation of Kusum Yoga

स्थिर लग्ने भृगौ केन्द्रे त्रिकोणेन्द्रौ शुभेतरे।
मानस्थानगते सौरे योगोऽयं कुसुमो भवेत्।।

कुण्डली स्थिर राशि लग्न की हो तथा शुक्र केंद्र में हो और चंद्रमा त्रिकोण में शुभ ग्रहों से युक्त हो तथा शनि दशम स्थान में हो तो कुसुम योग का निर्माण होता है. लग्न चर राशि का, शुक्र केन्द्र में, शुभ ग्रह युक्त चंद्रमा त्रिकोण में, शनि दशम भाव में स्थित हो तो कुसुम योग बनता है. कुछ लोगों के अनुसार इस योग के निर्माण में स्थिर लग्न के बजाय चर लग्न होना चाहिए.

एक अन्य विचार अनुसार स्थिर लग्न में गुरू स्थित हो. दशम भव में शनि दूसरे भाव में सूर्य और पंचम अथवा नवम भाव में चंद्रमा के स्थित होने से कुसुम योग का निर्माण होता है.

त्रिफला के अनुसार :- लग्नात्सप्तमगे चन्द्रे चन्द्रादष्टमगे रवौ।
गुरूणा स्थीयते लग्ने कुसुमो योग ईरित: ।।

यदि लग्न में सप्तम चंद्रमा हो, चंद्रमा से अष्टम अर्थात जन्म लग्न से द्वितीय में सूर्य हो और लग्न में बृहस्पति स्थित हो तो कुसुम योग का निर्माण होता है.

कुसुम योग का प्रभाव | Effects of Kusum Yoga

जातक परिजात अनुसार :- दाता महीमण्डलनाथबन्द्यो भोगी महावंशजराजमुख्य: ।
लोके महाकीर्तियुक्त: प्रतापी नाथो नाराणां कुसुमोद्भव: स्यात।।

कुण्डली में निर्मित कुसुम योग जातक को दान पुण्य करने वाला बनाता है. जातक का जन्म उच्च कुल में होता है. जातक को उच्च पद की प्राप्ति होती है, यश, कीर्ति और सम्मान की प्राप्ति होती है. जातक की यह स्थिति ग्रहों के बलाबल पर आधारित होती है.

व्यक्ति राजा के समान सुख सुविधाओं से संपन्न होता है. वह परिवार का तथा समाज का मुखिया हो सकता है. गुणी, दानी तथा विद्वान लोगों की कुण्डली में अवश्य ही कुसुम योग पाया जाता है.

यदि आपकी कुण्डली में लग्न चर राशि - मेष, कर्क, तुला या मकर का है, शुक्र केन्द्र में स्थित है, चंद्रमा शुभ ग्रहों से युक्त त्रिकोण में स्थित है और शनि दशम भाव है तो कुसुम योग बनता है. सीताराम झा के ने चर लग्न की बजाय स्थिर लग्न को मुख्य माना है. उनके अनुसार लग्न में चर राशि के स्थान पर स्थिर राशि - वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ होनी चाहिए.

कुसुम योग के प्रभाव से आप राज वैभव के समान सुख सुविधाओं से युक्त तथा संपन्न व्यक्ति हो सकते हैं. वर्तमान समये में व्यक्ति किसी उच्च पद पर आसीन या मंत्री पद प्राप्त कर सकते हैं. इसलिए तो इस योग के प्रभाव से व्यक्ति कुसुम के समान प्रसन्नचित्त तथा स्वभाव से विनम्र होता है. यह योग कुण्डली को मजबूती प्रदान करने में सहायक होता है जिस कारण जीवन में नई उर्जा शक्ति और साहस का आगमन देखा जा सकता है.