अष्टकवर्ग में किसी राशि या भाव के साथ - साथ ग्रहों पर पड़ने वाली इन आठ प्रकार की ऊर्जाओं को समझने के लिए राशि के 30 अंशों को 3 अंश 45 कला में विभाजित किया गया है. इन्हें ही कक्ष्याएं कहा जाता है. 3 डिग्री 45 मिनट का एक भाग एक कक्ष्या कहलाता है. प्रत्येक कक्ष्या का एक स्वामी होता है जो सभी राशियों में समान होता है. यहां नीचे सारिणी में प्रत्येक कक्ष्या का विस्तार और उसके स्वामी को दर्शाया गया है.

कक्ष्या क्रम राशि में कक्ष्या विस्तार कक्ष्या स्वामी ग्रह की कक्ष्या में रहने समय
1 00 से 3 डिग्री 45 मिनट तक शनि 112 दिन
2 3 डिग्री 45 मिनट से 7 डिग्री 30 मिनट तक बृहस्पति 45 दिन
3 7 डीग्री 30 मिनट से 11 डिग्री 15 मिनट तक मंगल 7 दिन
4 11 डिग्री 15 मिनट से 15 डिग्री 00 मिनट तक सूर्य 3.8 दिन
5 15 डिग्री 00 मिन्ट से 18 डिग्री 45 मिनट तक शुक्र 2.3 दिन
6 18 डिग्री 45 मिनट से 22 डिग्री 30 मिनट तक बुध 22 घंटे
7 22 डिग्री 30 मिनट से 26 डिग्री 15 मिनट तक चंद्रमा 6.9 घंटे
8 26 डिग्री 15 मिनट से 30 डिग्री 00 मिनट तक लग्न


यहां इस बात को आसानी से समझा जा सकता है कि कक्ष्याओं का स्वामित्व पृथ्वी से ग्रहों की दूरी के आधार पर सुनश्चित किया जाता है तथा ग्रहों को सोरमण्डल में उनकी भ्रमण करने की गति के आधार पर कक्ष्याओं का स्वामित्व दिया जाता है. कोई ग्रह जब किसी भी राशि में प्रवेश करता है तो सबसे पहले वह शनि की कक्ष्या में प्रवेश करता है उसके पश्चात गुरू, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध, चंद्रमा और लग्न में प्रवेश करके शनि को पार करता है.

कोई ग्रह जब किसी ऎसी राशि में गोचर करता है जिसके स्वामी ने उसमें शुभ बिन्दु दिए हों तो उसके द्वारा प्राप्त परिणाम शुभ होते हैं. किसी भी ग्रह ने बिन्दु प्रदान किया है या नहीं उसे प्रस्थारक वर्ग से समझा जा सकता है.

कक्ष्या में गोचर विचार | Analysis Of Transit in Different Sections

कोई ग्रह जब किसी ऎसी कक्ष्या में गोचर करता है जिसके स्वामी ने उसमें बिन्दु देता है तो गोचर का वह ग्रह शुभ प्रभाव देने वाला होता है. अगर एक साथ यदि इस कक्ष्या में एक साथ कई गोचर करते हैं तो अच्छे फल मिलने निश्चित होते हैं.

जब कोई ग्रह किसी ऎसी कक्ष्या में गोचर करता है जिसमें कक्ष्या का स्वामी बिन्दु नहीं देता तो फलों में अशुभता का होना देखा जा सकता है या कोई भी शुभ ग्रह अनुकूल फल नहीं देता है.

ग्रह का ऎसी राशि में गोचर जिसमें यह बिन्दु प्राप्त करता है तो यह धनदायक बनता है. कोई भी ग्रह कुण्डली में अपने स्वामित्व और अपने कारक तत्वों के आधार पर फल देता है.

गोचरस्थ ग्रह और कक्ष्या का स्वामी मित्र हों तो फलों में शुभता बढ़ जाती है. अष्टकवर्ग में यदि दशा व अंतर्दशा का स्वामी ऎसि कक्ष्या में गोचर करता है जिसके स्वामी ने बिन्दु दिए हों तो वह समय विशेष में शुभ फल देते है.