पराशर होरा शास्त्र में महर्षि पराशर जी कहते हैं कि विभिन्न लग्नों के लिए तात्कालिक शुभ और अशुभ ग्रह होते हैं जिनके द्वारा फलित को समझने में आसानी होती है. यह कई बार देखने में आता है कि ग्रह किसी विशेष लग्न के लिए शुभ या अशुभ फल देने वाला होता है. इस लिए किसी भी ग्रह के परिणामों को जानने के लिए जन्म कुण्डली में उसके स्वामित्व का ध्यान रखना जरूरी होता है. ग्रहों के शुभाशुभ का निर्णय निम तरह से कर सकते हैं.

  • लग्नेश चाहे नैसर्गिक शुभ ग्रह हो अथवा अशुभ हो, हमेशा शुभ ही माना जाता है. जैसे मकर और कुम्भ के लिए शनि सदैव शुभ होते हैं.
  • इसी प्रकार त्रिकोणेश भी सदैव शुभ माने जाते हैं. केन्द्र और त्रिकोण के स्वामी कर्क और सिंह लग्नों के लिए मंगल, वृष और तुला लग्न के लिए शनि तथा मकर व कुम्भ लग्न के लिए शुक्र योगकारक होकर शुभ होते हैं.
  • केन्द्राधिपति दोष के कारण केन्द्र के स्वामी होने पर अशुभ ग्रह अपनी अशुभता छोड़ देते हैं. जबकी शुभ ग्रह अपनी शुभता भूल जाते हैं या कहें ग्रह अपनी सम स्थिति को पाते हैं.

दृष्टियां | Aspects

अष्टकवर्ग की विवेचना में दृष्टियां भी बहुत महत्वपूर्ण होती है. अष्टकवर्ग के गोचर के में ग्रह पर शुभ ग्रहों की दृष्टि शुभता में वृद्धि करती है. जबकी अशुभ ग्रहों की दृष्टि अशुभता दर्शाने वाली होती है. और ग्रह द्वारा प्रदान करने वाले अच्छे प्रभावों को खराब करते हैं.

वक्री ग्रहों का प्रभाव | Effect of Retrograde Planets

नैसर्गिक शुभ ग्रह का अपने अनु भाव में वक्री होकर गोचर करना उक्त भाव संबंधि शुभ फलों में वृद्धिकारक होता है. जबकि प्रतिकूल भाव का गोचर परिणामों में कम शुभता लाता है. नैसर्गिक अशुभ ग्रह का वक्री गोचर कष्टदायक होता है.

दशानाथ का प्रभाव | Effect of Dashanath

शुभ ग्रह की दशा में ग्रह जब अनुकूल भावों में गोचर करता है तो अनुकूल परिणामों को देने के योग्य बनता है. लेकिन जब प्रतिकूल भावों में गोचर करता है तो शुभ फलों में कमी आती है. इसके अतिरिक्त अशुभ ग्रह की दशा में उस ग्रह विशेष का अशुभ भावों में गोचर अनिष्ट कारक हो जाता है जबकि शुभ भावों में गोचर इन फलों में कमी लाता है.

अस्तगत प्रभाव | Effect of Astagat

ग्रह का प्रतिकूल स्थानों में गोचर करते हुए अस्त होना अथवा राहु केतु से ग्रस्त होना अशुभ फलदायक बनता है.

पाप कर्तरी या शुभ कर्तरी में होना | Being in Malefic and Benefic Kartari

गोचर करते हुए कोई ग्रह दो पाप ग्रहों के मध्य आता है तो वह पाप कर्तरी में स्थित होता है और यदि ग्रह अनुकूल भावों में गोचर करते हुए इस योग में शामिल होता हो तो उसके द्वारा प्रदान किए शुभ फलों में कमी आ जाती है. यदि प्रतिकूल भावों में गोचर करते हुए इस योग में शामिल हो तो इसके अशुभ फलों की वृद्धि होती है. शुभ कर्तरी में होने से इसके विपरित प्रभाव मिलते हैं. इन सभी के अतिरिक्त इन बातों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है कि गोचरवश जब कोई ग्रह कुण्डली में स्थित अपने भोगांश को पार करता है तो कोई शुभाशुभ धटना अवश्य देता है. इस प्रकार से कई सूक्ष्म बिन्दुओं का अवलोकन करके हम अष्टकवर्ग के फलित को जानने में सक्ष्म हो सकते हैं.