अष्टक वर्ग में ग्रहों के अच्छे फलों की प्राप्ति में यह अंक बहुत निर्णायक भूमिका अदा करते हैं और आने वाले गोचर के निष्पादन हेतु  प्रक्रिया में सहायक होते हैं. समस्त ग्रह 0 से 3 बिन्दुओं के साथ स्थित होने पर कमजोर मान लिए जाते हैं. इसी के साथ चार बिन्दुओं के साथ स्थित ग्रह को सामान्य या कहें अनुकूल माना जाता है. वह न अधिक अशुभ होता है और न ही अधिक शुभ प्रभाव देने में सक्षम होता है. पांच से अधिक बिन्दुओं या अंकों के साथ होने पर ग्रह मजबूत स्थिति पाता है जिससे जातक को शुभ फलों की प्राप्ति में लाभ मिलने की संभावना बनी रहती है और उसके काम को शुभता तथा सौम्यता भी प्राप्त होती है.

अष्टकवर्ग के सिद्धांतो का सही प्रकार से उपयोग करने के बाद ही कुण्डली की विवेचना करनी होती है. सबसे पहले यह देखा जाना चहिए कि किस ग्रह ने कितने अंक अर्थात बिन्दु किस भाव में दिए हैं और ग्रह स्वयं जिस राशि में स्थित है वहाँ कितने बिन्दु हैं. जन्म कुण्डली में कोई भी ग्रह यदि अपने भिन्नाष्टक में पांच या अधिक बिन्दुओं के साथ होता है और सर्वाष्टक में अठाईस या अधिक बिन्दुओं के साथ होता है तब वह ग्रह बहुत ही श्रेष्ठ व उत्तम फल देता है.

कुण्डली का जांचते हुए इसके नियमों के साथ पराशर जी के नियम भी लगाने चाहिए कि ग्रह कब शुभ तो किन स्थितियों में खराब परिणाम दिया करेगा. परंतु ग्रह शुभ होकर नीच या अस्त है तो उक्त शुभ फल देने में कमी कर सकता है उसका पूर्ण बल नहीं मिल पाता. अनेक बार जब कोई भी ग्रह किसी भाव में चार या उससे भी कम अंक देता है तथा उसी भाव में अपनी उच्च स्थित में स्थित होता है तो उक्त स्थिति में अंकों की कमी से परिणाम में कमी आ जाती है और ग्रहों से शुभ फल मिलने में कमी का अनुभव होता है. अंकों का इस अष्टक वर्ग में बहुत महत्व होता है इन्हीं के आधार पर अष्टक वर्ग के सिद्धांतों को समझा जा सकता है.

कई बार ग्रह अपनी नीच अथवा शत्रु राशि में चार या इससे से भी कम बिन्दुओं के साथ होता है तब भी जातक को अशुभ परिणाम नहीं मिलते हैं. इसका क्या हमें इस अष्टक वर्ग के गोचर को समझने में आ सकता है. ग्रह कि दशा या अन्तर्दशा में कुण्डली में उस समय में चलने वाला गोचर देखा जाना आवश्यक होता है क्योंकि अष्टकवर्ग में ग्रहों का गोचर मुख्य भूमिका निभाता है. इसमें भी सबसे मुख्य शनि का गोचर माना जाता है. यदि शनि गोचर में जिस भी किसी ऎसी राशि से गुजर रहा है होता है जिसमें सूर्यादि ग्रह अपने भिन्नाष्टक वर्ग में कोई बिन्दु नहीं दे रहे हों तो उस स्थिति में शनि का यह गोचर बिन्दु ना देने वाले ग्रहों के कारकत्व के अनुसार जातक को अनेक प्रकार के कष्ट और परेशानियां दे सकता है.

ऎसी ही अन्य ग्रहों को भी गोचर में इसी प्रकार से देखा जा सकता है. अष्टकवर्ग से जातक के जीवन के किसी भी क्षेत्र के फलों का अध्ययन किया जा सकता है. इसी प्रकार से गुरू के गोचर द्वारा ग्रहों के शुभ फलों की प्राप्ती को जाना जा सकता है. अष्टकवर्ग में जिस ग्रह के पास जितने अधिक अंक अर्थात बिन्दु होते हैं वह उतने ही शुभ फल देने में सक्षम होता है.