ज्योतिष एवं धार्मिक ग्रंथों में रत्नों की उत्पत्ति बारे में अनेकों कहानियाँ मिलती है. अग्नि पुराण में रत्नों की उत्पत्ति का संबंध वृत्रासुर के वध से जुडा़ है. इस दैत्य का वध करने के लिए महामुनि दधीचि के शरीर की हड्डियों का हथियार बनाया गया था.  इस अस्त्र के निर्माण के समय दधीचि की हड्डियों के कुछ अंश धरती पर गिर गए थे. जहाँ-जहाँ यह गिरे वहाँ हीरे की खानें बन गई.

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने दैत्यराज बलि का वध करने के लिए वामन अवतार लिया था और तीन पग भूमि भिक्षा में माँगकर राजा बलि से पृथ्वी, आकाश तथा पाताल छीन लिए थे. राजा बलि ने भगवान के जब चरण स्पर्श किए थे तब उनका सारा शरीर रत्नों का बन गया था. इन्द्र ने जब राजा बलि पर वार किया तो रत्नों से बना शरीर पृथ्वी पर बिखर गया और विभिन्न प्रकार की रत्नों की खानें बन गई. राजा बलि के शरीर से ही 84 प्रकार के रत्नों की उत्पत्ति मानी जाती है.

रत्नों के संबंध में राजा बलि से ही मिलती कहानी बलासुर की है. गरुड़ पुराण के अनुसार बलासुर ने इन्द्र को युद्ध में हरा दिया था. यह दैत्य था लेकिन अपने वचन का पक्का और महादानी था. उसके इसी गुण के कारण इन्द्र ने इसे ठगा. इन्द्र ने ब्राह्मण वेश में देवताओं के यज्ञ के लिए बलासुर का शरीर माँग लिया. अग्नि में इसका शरीर भस्म होने के बाद धरती पर जहाँ-जहाँ इसके अँग गिरे वहाँ विविध प्रकार के रत्नों की खानें बन गई.

अन्त में रत्नों के संबंध में प्रचलित एक अन्य मुख्य कथा है. रत्नों से जुडी़ यह समुद्र मंथन की कथा है. देवों तथा राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था. उस दौरान बहुत सी वस्तुएँ समुद्र से निकली थी. इनमें 14 प्रकार के रत्न पदार्थ भी निकले. समुद्र मंथन से निकले अमृत पर देवों तथा असुरों में संघर्ष हुआ. इस संघर्ष में अमृत की बूँदे पृथ्वी पर जहाँ गिरी वहाँ रत्न बन गए.

रत्नों को धारण करने का कारण | Reasons for wearing Gemstones

ग्रहों की शांति हेतु तथा जीवन में आने वाले कष्टों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए रत्नों को धारण किया जाता है. रत्नों को धारण करने का जब प्रश्न आता है तब बहुत सी बातें हमारे मन में उठती हैं. कौन सा रत्न धारण करना चाहिए. कौन सा रत्न अनुकूल फल प्रदान करेगा. क्या रत्न धारण करने से लाभ होगा, आदि अनेक बातें हैं. यदि अपने जन्म का पूरा विवरण पता है तब कुण्डली में स्थित शुभ ग्रहों के आधार पर रत्न धारण कर सकते हैं. माना कुण्डली में लग्न अथवा लग्न का स्वामी ग्रह निर्बल है और उसके कारण आपको जीवन में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तब आप इनसे संबंधित रत्न धारण कर सकते हैं.

भाग्य आपका साथ नहीं दे रहा है या कुण्डली के शुभ ग्रह कमजोर होकर स्थित है अथवा कुण्डली में त्रिकोण भाव के स्वामी निर्बल है तब आप उनका रत्न धारण कर सकते हैं. रत्न धारण करने से संबंधित ग्रह को बल मिलता है और वह शुभ फल देने में सहायक होता है.

यह आवश्यक नही है कि आप सभी को अपने जन्म विवरण की पूरी जानकारी हो.. ऎसी स्थिति में आपको जो परेशानी या बाधा आ रही है, उससे संबंधित कारक ग्रह का रत्न धारण किया जा सकता है. जैसे किसी को संतान प्राप्ति में बाधा आ रही है तब संतान के कारक ग्रह बृहस्पति का रत्न धारण किया जा सकता है. किसी को विवाह में देरी का सामना करना पड़ रहा है तब शुक्र से संबंधित रत्न को धारण किया जा सकता है.

रत्नों के स्थान पर उपरत्नों की उपयोगिता | Utility of Upratna in place of Gemstones (Ratna)

उपरत्न देखने में सुंदर होते हैं. इनकी कीमत रत्नों से कम होती है. इन्हें साधारण व्यक्ति भी धारण कर सकता है. वैदिक ज्योतिष में उपरत्नों को भी रत्नों के समान उपयोगी माना गया है. उपरत्न धारण करने से पूर्व इनकी पहचान जरूरी है. आजकल बाजारों में काँच के रुप में नकली उपरत्न अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध हैं. नकली उपरत्न धारण करने पर आपको अशुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है. वर्तमान समय में रत्नों को जाँचने के लिए प्रयोगशालाएँ बनाई गई हैं. जहाँ आसानी से असली तथा नकली की पहचान हो सकती है. किसी भी ग्रह का रत्न पहने या उपरत्न पहने उसकी पहचान होने पर ही उसे उपयोग में लाएँ.