कुंडली से जानिए संतान जन्म में देरी का कारण

ज्योतिष के अनुसार कई ऎसे योग हैं, जिनके अनुसार व्यक्ति की संतती के बारे में जाना जा सकता है. शादी के बाद किसी भी व्यक्ति के जीवन में वंश वृद्धि का प्रयास बना रहता है.  कई दंपतियों को समय पर अपनी संतान का सुख मिल जाता है तो कई बार कुछ कारणों से कई लोगों को इंतजार करना पड़ता है. ऎसे में संतान के होने का योग कई संघर्षों से भी होकर गुजरता है.  ऎसे में संतान का देर से होना या नहीं होना संघर्ष का कारण बनता है. इसी के चलते कुंडली में यह योग देरी से बच्चे होने का कारण बनते हैं या फिर योगों का खराब असर कुछ को निःसंतान भी बना देने वाला होता है.  ज्योतिष के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है. इनके द्वारा संतान की स्थिति को जान पाना संभव हो पाता है. 

कुंडली से जानिए संतान जन्म में देरी का कारण

संतान के जन्म में देरी के कारणों को ज्योतिष द्वारा जाना जा सकता है. किसी व्यक्ति की कुंडली से संतान न होने का कारण जान सकते हैं. संतान जन्म में देरी के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ कुंडली के कुछ विशिष्ट भावों और कुंडली के उन भावों में बैठे ग्रहों की स्थिति की समीक्षा करते हुए जाना जा सकता है. कुंडली में संतान का सुख पाने या देखने के लिए पंचम भाव मुख्य भाव होता है. इसी के साथ अन्य भावों की स्थिति भी इसी पर असर डालती है.  इन अन्य भावों में दूसरा भाव, ग्यारहवां भाव, नवम भाव को भी देखते हैं. यह भाव सहायक के रूप में काम करते हैं. इसके साथ ही कुंडली में शुक्र, सूर्य और मंगल के साथ-साथ संतान के लिए मुख्य कारक बृहस्पति की स्थिति भी देखनी होती है. 

कभी-कभी, पिछले जन्म के दोषपूर्ण कर्म और नाड़ी दोष भी बच्चे के जन्म में देरी का कारण बनते हैं. ऐसी अधिकांश चीजें तब देखी जा सकती हैं. इन के आधार पर ज्योतिष आपको बच्चे के जन्म में देरी के ऐसे सभी कारणों के बारे में बता सकता है. 

राशिफल के अनुसार बच्चे का योग 

कुंडली से बच्चे की योजना बनाने का सबसे अच्छा समय जान सकते हैं. जन्म कुंडली के अनुसार बच्चे के जन्म होने के समय की योजना कैसे बनाई जाए, इसका थोड़ा सा ज्ञान दशाओं और गोचर के माध्यम से जाना जा सकता है. मंगल, शनि, राहु और केतु जैसे ग्रह काफी खराब माने जाते हैं या कहें की पाप ग्रहों की श्रेणी में आते हैं.  ऎसे में दूसरे, चौथे, सातवें, नौवें और दसवें घर में ग्रहों की स्थिति को देखा जाता और जब पाप ग्रहों का प्रभाव यहां नहीं हो तब गर्भधारण की योजना बनाने के लिए अनुकूल समय जाना जा सकता है. इसी तरह, इन संयोजनों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करके संतान होने की योजना बनाने के लिए विशिष्ट दिनों और यहां तक कि विशिष्ट घंटों के बारे में ज्योतिष द्वारा जाना जा सकता है. अब यदि पाप ग्रहों का असर अधिक है तो उस स्थिति में संतान न होने की संभावना या गर्भपात जैसी स्थितियां असर डाल सकती हैं. 

ज्योतिष में संतान प्राप्ति में देरी के कारण 

संतान में देरी के मामले में ज्योतिष के अन्य सूत्र 

यदि अष्टकूट मिलान में उचित मिलान बिंदु नहीं हो पाया है और इसमें भकूट मिलान नहीं हुआ हो, तो दंपत्ति को संतान प्राप्ति में देरी का सामना करना पड़ सकता है.

यदि कुंडली में संतान स्थान अशुभ प्रभाव उत्पन्न कर रहा हो तो भी संतान प्राप्ति में देरी होती है.

कुंडली में मौजूद सर्प श्राप के कारण भी संतान प्राप्ति में देरी होती है और ऐसे में सर्प श्राप शांति पूजा करना अच्छा होता है.

पितृ श्राप या पितृ दोष के कारण भी संतान प्राप्ति में देरी होती है और ऐसे में पितृ दोष शांति पूजा जरूर होनी चाहिए. 

मातृ श्राप के कारण भी बच्चे के जन्म में देरी होती है.

कई बार कमजोर ग्रह स्थिति के कारण भी संतान प्राप्ति में देरी होती है.

यदि दंपत्ति के साथ गृह देवी या गृह देवता का आशीर्वाद न हो तो भी जीवन में ये समस्याएं और अन्य परेशानियां आती हैं.

बुरी नजर, दोष के प्रभाव के कारण स्वस्थ बच्चा होने में भी देरी का सामना करना पड़ता है.

पहला कारण जो मैंने पाया वह यह है कि जन्म कुंडली स्वयं ही बच्चे के जन्म के मामले में कमजोर है और फलदायी दशा अवधि आने तक इसमें देरी हो जाती है. दूसरा कि जन्म कुंडली बच्चे के जन्म के मामले में कमजोर होती है और फलदायी समय अवधि विवाह की प्रमुख आयु में आती है लेकिन किन्हीं कारणों से शादी में देरी होती है और फलदायी समय अवधि तब समाप्त हो चुकी है. ऎसे में एक नई संतान दशा अवधि के लिए कई वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है और ऎसे में डॉक्टरी इलाज भी काम नहीं आ पाता है. यदि पत्नी की कुंडली कष्ट रहित है तो देरी का कारण जानने के लिए पति की कुंडली देखना आवश्यक हो जाता है. पति की कुंडली में कष्ट होने से संतान उत्पन्न करने की क्षमता प्रभावित होती है. कुंडली के योग 

बच्चे के जन्म में देरी परिस्थितियों या ग्रहों की स्थिति के कारण हो सकती है. कुछ मामलों में, प्रक्रिया शुरू करने में देरी के कारण बच्चे के जन्म में जटिलताएं भी हो सकती हैं. आज के समय में, करियर या यहां तक कि व्यक्तिगत पसंद-नापसंद पर बहुत अधिक ध्यान देने से भी बच्चे के जन्म में उसकी प्राकृतिक प्रक्रिया में देरी या इनकार हो सकता है. ऐसे कई मामलों में, कई बार लोग  , इन बातों के चलते भी संतान के सुख को पाने में सक्षम नहीं होते हैं और उन्हें आईवीएफ जैसे तरीकों का सहारा लेना पड़ता है. इस स्थिति में आईवीएफ की योजना कब बनानी चाहिए. इस बात की सफलता के लिए ज्योतिष का सहारा लिया जाना उचित होता है. 

इस प्रकार संतान के सुख की चाह में कमी किन कारणों से बन रही है पहले इस बात को समझना जरूरी होता है. इसके अलावा अन्य सूत्रों को ध्यान में रखते हुए ज्योतिष अनुसार जाना जा सकता है की संतान कब होगी और कैसे होगी.