जैमिनी ज्योतिष में राजयोग का आप पर प्रभाव

ज्योतिष में शुभता का प्रभाव योग के फलों के द्वारा समझा जा सकता है. किसी भी ग्रह की शुभता अकेले से ही निर्मित नही होती है अपितु उसके साथ कई अन्य फैक्टर भी काम करते हैं. इसी श्रेणी में वैदिक पराशर ज्योतिष से अलग जैमिनी ज्योतिष की बात करें तो इसमें कई तरह के शुभ योगों का असर जातक की कुंडली में पड़ता है. कुंडली में राजयोग को सर्वोत्तम योग माना गया है. यह एक बहुत ही दुर्लभ योग है जो भाग्यशाली लोगों की कुंडली में पाया जाता है या यह कहा जा सकता है कि जिनकी कुंडली में यह योग होता है वे भाग्यशाली होते हैं. इस योग के बारे में जैमिनी ज्योतिष की अपनी मान्यताएं हैं. जैमिनी ज्योतिष पद्धति से बनने वाले राजयोगों की स्थिति कई रुपों से अपना असर डालने वाली होती है. 

जैमिनी से कुंडली में बनने वाले शुभ राजयोग .

यदि आपकी कुंडली में कोई ग्रह आपके जन्म लग्न को देख रहा है, वही ग्रह होरा लग्न में भी उस स्थान को देख रहा है तथा घटिका लग्न में भी वही स्थिति है तो इसे कुंडली में प्रबल राजयोग समझना चाहिए. इस योग के बनने से आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है और हर तरफ से तरक्की मिलती है. प्रजा को सम्मान मिलता है और राजा के समान सुखी जीवन मिलता है. इसी प्रकार यदि राशि कुंडली, नवमांश कुंडली, द्रक्कन कुंडली, लग्न कुंडली, सप्तम कुंडली में एक निश्चित स्थान पर एक ही ग्रह की दृष्टि हो तो भी राजयोग बनता है. ध्यान देने योग्य बात यह है कि सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए कुंडली में इन सभी कारकों का होना अनिवार्य है. यदि इनमें से कोई भी कारक मौजूद नहीं है तो पूर्ण परिणाम प्राप्त करना मुश्किल है.

द्रेष्काण और नवमांश कुंडली राजयोग 

जैमिनी ज्योतिष के अनुसार अगर् द्रेष्काण और नवमांश कुंडली में यदि कोई ग्रह लग्न, होरा लग्न और घटिका लग्न को देख रहा हो या संबंध बना रहा हो तो व्यक्ति की जन्म कुंडली में राजयोग बनता है. परंतु इन सभी कारकों का होना आवश्यक है, किसी भी कारक का अभाव अच्छा प्रभाव नहीं देता है. इसी प्रकार यदि मंगल, शुक्र और केतु एक दूसरे से तीसरे भाव में स्थित हों और एक दूसरे से दृष्टि संबंध बना रहे हों तो कुंडली में वैधनिक योग बनता है. यह योग व्यक्ति के जीवन में उन्नति और प्रसिद्धि का कारक होता है. कई बार कुछ स्थानों पर अपरोक्त बातें अगर लागू नहीं हो पाती हैं तो उस के प्रभाव से योग के फलों में कमी भी आती है. किंतु यदि सभी बातें पूर्ण रुप से दिखाई दे रही हों तो यह शुभता को देने वाली होती हैं. 

यदि नवांश कुंडली में चंद्रमा बृहस्पति से चतुर्थ या एकादश भाव में स्थित हो तो राजयोग बनता है. कुंडली में इस प्रकार के योग के बनने से व्यक्ति को व्यावसायिक जीवन में अधिकार और प्रसिद्धि मिलती है. यदि जन्म राशि और नवमांश कुंडली के दसवें और ग्यारहवें भाव में शुभ ग्रह स्थित हों तो सामान्य प्रकार का राजयोग बनता है. लेकिन यह राजयोग उन्नत जीवन भी प्रदान करता है.

कारकों से बनने वाले राजयोग 

जैमिनी ज्योतिष में कारकों से बनने वाले योग भी शुभ फलों को देते हैं. इन में आत्म कारक, अमात्य कारक से बनने वाले कुछ योग राजयोग जैसा फल देने वाले होते हैं. यदि अमात्यकारक से द्वितीय, चतुर्थ और पंचम भाव समान रूप से बली हों और उनमें शुभ ग्रह स्थित हों तो यह व्यक्ति के लिए व्यावसायिक दृष्टि से बहुत शुभ होता है. इसी प्रकार यदि कोई ग्रह अमात्यकारक ग्रह के समान बलवान है और तीसरे या छठे भाव में स्थित है और उसका संबंध सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु से बन रहा है तो यह संकेत है कि व्यक्ति को प्रति दिन प्रगति के अवसर मिलते हैं. कार्य क्षेत्र में व्यक्ति सदैव सफलता की ओर अग्रसर होता है. .

जैमिनी में अमात्यकारक ग्रह से दूसरे और चौथे भाव में शुक्र, मंगल और केतु स्थित हों तो सुखी जीवन मिलता है. यह भी एक प्रकार से राजयोग कारक की भूमिका का निर्वाह करते देखे जा सकते हैं. लग्न, सप्तम और नवम भाव के बली होने से कुशल नेता के गुण विकसित होते हैं, आप राजनेता बन सकते हैं. यदि लग्न में दो ग्रह मौजूद हों और वे दोनों समान रूप से बली हों तो यह भी बुढ़ापे में सुख देने वाला राजयोग माना जाता है.

यदि लग्न और चतुर्थ भाव में समान संख्या में ग्रह स्थित हों तो कुंडली में राजयोग भी बनता है, जो जीवन में सफलता और प्रसिद्धि देता है. यदि लग्न और एकादश भाव में गुरु और चंद्रमा स्थित हों या लग्न और सप्तम भाव पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो राजा के समान सुखी जीवन मिलता है. राजयोग के संबंध में जैमिनी ज्योतिष में बताया गया है कि यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बुध और बृहस्पति लग्न या एकादश भाव में स्थित हों तो राजयोग बनता है. इस योग के प्रभाव से बचपन के दिन सबसे सुखद होते हैं.

यदि अमात्यकारक से दसवें घर में शुक्र और चंद्रमा की युति हो और वे अमात्यकारक पर दृष्टि डालें तो यह एक बहुत ही शुभ राजयोग होता है. इससे विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत होता है. यदि कुंडली में चंद्रमा किसी शुभ ग्रह के साथ युति बनाता है तो राजनीतिक लोगों के साथ काम करने का अवसर मिलता है. यदि शुभ ग्रह पहले भाव, पंचम भाव, नवम भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव दशम भाव केंद्र में स्थित हों तो जनहित में कार्य करने का अवसर मिलता है. यह सामाजिक रुप से प्रशंसा दिलाने वाला योग बनता है. 

यदि लग्न या अमात्यकारक राशि में शुभ ग्रह स्थित हो या उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो राजसी जीवन का सुख मिलता है. यदि आत्मकारक लग्न की नवमांश राशि, जन्म राशि और जिस राशि में बृहस्पति स्थित हो, एक ही हो तो यह भी सर्वोत्तम राजयोग माना जाता है. यदि लग्न और नवमांश राशि के नवम भाव में शुभ ग्रह अरुधा समान संख्या में स्थित हो तो व्यक्ति राजनीति के क्षेत्र में अपना भविष्य बना सकता है. यदि आत्मकारक या आरूढ़ लग्न से तीसरे या छठे भाव में कोई ग्रह शुभ हो तो जीवन सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण होता है.