जन्म कुंडली में शुभ अशुभ राज योग क्या दर्शाता है?

ज्योतिष शास्त्र कहता है कि राज योग एक ऐसा योग है जो व्यक्ति को राजा जैसा भाग्य प्रदान करता है, इस कारण से ही इसे राजयोग कहा गया है. जिसकी कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति को कई तरह के फल प्राप्त होते हैं. लेकिन इसमें कुछ बातें विशिष्ट भी हैं क्योंकि राजयोग केवल सुख ही देगा यह भी मुश्किल होगा, या फिर हम किसी शुभ रुप से ही अपने जीवन में लाभ प्राप्त कर पाएंगे यह भी इस के द्वारा परिभाषित नहीं हो सकता है. क्योंकि राजयोग अनुसार धन प्रसिद्धि का योग व्यक्ति को मिलता है ओर ऎसे में तो कई गलत कार्यों से भी व्यक्ति प्रसिद्धि ओर धन को पा लेता है तह इस स्थिति में उस राजयोग का क्या अर्थ निकाला जाए.

इस स्थिति में योग तो फलित होता है लेकिन जीवन में वह किन परिस्थितियों के द्वारा मिल रहा है इसे भी जान लेना भी आवश्यक हैं. इसी के साथ सुख की प्राप्ति तब होन अजब जीवन से हर खुशी गायब होना या कष्ट इतना मिलना की मिलने वाले सुख का अनुभव ही न हो पाना भी इसी योग में देखने को मिल सकता है. इसी कारण से कुंडली में बनने वाले योग कैसे बन रहे हैं कौन से ग्रह कहां स्थित हैं इन सभी बातों का अध्ययन करने के बाद ही इसे समझना उचित जान पड़ता है. 

व्यक्ति सुखी जीवन चाहता है लेकिन खुशियां सभी के नसीब में बराबर मात्रा में नहीं होती. किसी व्यक्ति के सुख-दुःख का अंदाजा उसकी कुंडली में ग्रहों और योगों की स्थिति से लगाया जा सकता है.राज योग शब्द के दो भाग हैं. राज और योग. ज्योतिष की शब्दावली में राज योग का अर्थ है राजा के समान सुख प्रदान करने वाला योग. राज योग कुंडली में ग्रहों की विशेष युति से बनता है. योग के फल का निर्णय करने के लिए ग्रहों, कारक, युति, दृष्टि जैसे प्रमुख कारक की शुभता और अशुभता का निरीक्षण करना आवश्यक है.

राजयोग के बनने के कारक 

ग्रहों की नैसर्गिक शुभता या अशुभता का ध्यान राजयोग के फल को जानने के लिए विशेष रुप से रखना चाहिए. राज योग के लिए केंद्र भाव में उच्च ग्रह, भाग्य रेखा में उच्च का शुक्र और नवांश और दशमांश के बीच संबंध महत्वपूर्ण होता है. नीच राशि में ग्रह का मतलब यह नहीं है कि वे अशुभ परिणाम प्रदान करेंगे क्योंकि यदि कोई ग्रह नीच राशि में स्थित है. इस घटनाक्रम का परिणाम अन्य ग्रहों के संबंधों पर भी निर्भर करेगा.

राज योग किसी कुंडली में किसी ग्रह विशेष से नहीं बनता बल्कि इसके बनने के लिए सभी ग्रह समान  रूप से जिम्मेदार होते हैं. ज्योतिष शास्त्र कहता है कि चंद्रमा अपने विभिन्न स्थानों में योग पर भारी प्रभाव डालता है. नीच का चंद्रमा हो या फिर पाप ग्रहों से त्रस्त चंद्रमा हो यह सकारात्मक परिणाम प्रदान करने वाले ग्रह के लिए बाधा बन सकता है. यदि त्रिकोण या केंद्र भाव पर शुक्र या गुरु की दृष्टि हो तो राज योग अपना पूर्ण फल देता है और जातक को राजा के सुख से तुलना की जा सकती है.इस प्रकार यह देखा गया है कि विभिन्न डिग्री के परिणामों के साथ राज योग के कई योग हैं. यह मान लेना उचित नहीं है कि कुंडली में इस योग के होने मात्र से व्यक्ति राजा जैसा हो जाएगा. कई अन्य सकारात्मक और नकारात्मक कारक हैं जो व्यक्ति की जीवनशैली कैसी होगी, इसमें भूमिका निभा सकते हैं.

केन्द्र त्रिकोण से बना शुभ राजयोग 

कुंडली में विभिन्न प्रकार के राज योग बन सकते हैं जिनमें से केन्द्र और त्रिकोण में बनने वाले योग अच्छे राजयोग को दर्शाते हैं. जब किसी कुंडली में लग्न की युति केंद्र या त्रिकोण भाव के स्वामी के साथ होती है तो यह राज योग बनता है. केंद्र और त्रिकोण घरों में देवी लक्ष्मी त्रिकोण का प्रतीक हैं और भगवान विष्णु केंद्र घर के प्रतीक हैं. यह योग व्यक्ति को भाग्य का सहयोग प्रदान करता है. यह राज योग जातक को धन, यश और वैभव प्रदान करता है. इस योग में शुभ ग्रहों की भूमिका होने के कारण ही ये शुभ फल देने में सक्षम माना गया है. किंतु इसमें भी एक बात जिसमें ग्रहों की नैसर्गिकता का गुण देख लेना अच्छा होता है. इस में गुरु शुक्र चंद्रमा बुध जैसे ग्रहों की शुभता उच्च स्तर की हो तथा यह कुंडली के लिए भी शुभ ग्रह बनते हैं तो इसमें काफी सकारात्मक असर देखने को मिलते हैं. 

विपरीत राज योग

राजयोग में एक विपरित राजयोग भी विशेष है, इस योग का प्रभाव हमारे जीवन पर संघर्षों के पश्चात जब फल की प्राप्ति का अवसर मिलता है वही विपरित राजयोग का परिणाम होता है. इस योग में त्रिक भाव का स्वामी त्रिक भाव में हो या किसी भी स्थिति में योग या दृष्टि बनाने की स्थिति में हो तो विपरीत राजयोग बनता है. उदाहरण के लिए यदि अष्टम भाव का स्वामी अष्टम में छठे में या बारहवें में हो,  इसी प्रकार छठे भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो, छठे या बारहवें भाव में हो तो इन भाव के स्वामियों की युति या उनके बीच का संबंध इस योग को दर्शाता है. 

इसी प्रकार नीचभंग राजयोग भी इसी श्रेणी में स्थान पाता है. जिसमें ग्रह के नीच भंग होने की स्थिति ही इस योग का प्रभाव मिलता है. इन योगों के बनने से व्यक्ति को जीवन में कष्ट भी अधिक मिलते हैं उसके बाद स्थिति में अच्छे फल मिलते हैं इसी अनुसार खराब ग्रहों का योग भी इनमें हो तो व्यक्ति को कई प्रकार के गलत कार्यों से भी लाभ मिल सकते हैं. इस प्रकार के अन्य कई योग हैं जो दर्शाते हैं की एक शुभ तरह से बना राजयोग कितने बेहतर परिणाम दे सकता है तो खराब भाव एवं खराब ग्रहों से बने राजयोग जीवन में विपरित रुप से अपना फल देने वाले होते हैं