सूर्य और चंद्रमा की युति का त्रिक भाव पर प्रभाव

ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा का असर आत्मा और मन के अधिकार स्वरुप दिखाई देता है. किसी भी कुंडली में यदि ये दोनों ग्रह शुभस्त हों तो व्यक्ति की आत्मा और मन दोनों  ही शुद्ध होते हैं. इसके अलग यदि ये दोनों ग्रह किसी प्रकार से कमजोर पड़ते  हैं तब स्थिति विपरित रुप से काम करती है. इन दिनों का किसी रुप में प्रभावित होना चीजों में कई तरह के बदलाव का कारण बनता है. सूर्य और चंद्र जीवन में सभी प्रकार के सुख एवं आत्मसंतोष के लिए महत्वपूर्ण होता है. 

यह आपके जीवन जीने की प्रेरणा को दर्शाते हैं और रचनात्मक जीवन शक्ति को प्रभावित करता है. जैसे ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं, वैसे ही जीवन भी इन ग्रहों के चारों ओर घूमता है. जहां सूर्य राजा है वहीं दूसरी ओर चंद्रमा कुण्डली में रानी है. यह व्यक्ति के दिमाग और भावनाओं को दर्शाता है जो उस पर राज करती हैं. व्यक्ति के सोचने और महसूस करने की प्रक्रिया और दुनिया के प्रति प्रतिक्रिया सभी सूर्य एवं चंद्रमा के कारण हैं. छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति दोनों ग्रहों के लक्षणों को जोड़ती है.

सूर्य ग्रह का प्रभाव

सूर्य, प्रकाश एवं तेज से युक्त ग्रह है. सृष्टि पर इसका विशेष प्रभाव है.सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन शक्ति को दर्शाती है. यह सकारात्मकता और नकारात्मक स्वरुप में बहुत गहरा असर डालने वाला होता है. सूर्य एक विशेष ग्रह है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह जीवन को प्रभावित करता है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह मनुष्य की आत्मा को परिभाषित करता है. सूर्य की ऊर्जा का संचार व्यक्ति के जीवन को परिभाषित करता है. सूर्य साहस, आत्मविश्वास और सकारात्मकता का प्रतीक है. वैदिक ज्योतिष में इसका बहुत महत्व है. सूर्य अपनी स्थिति में स्थिर रहते हुए भी अपने चारों ओर अन्य वस्तुओं को घुमाता है. सूर्य कभी भी वक्री नहीं होता सब कुछ इसके चारों ओर घूमता है. 

ज्योतिषीय महत्व में, सूर्य को अपनी यात्रा पूरी करने में बारह महीने लगते हैं और प्रत्येक ज्योतिषीय राशि में लगभग एक महीने तक रहता है. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रह को सभी ग्रहों का स्वामी माना गया है. यह एक व्यक्ति की आत्मा और पितृत्व चरित्र को दर्शाता है. सूर्य और अन्य ग्रहों की दूरी ग्रहों की ताकत, व्यक्तियों पर इस ग्रह के प्रभाव को निर्धारित करती है. कुंडली के अनुसार पितरों पर भी सूर्य का शासन होता है. यही कारण है कि यदि सूर्य का सामना एक से अधिक अशुभ ग्रहों से हो तो कुंडली में पितृ दोष भी निर्मित हो जाता है. ज्योतिष में ग्रह में सूर्य को क्रूर ग्रह कहा गया है. यह आत्मकारक कहा जाता है, जिसका अर्थ है आत्मा का सूचक. सूर्य अहंकार, सम्मान, स्थिति, समृद्धि, जीवन शक्ति और शक्ति को दर्शाता है.

ज्योतिष ग्रह के रूप में चंद्रमा

वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है. ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा का सबसे गहरा असर मन विचलित और स्थिर करने में होता है.अब अगर मन वश में हो तो सब कुछ हल हो सकता है. लेकिन यदि मन अस्थिर हो तो कार्य करने में समस्या आती है. इसलिए चंद्रमा का प्रभाव विशेष होता है. ज्योतिष एवं खगोलीय दृष्टि से चंद्रमा का बहुत महत्व रहा है. वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा नौ ग्रहों के क्रम में सूर्य के बाद दूसरा महत्वपूण ग्रह है. वैदिक ज्योतिष में यह मन, मातृ सत्ता, मानसिक स्थिति, मनोबल, भौतिक वस्तुओं, सुख-शांति, धन, बायीं आंख, छाती आदि का कारक बनता है. ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा राशियों में कर्क और रोहिणी का स्वामी है. नक्षत्र, हस्त और श्रवण नक्षत्र. सभी ग्रहों में चन्द्रमा की गति सबसे तेज है. चंद्र पारगमन की अवधि सबसे कम होती है. यह लगभग सवा दो दिन में एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करता है. वैदिक ज्योतिष में कुंडली में चंद्र राशि की गणना अत्यंत ही महत्व रखती है. चंद्रमा ही दशा एवं भविष्यफल के लिए महत्वपूर्ण होता है. यह सबसे ज्यादा असरदार माना जाता है. 

ज्योतिष शास्त्र में जिस व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा बली होता है तो जातक को इसके सकारात्मक परिणाम मिलते हैं. चंद्रमा के बलवान होने से जातक मानसिक रूप से प्रसन्न रहता है. मन की स्थिति प्रबल होती है. वह विचलित नहीं होता. जातक अपने विचारों और निर्णयों पर संदेह नहीं करता. परिवार की बात करें तो इनके अपने माता के साथ संबंध अच्छे रहते हैं और माता का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर कुंडली में चंद्रमा कमजोर है तो आपको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिसमें मानसिक तनाव के साथ-साथ आत्मविश्वास की कमी भी शामिल है. साथ ही माता के साथ भी संबंध बहुत सुखद नहीं रहते हैं. वैवाहिक जीवन में शांति नहीं रहती है. जातक क्रोधी होता है और अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रख पाता है. जिससे जातक को निराशा का सामना करना पड़ता है. जातक की स्मरण शक्ति क्षीण होती है. साथ ही माता को भी किसी न किसी प्रकार की परेशानी बनी रहती है.

छठे भाव में सूर्य और चंद्र की युति को प्रभावित करने वाले कारक

ज्योतिष में कुंडली का छठा भाव रोग कर्ज, और शत्रुता का मुख्य स्थान है. जीवन में चुनौतियों और बाधाओं के बारे में हम इस ग्रह से अच्छे से समझ सकते हैं. यह समस्याओं से पार पाने की शक्ति देता है. अब जब यह दो ग्रह सूर्य एवं चंद्रमा छठे भाव में मौजूद होते हैं. यह दोनों ग्रह विवाद, कानूनी मामलों आदि जैसे मामलों से निपटने में मदद भी प्रदान करते हैं. छठे भाव में सूर्य-चंद्र का होना कई तरह से जीवन को गंभीरता प्रदान करता है. 

छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति दोनों ग्रहों का असर इन दोनों की शुभता मजबूती एवं निर्बलता इत्यादि बातों के आधार पर आगे रहती है. अगर कुंडली में सूर्य बलवान है तो वह अपने गुण दिखाता है और ऎसे में वह जातक को विस्तार देने में सक्षम होता है. कुंडली में अगर चंद्रमा मजबूत है, तो चंद्रमा के प्रभाव अधिक होंगे. भावनाओं के मामले में इसका अपना अलग प्रभाव देखने को मिलेगा.

राजनीति और व्यवसायों में रुचि होती है. इसके अलावा, यदि इस में करियर बनाते हैं, तो बड़ी सफलता और पहचान की उम्मीद कर सकते हैं. इन दोनों ग्रहों का शुभ असर जिस क्षेत्र में प्रयास करते हैं सफलता मिलती है. जीवन में प्रतिस्पर्धा या पदोन्नति के मामले में अनुकूल परिणामों की उम्मीद कर सकते हैं. सरकारी क्षेत्र में नौकरी के लिए भी प्रयास कर सकते हैं. छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति के साथ, नौकरी में सफलता दिलाने वाली होती है. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. शत्रु की योजनाओं को समझ पाने में सफल होते हैं. जब सूर्य छठे भाव में चंद्रमा के साथ युति योग में होता है तो आपका व्यक्तित्व करिश्माई रुप से काम करने वाला होगा. नकारात्मक रुप में छठे घर में बैठे चंद्र सूर्य का होना, बुरी नजर लगने या नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में जल्द से प्रभावित हो सकते हैं. 

व्यक्तित्व में उतार-चढ़ाव होंगे. क्रोध और भावुकता दोनों ही पक्ष में प्रबल दिखाई देंगे. व्यवहार से अहंकारी और स्वभाव से कुटिल हो सकते हैं. भले ही बहादुर और बुद्धिमान होंगे, लेकिन परिस्थितियों को समझ पाना आसान नहीं होगा. छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति का असर सेहत के लिए परेशानी देगा खांसी, जुकाम से लेकर पाचन संबंधी समस्याएं, समय-समय पर अपना असर दिखाने वाली होंगी. बचपन या तो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं या चोटों और दुर्घटनाओं के चलते अधिक प्रभावित हो सकता है.