कुंडली अस्त ग्रह कैसे और कब देता है अपना प्रभाव

ज्योतिष में ग्रहों की अस्त स्थिति काफी महत्वपूर्ण रह सकती है. सूर्य का प्रभाव ही ग्रहों को अस्त करने के लिए महत्वपूर्ण कारक बनता है. सूर्य के समीप आकर सभी ग्रहों का असर कमजोर हो जाता है. सुर्य के कारण ही ग्रह अस्त होते हैं ज्योतिष में ग्रहों की डिग्री जब एक निश्चित बिंदु पर आकर सूर्य की के समीप आती है तो ग्रहों के अस्त होने की स्थिति आरंभ होने लगती है. ग्रहों में सूर्य का ही प्रकाश सबसे अधिक तीव्र है इस कारन से सूर्य के समीप जाकर सभी ग्रह इसके समीप जाते ही अस्त होने लगते हैं. 

ग्रह कितनी डिग्री पर अस्त होते हैं 

सूर्य से अस्त होने वाले ग्रहों की डिग्री का अंतर अलग अलग होता है हर ग्रह अपनी अपनी निश्चित समय सीमा पर आकर अस्त हो जाता है. सूर्य से अस्त होने वाले सभी ग्रहों की डिग्री इस प्रकार रहती है. 

चंद्रमा जब सूर्य के समी आने लगता है और जब सूर्य देव की डिग्री अर्थात अंशों से 12 डिग्री या इससे ज्यादा समीप आ जाता है तो चंद्र अस्त होने की स्थिति में चला जाता है. 

मंगल ग्रह की स्थित जब सूर्य की डिग्री से 17 डिग्री या उससे अधिक करीब आने लगता है तो यह स्थिति सूर्य से मंगल की स्थिति अस्त होने लगती है. 

बुध ग्रह की स्थिति जब सूर्य से 13 डिग्री या उससे अधिक करीब आने लगता है तो यह स्थिति सूर्य से बुध की स्थिति अस्त होने लगती है. कुछ ज्योतिष आचार्यों अनुसार यह स्थिति 14 डिग्री का अंतर में होने पर भी बुध को अस्त होने की स्थिति का निर्धारण करती है. बुध के वक्रत्व होने पर यह सीमा 12 डिग्री के करीब के अंतर के चलते अस्त होने का समय दर्शाती है. 

बृहस्पति ग्रह की स्थित जब सूर्य की डिग्री से 11 डिग्री या उससे अधिक करीब आने लगता है तो यह स्थिति सूर्य से बृहस्पति की स्थिति अस्त होने लगती है. 

शुक्र ग्रह की स्थित जब सूर्य की डिग्री से 10 डिग्री या उससे अधिक करीब आने लगता है तो यह स्थिति सूर्य से शुक्र की स्थिति अस्त होने लगती है. शुक्र ग्रह के वक्री होने पर इस डिग्री में अंतर देखने को मिलता है तब शुक्र 8 या उससे कम डिग्री पर आकर सूर्य से अस्त होने लगता है. 

शनि की स्थिति जब सूर्य की डिग्री से 15 डिग्री के अधिक समीप पहुंच जाती है तब शनि अस्त होने की स्थिति हो जाता है.

राहु और केतु छाया ग्रह माने गए हैं, इसलिए वे कभी भी अस्त की स्थिति में प्रवेश नहीं करते हैं. बल्कि सूर्य का इनके समीप होना ग्रहण की स्थिति को उत्पन्न करने वाला होता है.

कुंडली में ग्रह के अस्त होने का फल कैसे मिलता है ? 

कुंडली का विश्लेषण करते समय किसी ग्रह के उच्च, नीच, वक्री या अस्त होने की स्थिति का मूल्यांकन किया जाना जरूरी होता है. इन बातों पर ध्यान देकर ही ग्रह के फल को समझ पाना संभव होता है. साथ ही कुंडली को सही रुप से परिभाषित किया जा सकता है.

जब कोई ग्रह अस्त होता है तो उसका प्रभाव और महत्व कम हो जाता है और वह सूर्य की स्थिति के अनुसार फल देने लगता है. ग्रह जीवन के किसी विशेष गुण या पहलू का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए जब वह अस्त होता तो उसे मजबूत करने की भी आवश्यकता पड़ सकती है. 

कोई ग्रह कब होता है अस्त ? 

इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक ग्रह जो अस्त हो जाता है, वह अपनी कुछ शक्ति खो देता है, कुंडली में ग्रह का बल कितना कम हुआ है यह एक कुंडली में कई कारकों पर निर्भर करता है, और यह केवल सिर्फ अस्त होना के आधार पर तय नहीं होता है. लेकिन इसके बावजूद अस्त का असर ग्रह को प्रभावित जरूर करता है. ग्रह जब सूर्य के करीब यात्रा करता है तोकोई ग्रह सूर्य के जितना करीब जाता है, उतना ही अधिक अस्त होता जाता है.

अस्त ग्रह का शुभ प्रभाव 

जब कुंडली में कोई शुभ ग्रह अगर सूर्य की शुभ स्थिति के चलते अस्त हो जाता है, तो एक ही समय में दो कार्य होंगे पहला ग्रह का अस्त होना और दूसरा शुभ प्रभाव से अस्त होना. जिसके द्वारा दो शुभ ग्रह एक ही घर में होकर एक-दूसरे को बल प्रदान करेंगे और कई तरह से एक-दूसरे के पूरक भी बन सकते हैं. इसलिए इस ग्रह का अस्त होना इस मामले में अधिक परेशानी नहीं देगा. 

अस्त ग्रह का अशुभ प्रभाव 

कुंडली में जब कोई शुभ ग्रह अशुभ सूर्य द्वारा अस्त हो जाता है, तो परेशानी बढ़ सकती है क्योंकि इस मामले में शुभ ग्रह का अस्त होना और अशुभ सूर्य का प्रभाव अधिक होना सकारात्मक ग्रह को प्रभावित करता है. सूर्य ऐसे में नकारात्मक फल देने वाला होगा. 

एक कुंडली में मिथुन राशि में सूर्य और बुध की युति से बुध का अस्त होने का प्रभाव देखने को मिल सकता है, और कुंडली में सूर्य और बुध दोनों के शुभ होने के कारण बुध आदित्य योग भी बन सकता है. वहीं दूसरी ओर एक अलग कुंडली में, सूर्य और बुध के समान योग से पितृ दोष का निर्माण भी हो सकता है, क्योंकि इस मामले में अगर बुध पाप प्रभाव वाला हो बुध सूर्य को पीड़ित कर सकता है. मिथुन राशि में स्थित सूर्य और बुध का एक साथ होना एक ओर संभावन अको दिखा सकता है अगर यहां सूर्य ही खराब स्थिति में हो तब खराब सुर्य का प्रभाव शुभ बुध की प्रबलता को कमजोर करके खराब फलों को दे सकता है. ऎसे में किसी ग्रह के अस्त होने की स्थिति को अनेक प्रकार से देख कर ही उसकी उचित रुप से व्याख्या की जा सकती है और उसके फलों को समझा जा सकता है.