प्रश्न की पहचान | Identitification of Prashna | Dhatu Chinta | Dhatu Chinta | Jeeb Chinta

प्रश्न कुण्डली में प्रश्न की पहचान होनी चाहिए. जिससे यह अंदाज हो सके कि प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न किस विषय से संबंधित है. पुराने तरीके में प्रश्न को तीन भागों में बाँटा जाता था. वह निम्नलिखित हैं :-

(1) धातु चिन्ता | Dhatu Chinta

इसमें धातु से संबंधित प्रश्न आते हैं. जैसे सोना, चाँदी तथा अन्य कोई कीमती वस्तु जो गुम हो गई हो. यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में 1, 4, 7, 10 राशि आती हैं तब जातक को धातु से संबंधित चिन्ता होगी.

(2) मूल चिन्ता | Mool Chinta

इसमें कृषि संबंधित, परीक्षा संबंधी, व्यवसाय से संबंधित, बुद्धि - कौशल पर आधारित प्रश्न किए जाते हैं. यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में  2, 5, 8, 11 राशि आते हैं तब प्रश्नकर्त्ता को मूल चिन्ता हो सकती है.

(3) जीव चिन्ता | Jeeb Chinta

इस वर्ग में जीवित प्राणियों से संबंधित प्रश्नों का आंकलन किया जाता है. मनुष्य, पशु-पक्षी तथा अन्य प्राणी आदि. यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में 3, 6, 9, 12 राशि आते हैं तब प्रश्नकर्त्ता को जीव चिन्ता हो सकती है.

ग्रहों को भी तीन भागों में बाँटा गया है. इनसे भी धातु, मूल तथा जीव चिन्ता का आंकलन किया जाता है. लेकिन ग्रहों धातु,मूल तथा जीव चिन्ता में बाँटने में मतान्तर है.

पहला मत | First Opinion 

सूर्य, मंगल, राहु तथा केतु से धातु चिन्ता देखी जाती है. शनि तथा बुध से मूल चिन्ता देखते हैं. चन्द्रमा, बृहस्पति तथा शुक्र से जीव चिन्ता देखते हैं.

दूसरा मत | Second Openion

शनि, मंगल, राहु तथा केतु से धातु चिन्ता, सूर्य तथा शुक्र से मूल चिन्ता, बृहस्पति, बुध तथा चन्द्र से जीव चिन्ता देखते हैं.

तीसरा मत | Third Openion

तीसरे मत के विद्वानों के अनुसार जिस चिन्ता से संबंधित लग्न हो, उससे ही संबंधित ग्रह भी देख रहें हों तो उससे संबंधित चिन्ता होगी. उदाहरण के लिए धातु संबंधी लग्न और धातु संबंधी ग्रह लग्न को देखे तो धातु चिन्ता होगी.

जीव संबंधी लग्न और जीव संबंधी ग्रह देखें तो जीव संबंधी चिन्ता होगी.

मूल संबंधी लग्न और मूल संबंधी ग्रह लग्न को देखें तो मूल चिन्ता होगी.

उपरोक्त नियमों के अतिरिक्त अन्य कई और नियम प्रश्न की पहचान के लिए बनाए गए हैं. लग्न में विषम राशि के नवाँश के अनुसार अलग चिन्ता होगी और सम राशि के नवाँश के अनुसार अलग चिन्ता होगी. आइए पहले विषम राशि के नवाँश को देखें.

विषम लग्न का पहला नवाँश है तो धातु चिन्ता

विषम लग्न का दूसरा नवाँश है तो मूल चिन्ता

विषम लग्न में तीसरा नवाँश है तो जीव चिन्ता

विषम लग्न में चौथा नवांश है तो धातु चिन्ता

विषम लग्न में पांचवाँ नवाँश है तो मूल चिन्ता

विषम लग्न में छठा नवांश है तो जीव चिन्ता

विषम लग्न में सातवाँ नवाँश है तो धातु चिन्ता

विषम लग्न में आठवाँ नवाँश है तो मूल चिन्ता

विषम लग्न में नवम नवाँश है तो जीव चिन्ता

 

उपरोक्त क्रम सम राशियों में उलटा हो जाएगा.

 

सम लग्न का पहला नवाँश है तो जीव चिन्ता

सम लग्न का दूसरा नवाँश है तो मूल चिन्ता

सम लग्न में तीसरा नवाँश है तो धातु चिन्ता

सम लग्न में चौथा नवाँश है तो जीव चिन्ता

सम लग्न में पांचवां नवाँश है तो मूल चिन्ता

सम लग्न में छठा नवाँश है तो धातु चिन्ता

सम लग्न में सातवाँ नवाँश है तो जीव चिन्ता

सम लग्न में आठवां नवाँश है तो मूल चिन्ता

सम लग्न में नवम नवाँश है तो धातु चिन्ता

उपरोक्त चिन्ताओं को नक्षत्रों के अनुसार भी देख सकते हैं. अश्विनी नक्षत्र से गणना शुरु करके क्रम से धातु, मूल, जीव चिन्ता होती है. जैसे अश्विनी नक्षत्र है तो धातु चिन्ता, भरणी नक्षत्र है तो मूल चिन्ता, कृतिका नक्षत्र है तो जीव चिन्ता होती है. बाकी सभी नक्षत्रों को भी ऎसे ही क्रम से बाँटेगें.

उपरोक्त विभाजन के अनुसार प्रश्नकर्त्ता की अन्य कई भाव-भंगिमाओं के अनुसार भी धातु, मूल तथा जीव चिन्ता का विभाजन किया जाता है. जैसे यदि प्रश्नकर्त्ता प्रश्न के समय ऊपर की ओर देखता है तो जीव चिन्ता होगी. नीचे की ओर देखता है तो मूल चिन्ता होगी. सामने की ओर देखता है तो धातु चिन्ता होगी.

इसके अतिरिक्त प्रश्नकर्त्ता, प्रश्न के समय यदि ऊपरी अंगों को छुए तो जीव चिन्ता, मध्य के अंगों को छुए तो धतु चिन्ता होगी. नीचे के अंगों को छुए तो मूल चिन्ता होगी.

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