जैमिनी ज्योतिष-आधारभूत सिद्धांत | Jaimini Astrology-General Principles

जैमिनी ज्योतिष | Jaimini Astrology

ज्योतिष के संसार में दो महर्षियों की महान देन रही है. महर्षि पराशर तथा महर्षि जैमिनी. महर्षि पराशर ने वैदिक ज्योतिष से लोगों को परिचित कराया तो जैमिनी ज्योतिष महर्षि जैमिनी की देन है. इन्होंने लगभग 11,00 सूत्रों में पूरा फल कथन सरल तथा स्पष्ट शब्दों में कह दिया है. यह सभी सूत्र व्यवहारिकता की कसौटी पर खरे उतरे हैं. जो सरल नियम, सिद्धांत तथा पद्धतियाँ इस ग्रँथ में मिलती हैं वह अन्य किसी ग्रँथ में नहीं पाई जाती हैं. 

आधारभूत सिद्धांत | General Principles 

जैमिनी ज्योतिष, पराशरी पद्धति से एकदम भिन्न है. पराशरी ज्योतिष में दशाक्रम नक्षत्रों के आधार पर होता है. जैमिनी ज्योतिष में नक्षत्रों का कोई महत्व नहीं होता है. इस पद्धति में केवल राशियों के आधार पर सारा ज्योतिष आधारित होता है. जैमिनी में भी एक से अधिक कई दशाओं का उल्लेख मिलता है. जिनमें चर दशा, स्थिर दशा, मण्डूक दशा, नवांश दशा आदि का प्रयोग मुख्य रुप से किया जाता है. इनमें से भी चर दशा का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है. आपको आगे के पाठों में सबसे पहले चर दशा से अवगत कराया जाएगा. चर दशा, जैमिनी पद्धति की प्रमुख दशा है.

इस दशा में आपको क्रम से जैमिनी कारक, स्थिर कारक, राशियों की दृष्टियाँ, राशियों का दशाक्रम, दशाक्रम की अवधि, जैमिनी योग, कारकाँश लग्न, पद अथवा आरूढ़ लग्न, उप-पद लग्न आदि के विषयों के बारे में विस्तार से तथा सरल तरीके से समझाने का प्रयास किया जाएगा. 

जैमिनी चर दशा में जैमिनी कारक | Jaimini Karaka in Jaimini Char Dasha

भचक्र में राहु/केतु को मिलाकर कुल नौ ग्रह पाए जाते हैं. जैमिनी ज्योतिष में राहु/केतु को छोड़कर अन्य सभी सातों ग्रहों को उनके अंश, कला तथा विकला के आधार पर अवरोही क्रम में लिखा जाता है. इस प्रकार सात कारक हमें प्राप्त होते हैं. 

  1. जैमिनी ज्योतिष में सभी ग्रहों के अंश, कला तथा विकला आदि की गणना भली-भाँति कर लेनी चाहिए. 
  2. सभी सातों ग्रहों को उनके अंशों के आधार अवरोही क्रम में लिखें(घटते हुए क्रम में लिखें) लिखकर एक तालिका बना लें. यदि किसी ग्रह के अंश तथा कला बराबर है तब आपको ग्रह का मान विकला तक देखकर निर्णय करना चाहिए कि कौन-सा ग्रह किस क्रम में आएगा. 
  3. सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को तालिका में सबसे ऊपर लिख देना चाहिए. उसके बाद उससे कम अंश वाले ग्रह को लिखना चाहिए और इसी प्रकार अन्य सभी ग्रहों को भी क्रम से लिखें. 
  4. सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को आत्मकारक कहा जाता है. 
  5. उसके बाद वाले ग्रह को अमात्यकारक कहते हैं. 
  6. अमात्यकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह भ्रातृकारक कहलाता है. 
  7. भ्रातृकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह मातृकारक कहलाता है. 
  8. मातृकारक के बाद वाले ग्रह को पुत्रकारक कहते हैं. 
  9. पुत्रकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह ज्ञातिकारक कहलाता है. 
  10. सबसे कम अंश वाला ग्रह दाराकारक कहलाता है. 
  • आपको समझाने के लिए हम एक उदाहरण कुण्डली बना रहें हैं. 

जन्म विवरण है :- 

  • जन्म तिथि - 19/02/1998
  • जन्म समय - 15:40Hours
  • जन्म स्थान - Delhi

 

आप स्वयं कुण्डली बनाने के लिए astrobix.com पर इस लिंक का प्रयोग कर सकते है.  इस कुण्डली में ग्रहों के कारक अंशों के अनुसार इस प्रकार बन रहे हैं.  

  • सूर्य़ उदाहरण कुण्डली में 06अंश-43कला-07विकला का है.
  • चन्द्रमा उदाहरण कुण्डली में 04अंश-08कला-38विकला का है.
  • मंगल उदाहरण कुण्डली में 25अंश-50कला-19विकला का है.
  • बुध उदाहरण कुण्डली में 04अंश-20कला-07विकला का है. 
  • गुरु उदाहरण कुण्डली में 09अंश-44कला-58विकला का है.
  • शुक्र उदाहरण कुण्डली में 27अंश-59कला-03विकला का है.
  • शनि उदाहरण कुण्डली में 23अंश-15कला-34विकला का है. 

 

उपरोक्त अंशों के आधार पर ग्रहों को अवरोही क्रम(घटते हुए क्रम में) में लिखें. आपको निम्न प्रकार से एक तालिका प्राप्त हो जाएगी. 

  • आत्मकारक - शुक्र 
  • अमात्यकारक - मंगल 
  • भ्रातृकारक - शनि 
  • मातृकारक - बृहस्पति 
  • पुत्रकारक - सूर्य 
  • ज्ञातिकारक - बुध 
  • दाराकारक - चन्द्रमा

 

उदाहरण कुण्डली में बुध तथा चन्द्रमा के अंश समान हैं. इसलिए हमने दोनों ग्रहों का कला के आधार पर विभाजन किया तो बुध की कला चन्द्रमा की कला से अधिक होने से बुध को ज्ञातिकारक का स्थान मिला और चन्द्रमा को दाराकारक का स्थान मिला. 

Meaning 

  • अंश - डिग्री(Degree)
  • कला - मिनट(Minute) 
  • विकला - सेकण्ड(Second)