रुद्राक्ष | What is Rudraksha | Importance and Magnificence of Rudraksha

रुद्राक्ष अर्थात ‘प्रभु शिव का वास’ हमारे अध्यात्मिक स्वरूप से जुडा रूद्राक्ष हमें भगवान शिव का सानिध्य प्रदान करता है. प्रभु को अपने में धारण करने का मार्ग है यह रुद्राक्ष. इस अति पवित्र वस्तु के होने से हमारे सभी दुख और कलेश दूर हो जाते हैं. इसे धारण करने से जीव अपने चित में अदभुत शक्ति का संचार पाता है. रुद्राक्ष भगवान शिव के नेत्रों से प्रकट हुई वह मोती स्वरूप बूँदें हैं जिसे ग्रहण करके समस्त प्रकृति में आलौकिक शक्ति प्रवाहित हुई तथा मानव के हृदय में पहुँचकर उसे जागृत करने में सहायक हो सकी.

रुद्राक्ष उत्पत्ति कथाएं | Rudraksha Origination Stories

वेदों, पुराणों एवं उपनिषदों में रुद्राक्ष की महिमा का विस्तार पूर्वक वर्णन प्राप्त होता है. रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है रूद्र अर्थात भगवान शिव तथा अक्ष अर्थात नेत्र इन दोनों शब्दों का युग्म करें तो इसे भगवान शिव के नेत्र रूप में रूद्राक्ष कहा जाता है. रूद्राक्ष की उत्पत्ति के संदर्भ में हमें पौराणिक आख्यानों से प्राप्त होता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के नेत्रों की जलबूंदों से हुई है. पौराणिक ग्रंथों तथा मान्यताओं के आधार पर यहां कुछ प्रमुख तथ्यों का उल्लेख किया जा सकता है जो रुद्राक्ष के जन्म को विभिन्न प्रकार से व्यक्त करता है.

इन में से एक कथा अनुसार देवर्षि नारद ने भगवान नारायण से रुद्राक्ष के विषय में जानना चाहा तो नारायण भगवान ने उनकी जिज्ञासा को दूर करने हेतु उन्हें एक कथा सुनाते हैं. वह बोले, हे देवर्षि नारद एक समय पूर्व त्रिपुर नामक पराक्रमी  दैत्य ने पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था तथा देवों को प्राजित करके तीनो लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेता है. दैत्य के इस विनाशकारी कृत्य से सभी त्राही त्राही करने लगते हैं.

ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्र आदि देवता उससे मुक्ति प्राप्ति हेतु भगवान शिव की शरण में जाते हैं भगवान उनकी दारूण व्यथा को सुन उस दैत्य को हराने के लिए उससे युद्ध करते हैं त्रिपुर का वध करने के लिए भगवान शिव अपने नेत्र बंद करके अघोर अस्त्र का चिंतन करते हैं इस प्रकार दिव्य सहस्त्र वर्षों तक प्रभु ने अपने नेत्र बंद रखे अधिक समय तक नेत्र बंद रहने के कारण उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंदें निकलकर पृथ्वी पर गिर गईं तथा उन अश्रु रूपी बूंदों से महारुद्राक्ष की उत्पत्ती हुई.

एक अन्य मान्यता अनुसार एक समय भगवान शिव हजारों वर्षों तक समाधि में लीन रहते हैं लंबे समय पश्चात जब भोलेनाथ अपनी तपस्या से जागते हैं. तब भगवान शिव की आखों से जल की कुछ बूँदें भूमि पर गिर पड़ती हैं. उन्हीं जल की बूँदों से रुद्राक्ष की उत्पत्ति होती .

इस प्रकार एक अन्य कथा अनुसार एक बार दक्ष प्रजापति ने जब एक महायज्ञ का आयोजन किया तो उसने अपनी पुत्री सती व अपने दामाद भगवान शंकर को नहीं बुलाया इस पर शिव के मना करने के बावजूद भी देवी सती उस यज्ञ में शामिल होने की इच्छा से वहाँ जाती हैं किंतु पिता द्वारा पति के अपमान को देखकर देवी सती उसी समय वहां उस यज्ञ की अग्नि में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देती हैं. पत्नी सती की जली हुई देह को देख भगवान शिव के नेत्रों से अश्रु की धारा फूट पड़ती है. इस प्रकार भगवान शिव के आँसू जहाँ-जहाँ भी गिरे वहीं पर रूद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हो जाते हैं.

रुद्राक्ष का महत्व | Importance of Rudraksha

इस प्रकार यह सभी कथाएं चाहे किसी भी रूप में वर्णित हों किंतु इनमें से एक बात सपष्ट रूप से प्रमाणित होती है कि रुद्राक्ष भगवान शिव के नेत्रों से गिरीं जल बूँदें हैं जो संसार के दु:खों को दूर करने के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद हैं. रुद्राक्ष सिद्धिदायक, पापनाशक, पुण्यवर्धक, रोगनाशक, तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है. शिव पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष या इसकी भस्म को धारण करके 'नमः शिवाय' मंत्र का जप करने वाला मनुष्य शिव रूप हो जाता है.