किसी भी व्यक्ति के लिए उसका भाग्य बली होना शुभ माना जाता है. भाग्य के बली होने पर ही व्यक्ति जीवन में ऊंचाईयों को छू पाने में सफल रहता है. यदि भाग्य ही निर्बल हो जाए तब अत्यधिक प्रयास के बावजूद व्यक्ति को संतोषजनक परिणाम नहीं मिलते हैं. किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में उसका भाग्य भाव, भाग्येश, तथा भाग्य भाव को प्रभावित करने वाले ग्रह महत्व रखते हैं. जन्म कुंडली में नवम भाव से भाग्य का आंकलन किया जाता है.

किसी भी जन्म कुण्डली में जन्म लग्न से नौवीं राशि व चंद्र लग्न से नौंवी राशि महत्वपूर्ण होती है. क्योकि यह राशि भाग्य भाव अर्थात नवम भाव में आती है. जन्म लग्न अथवा चंद्र लग्न में से जो लग्न बली होता है उससे भाग्य भाव की गणना की जानी चाहिए. जन्म कुंडली में भाग्य भाव का स्वामी किस भाव में गया है आदि बातों का विचार करना चाहिए. भाग्येश का केन्द्र अथवा त्रिकोण आदि भावों में जाना शुभ प्रदान करने वाला माना गया है. भाग्येश चाहे बली हो अथवा अल्पबली हो तब भी वह योगकारक ही कहा जाता है.

नवम भाव अथवा नवमेश का संबंध किसी भी तरह से केन्द्र, त्रिकोण, धन भाव आदि से बन रहा हो तब इसे अत्यधिक शुभ माना गया है. यह उत्तम अवस्था होती है, 3 व 11 भाव से नवम भाव का संबंध बनने पर यह मध्यम स्थिति बनती है और छठे, आठवें व बारहवें भाव से नवम भाव का संबंध बनने पर सबसे खराब स्थिति मानी गई है. एक बात लेकिन तय है कि भाग्येश अति शुभ या अति अशुभ हो, वह सदा शुभ फल देने वाला ही माना जाता है.

भाग्योदय कहाँ हो सकता है | Bhagyodaya in Janam Kundli

हर व्यक्ति के भाग्योदय का स्थान अलग होता है, कोई अपने जन्म स्थान पर ही भाग्य का उदय पाता है तो किसी का अपने जन्म स्थान के नजदीक भाग्य का उदय होता है तो किसी का जन्म स्थान से बहुत दूर लेकिन अपने ही देश में होता है और कुछ लोगों का भाग्योदय अपने देश से बाहर विदेशो में होने की संभावना बनती है.

  • बादनारायण मुनियों के अनुसार, भाग्य भाव पर अपने स्वामी ग्रह की ही दृष्टि हो अथवा भाग्य भाव में ही भाग्येश स्थित हो तब व्यक्ति का भाग्योदय उसके अपने ही देश में होता है.
  • यदि भाग्य भाव पर उसके स्वामी की दृष्टि ना हो, योग भी ना हो अथवा अन्य किसी भी ग्रह की दृष्टि ना हो तब व्यक्ति का भाग्योदय अपने जन्म स्थान से दूर परदेश में होता है.
  • यदि कोई बली कारक ग्रह तृतीय भाव में स्थित होकर नवम भाव को देखे या लग्न अथवा पंचम भाव में स्थित होकर नवम भाव को देखे तब व्यक्ति के भाग्य में विशेष रुप से वृद्धि होती है. लग्न अथवा पंचम से तो केवल बृहस्पति ही नवम भाव को दृष्ट करेगा.