बृहस्पति को समस्त ग्रहों में शुभ ग्रह माना गया है. इसी के साथ इन्हें ज्ञान, विवेक और धन का कारक माना जाता है. इस बात से यह सपष्ट होता है कि अगर कुण्डली में गुरू उच्च एवं बली हो तो स्वभाविक ही वह शुभ फलों को देता है. बृहस्पति को नान टेक्निकल ग्रह कहा गया है यदि दशमेश का संबंध इससे बनता है तो यह जातक को नान टेक्निकल क्षेत्र से जोड़ता है और पाप ग्रहों का प्रभाव आने पर मिले जुले फल देने वाला बनता है, परंतु कुण्डली में खराब स्थिति में हो तो शुभता में कमी के संकेत देता है, जातक को अपने मनोकुल फल नहीं मिल पाते हैं.

बृहस्पति सफलता और धन सम्पति देता है. जातक प्रसिद्धि, खुशहाली को पाता है, गुरू जनों का साथ मिलता है, विद्वता व सदगुणों का विकास होता है. कुण्डली में गुरू की अनुकूल स्थिति होने से जातक के लिए शुभता का आगमन होता है. जीवन में यश-कीर्ति पाता है. जातक को राजा तुल्य जीवन जीने का अवसर मिलता है. अपनी दशा या अन्तर्दशा में अच्छे फल देता है. शत्रुओं पर विजय मिलती है, सप्तम भाव में होने से सामाजिक छवि बेहतर बनती है.

जातक में चुम्बकीय आकर्षण आता है, नेतृत्व के गुणों का विकास होता है. गुरू यदि चंद्रमा के साथ युति में केन्द्र भाव में स्थित हो तो जातक के व्यक्तित्व में आकर्षण का भाव देखा जा सकता है. बृहस्पति द्वारा प्राप्त होने वाले शुभाशुभ फलों में गुरू का स्वामि ग्रह महत्वपुर्ण भूमिका निभाता है. गुरू जिस राशि में स्थित है उस राशि का स्वामी ग्रह कुण्डली में किस स्थिति में है इस पर भी बृहस्पति द्वारा प्राप्त होने वाले फल निर्भर करते हैं. गुरू का राशिश जन्म कुण्डली में उच्च या स्वराशि का होकर केन्द्र अथवा त्रिकोण में स्थित हो तो शुभ फलों की प्राप्ति है .

यह स्थिति व्यक्ति की मानसिकता और व्यक्तिगत भावनाओं में संतुलन लाने का प्रयास करती है. जातक के लिए सौभाग्य का फलादेश मिलता है और उसके कर्मों में भी शुभता आती है. अपने में धैर्य और सहनशीलता के गुणों को भी पाने में सहायक बनता है. इन्हें घूमने फिरने का शौक भी खूब होता है. विद्वानों का साथ मिलता है जातक सदकर्मों में युक्त और सदाचार को निभाने में विश्वास रखने वाला होता है.

बृहस्पति ग्रह कानून से संबंध रखने वाला होता है. यदि जन्म कुण्डली में बृहस्पति बलवान होकर अष्टमेश या एकादशेश हो तथा बुध या शुक्र के साथ मिलकर कर्म क्षेत्र को प्रभावित कर रहा हो तो जातक वकील या एडवोकेट के पद को पा सकता है इसके साथ लग्न या लग्नेश का शामिल होना भी बहुत अनुकूल होता है.

बृहस्पति का मंगल से संबंध बन रहा हो तो व्यक्ति फैजदारी से संबंधित कामों में शामिल होता है. यदि कुण्डली में इनकी स्थिति मजबूत है तो यह स्थिति जातक को न्यायाधीश का पद भी दिला सकती है. वाक चातुर्य में जितना महत्व गुरू का रहा है उतना ही बृहस्पति का सहयोग भी काम आता है. जब कुण्डली में गुरू दूसरे या पंचम का स्वामी होकर उच्च के बुध के साथ कर्म भाव का द्योतक होता है तो व्यक्ति वाणी के कौशल द्वारा आजीविका कमाने वाला बनता है. अध्यापक या वकील के क्षेत्र में काम कर सकता है.

जन्म कुण्डली में बृहस्पति दशम भाव का स्वामी होकर जब नवमेश, द्वादशेश या पंचमेश से संबंध बनाता है तो जातक धर्म के कार्यों द्वारा धनार्जन करता है. व्यक्ति मंदिर, देवाल्य, धर्मशाला या पुरोहित कर्म करने वाला हो सकता है.

बृहस्पति धन का कारक व आर्थिक उन्नती देने में सहायक बनता है. जब कुण्डली में बृहस्पति द्वितीयेश व एकादश भावों का स्वामी होकर लग्न, लग्नेश पर प्रभाव डालता हुआ दशम भाव से संबंध बनाता हो तो व्यक्ति बैंक अधिकारी, चल सम्पत्ति का से जुडा़ काम करके पैसा कमा सकता है अथवा किराया, सूद ब्याज द्वारा जीविकोपार्जन कर सकता है.

गुरू को मंत्रालय व राज्य से संबंधित माना गया है ऎसी स्थिति में यदि बृहस्पति नवमेश होकर बली अवस्था में हो लग्न या लग्नेश के साथ संबंध बना रहा हो तथा दशम भी इसमें अपनी भागीदारी दे रहा हो तो जातक को राज्य से धन की प्राप्ति होती है. व्यक्ति उच्च राज्यअधिकारी होकर धनोपार्जन करता है.

जन्म कुण्डली में गुरू और शुक्र एक दूसरे के साथ संबंध बनाते हों और लग्न या लग्नेश पर प्रभाव डालते हों तथा शनि का भी इसमें दशमेश होकर प्रभाव आ रहा हो तो व्यक्ति वकालत से जुड़ा हुआ हो सकता है और तर्कता पूर्ण विचार विमर्श करने वाला होता है.