वैदिक ज्योतिष में बनने वाले योगों द्वारा धन संबंधी मामलों को समझने में बहुत आसानी होती है. जैसे की जातक के जीवन में कौन सी ग्रह दशाएं ऎसी हैं जो उस धन प्राप्ति में मददगार हो सकती हैं और कौन सी उसके लिए आर्थिक हानि का कारण बन सकती है. व्यक्ति में यह जानने की चाह तो सदैव ही बनी रहती है की उसकी आर्थिक स्थिति कब बेहतर बनेगी या उसे अपनी आर्थिक समस्याओं कब राहत मिल सकेगी. इसके लिए यह समझना जरूरी है कि जन्म कुण्डली में कौन सी दशाएं लाभ देने वाली होती हैं और कौन से ग्रहों के प्रभाव से उसे परेशानियों और अचानक से होने वाले नुकसान को सहना पड़ सकता है.

  • वैदिक ज्योतिष में पराशरी नियमों को समझने का प्रयास करें तो हम काफी हद तक इस तथ्य को समझ सकेंगे कि आर्थिक स्थिति का निर्धारण किस प्रकार से किया जाए. पराशर जी के नियमानुसार जो ग्रह केन्द्र और त्रिकोण के स्वामी होते हैं तथा अन्य शुभ भावों के स्वामी हो तो कुण्डली में बनने वाली यह स्थिति जातक को वांछित सुख की प्राप्ति कराने में सहायक होती है.
  • पराशरीय राजयोग कारक अथवा अन्य पराशरी शुभ ग्रह उन ग्रहों की अपेक्षा जो ऎसे राज योगकारक या शुभ नहीं हैं अधिक धन दे सकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
  • कुण्डली में जो भाव पाप प्रभाव वाले अथवा खराब कहे जाते हैं वह और उनके स्वामी अगर केवल पाप प्रभाव में हों तो भी पापत्व के नाश द्वारा शुभ तत्व और धन की प्राप्ति में बहुत सहायक बन सकते हैं.
  • अच्छे और बुरे ग्रहों का निर्धारण करने पर हम उन ग्रहों की महत्ता को समझ सकते हैं. इसलिए ग्रहों के मूल्यांकन समय इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि एक ही लग्न के योग कारकों का स्तर अलग- अलग हो सकता है क्योंकि जहां एक कुण्डली में योगकारक साधारणत: बली अवस्था में है वहीं दूसरी स्थिति में वह तीनों ही लग्नों से योगकारक निकलता है और प्रमुख रूप से मजबूत स्थिति को पाता है.
  • किसी भी कुण्डली में आर्थिक स्थिति का स्तर जांचने हेतु इन बातों को समझने के लिए शुभ धनदायक योगों में से कितने योग उस कुण्डली में उपस्थित हैं और जो योग हैं उन योगों की संख्या जितनी ज्यादा होगी उतना जी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार रहेगा.
  • जन्म कुण्डली में लग्न का, दूसरे भाव, नवें भाव और एकादश भाव के स्वामियों का मजबूत स्थिति में होकर परस्पर एक दूसरे को युति अथवा दृष्टि संबंधों द्वारा प्रभावित करना आर्थिक स्थिति के लिए उत्तम माना जाता है.
  • एक अन्य नियम अनुसार बुरे भावों का अर्थात 3, 6, 8, और 12 के स्वामियों का अपनी राशियों से अनिष्ट भावों में बैठना या दूसरे बुरे भावों में बैठना तथा पाप ग्रहों द्वारा ही संबंध बनाने से विपरित राजयोग जैसे फलों की प्राप्ति संभव हो सकती है.
  • लग्न के स्वामी और चंद्र लग्न के स्वामी तथा सूर्य लग्न के स्वामियों का परस्पर एक दूसरे से युति में होना अथवा दृष्टि संबंध बनाना एक अच्छे धन योग को दर्शाने में सहायक होता है.
  • चार या चार से अधिक भावों का अपने स्वामियों द्वारा दृष्ट होना भी कुण्डली की मजबूती और धन योग में सहायक बनता है.
  • किसी भी उच्च ग्रह का शुभ स्थान में होना और उस स्थान के स्वामी का स्थान भी उच्चता वाला हो जाना ऎसी स्थिति में ग्रह अधिक शुभ आर्थिक स्थिति लाभ देने में सक्षम हो जाता है.
  • ग्रहों की स्थिति का मूल्यांकन उनकी महादशा में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. यह मूल्यांकन विभिन्न प्रकार से घटता-बढ़ता जाता है यदि कोई ग्रह बुरे स्थान में होने के कारण अथवा शत्रु राशि में स्थित हो या बहुत कम अंशों में हो तथा पाप युति या दृष्टि से प्रभावित हो तो उक्त ग्रह की दशा परेशानी और धन हानि का संकेत दे सकती है.