ज्योतिष में द्रेष्काण की महत्ता के बारे में काफी कुछ बताया गया है. द्रेष्काण में किस ग्रह का क्या प्रभाव पड़ता है इस बात को समझने के लिए ग्रहों की प्रवृत्ति को समझने की आवश्यकता होती है. जिनके अनुरूप फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है तथा जिसके फलस्वरूप जातक के जीवन में होने वाले बदलावों और घटनाओं को समझ पाना आसान होता है.

सूर्य का स्व:द्रेष्काण में जाने का नियम | Principles Related to Sun Entering its own Dreshkan

सूर्य अपने ही द्रेष्काण में होना अर्थात किसी ग्रह का स्वयं के द्रेष्काण में होना जातक उसकी स्थिति को अधिक प्रभावशाली बनाने में सक्षम होता है. जातक की कुण्डली में यह स्थिति उसके प्रभावों को समझने में काफी सहायक बनती है. यह स्थिति ग्रह को बली बनाने में सहायक होती है. जातक के जीवन में इस स्थिति का प्रभावशाली रूप उभर कर सामने आता है. इस स्थिति के कारण ग्रहों को बल मिलता है तथा ग्रह की शुभता को बढ़ाने में यह अपना महत्वपूर्ण योगदान देने में सहायक होती है.

सूर्य यदि अपने ही द्रेष्काण में जाए तो सूर्य को इस स्थिति के कारण अधिक बल प्राप्त होता है. द्रेष्काण कुण्डली में सूर्य की यह स्थिति में तीन कारणों से हो सकती है, पहला - सूर्य यदि मेष राशि में 10 से 20 अंशों तक का हो. दूसरा - दूसरा कारण की सूर्य अपनी ही राशि में अर्थात सिंह राशि में 0 से 10 अंशों तक का हो और तीसरा - कारण की सूर्य धनु राशि में 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित हो. कुण्डली में बनने वाली यह स्थिति सूर्य को बली बनाती है.

सूर्य का अपने ही द्रेष्काण में होने का प्रभाव | Effects of Sun in its own Dreshkan

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार किसी भी ग्रह का अपने द्रेष्काण में होना अच्छा माना जाता है. सूर्य का सूर्य के द्रेष्काण में होना सूर्य को मजबूत बनाता है अब यह स्थिति उसके किस भाव में बन रही है यह देखने पर ही ग्रहों के प्रभावों को समझा जा सकता है जो एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य है, इससे सूर्य के प्रभाव में तेजी आती है. सूर्य सात्विक, राजा( राज्य का अधिकारी), तेजोमय, अग्नि से युक्त, प्रचंडताप युक्त ग्रह है. इस ग्रह के बली होने पर जातक को इसके प्रभाव का दोगुना फल प्राप्त होता है.

चमत्कार चिंतामणि, सारावली जैसे अनेक ग्रंथों में सूर्य के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है. जिसमें सूर्य संबंधी कुछ महत्वपूर्ण बातें समान ही रही हैं जिनके अनुसार सूर्य के फल कथन को समझने में आसानी होती है.

सिंह राशि में 0 से 10 अंशों तक | When Sun is in Leo Sign from 0 to 10 Degrees

सूर्य के सिंह राशि में 0 से 10 अंशों तक होने पर यह स्थिति सूर्य को स्वराशि द्रेष्काण बनाती है. अपनी ही राशि में होने पर सूर्य को बल की प्राप्ति होती है और अपनी राशि के गुणों द्वारा स्वयं में वृद्धि पाता है. पिता व पित्तरों का प्रतिनिधि सूर्य कुण्डली में बली होने पर इनसे आशिर्वाद की प्राप्ति में सहायक होता है. सूर्य राजा है और सरकार का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए राज्य तथा देशों के प्रमुखों अधिकारियों से संबंधों के बारे में यह प्रमुख स्थान रखता है इसलिए इस द्रेष्काण में होने पर जातक को राज्य की ओर से लाभ की प्राप्ति हो सकती, वह सरकार की ओर से यात्राओं पर जा सकता है.

व्यक्ति साहसी बनता है किंतु एकांत प्रिय भी हो सकता है. स्वभाव से क्रोधी और विशिष्ट क्रियाओं में निपुण होता है. शत्रु का नाश करने वाला होता है. कामों को में प्रविणता पाने वाला तथा सदैव आगे रहने की चाह रखने वाला होता है. जातक स्वयं में मस्त रहने वाला होता है. जीवन को अपने अनुसार जीने की चाह रखता है. शूरवीर और भय से रहित रहता है. गम्भीर विचारों वाला होता है, अपनी बातों पर अडिग तथा कभी-कभी कुछ अंहकारी भी हो सकता है. हष्ट पुष्ट देह पाता है, व्यक्ति में भीड़ से अलग दिखने की चाह रहती है.

मेष राशि में 10 से 20 अंशों तक | When Sun is in Aries Sign from 10 to 20 Degrees

सूर्य यदि मेष राशि में 10 डिग्री से 20 डिग्री तक के मध्य में स्थित हो तो जातक को सूर्य के फलों में मेष राशि के प्रभाव भी प्राप्त होते हैं इस स्थिति में सूर्य अपनी सर्वोच्च स्थिति को पाता है. सूर्य के इस द्रेष्काण में होने से जातक अस्त्र शस्त्रों का जानकार बनता है. जातक के गुणों में वृद्धि होती है. व्यक्ति अपनी कृतियों और रचनाओं के कारण प्रसिद्धि पाता है तथा उसकी कलात्मक क्षमता में भी वृद्धि होती है.

सूर्य के मेष राशि के द्रेष्काण होने पर व्यक्ति के व्यवहार में गुस्से की अधिकता और किसी भी काम को जब तक समाप्त न कर ले तब तक चैन से न बैठ पाने की जो व्यग्रता रहती है वह इस राशि के द्रेष्काण में जाने से बढ़ जाती है. अत्यधिक तेज स्वभाव होना या जल्द ही गुस्सा हो जाना व्यक्ति की प्रकृति में देखा जा सकता है. व्यक्ति युद्ध संबंधी कामों में कुशल होता है, वह युद्धप्रिय हो सकता है. जिसमें शक्ति का समावेश हो ऎसे कार्य उसे अधिक प्रिय लग सकते हैं. सात्विकता के साथ ही उसमें ओजस्विता और अंह की पुष्टि भी हो सकती है.

जातक में भी स्थाईत्व का अभाव रह सकता है. वह भ्रमण करने का शौकिन हो सकता है तथा साहसिक कार्यों में रूचि रख सकता है. पित्त की अधिकता हो सकती है. रक्तविकार की संभावनाएं भी रहती हैं. जातक के चेहरे पर तेज रहता है. राज्य व पिता से समर्थन की प्राप्ति होती है. रोगों से लड़ने की क्षमता भी अच्छी रहती है.

धनु राशि में 20 से 30 अंशों तक | When Sun is in Sagittarius Sign from 20 to 30 Degrees

सूर्य के धनु राशि में 20 से 30 अंशों तक होने पर जातक आर्थिक संपन्नता को पाता है, स्वतंत्र विचारधार वाला होता है तथा किसी कि अधिनता में बंधे रहना इन्हें पसंद नहीं होता है. काम में पराक्रम दिखाने वाला होता है तथा सिद्धांतों पर चलने वाला होता है. परिवर्तन की लालसा रखता है, दार्शनिक और अन्वेषक हो सकता है. उत्साहजनक, सकारात्मक प्रकृति के होते हैं और दोस्त बनाने में भी आगे रहता है.

धनु राशि के प्रभाव में होने पर जातक में एक सात्विकता के साथ-साथ ही ओजस्विता भी झलकती है उसके गुणों में दूसरों की सहायता करने की प्रवृत्ति भी देखी जा सकती है. जातक मित्र की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है व एक अच्छे मित्र के रूप में सामने आता है तथा बदले में उपकार की उम्मीद नहीं रखता है, इनमें दया भावना नि: स्वार्थ होती है. दूसरे लोगों की योजनाओं में हस्तक्षेप नहीं करते और इनमें अधिकार जताने या जलन की प्रवृत्ति नहीं होती है.

इस द्रेष्काण में जातक अस्थिर चित्त वाला हो सकता है उसमें परदेसगमन की चाह बनी रहती है. साथ ही जातक धार्मिक यात्राओं को करने वाल होता है. परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने की प्रवृत्ति उसमें रहती है. वह अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होता है. कभी कभी जातक मुखिया का भार भी उठाने वाला बनता है. जातक में धार्मिक कार्यों के प्रति रुझान अधिक देखा जा सकता है वह कर्म की महत्ता को समझता है.