ज्योतिष में कुण्डली की उपयोगिता को समझने हेतु अन्य तथ्यों के आधारभूत सिद्धांतों को जानकर ही फलित करने में सहायता प्राप्त होती है. षडवर्ग राशि, द्रेष्काण, नवांश, द्वादशांश और त्रिशांश में राशि तथा द्रेष्काण दो ऎसे वर्ग होते हैं जिनका उपयोग पाश्चात्य ज्योतिष में भी किया जाता है. द्रेष्काण के अनुरूप होने पर जातक घूमने फिरने का पता चलता है तथा उसे अपने बंधुओं से सुख की कैसी प्राप्ति होती है इस बात को समझा जा सकता है.

द्रेष्काण विचार द्वारा जातक के भाई बहनों की प्राप्ति का पता चलाया जा सकता है उसके भाई होंगे या बहनें अधिक होंगी. किस का साथ उसे अधिक प्राप्त होगा या किस के साथ वह अधिक दूरी रखने वाला हो सकता है. इसी के साथ आर्थिक संपन्नता में वह कैसे सहायक बन सकते हैं या उनसे जातक को क्या शुभ लाभ प्राप्त हो सकते हैं इत्यादि तत्थों के समझने हेतु द्रेष्काण बहुत उपयोगी माना जाता है.

द्रेष्काण तालिका | Dreshkona Table

राशि पहला द्रेष्काण (0 से 10 अंश तक) दूसरा द्रेष्काण (10 से 20 अंशों तक) तीसरा द्रेष्काण (20 से 30 अंशों तक)
मेष मेष(मंगल) सिंह(सूर्य) धनु(गुरू)
वृष वृष(शुक्र) कन्या(बुध) मकर(शनि)
मिथुन मिथुन(बुध) तुला(शुक्र) कुम्भ(शनि)
कर्क कर्क(चंद्रमा) वृश्चिक(मंगल) मीन(गुरू)
सिंह सिंह(सूर्य) धनु(गुरू) मेष(मंगल)
कन्या कन्या(बुध) मकर(शनि) वृष(शुक्र)
तुला तुला(शुक्र) कुम्भ(शनि) मिथुन(बुध)
वृश्चिक वृश्चिक(मंगल) मीन(गुरू) कर्क(चंद्रमा)
धनु धनु(गुरू) मेष(मंगल) सिंह(सूर्य)
मकर मकर(शनि) वृष(शुक्र) कन्या(बुध)
कुम्भ कुम्भ(शनि) मिथुन(बुध) तुला(शुक्र)
मीन मीन(गुरू) कर्क(चंद्रमा) वृश्चिक(मंगल)

जन्म कुण्डली में 0 से 10 अंश के बीच में कोई ग्रह है तो वह द्रेष्काण कुण्डली में उसी राशि में स्थित माना जाता है जिस राशि में वह जन्म कुण्डली में होता है. इसके दूसरे द्रेष्काण में कुण्डली में10 से 20 अंश के मध्य कोई ग्रह स्थित है तो वह अपनी राशि से पाँचवीं राशि में जाता है और तीसरे द्रेष्काण में यदि कोई ग्रह कुण्डली में 20 से 30 अंश के मध्य स्थित है तो द्रेष्काण कुण्डली में वह ग्रह अपनी राशि से नवम राशि में जाता है.

पहला द्रेष्काण नारद कहलाता है, दूसरा द्रेष्काण अगस्त्य कहा जाता है तथा तीसरा द्रेष्काण दुर्वासा कहलाता है. द्रेष्काण कुण्डली से छोटे बहन भाइयों के बारे में विचार किया जाता है. द्रेष्काण द्वारा जातक के भी बहनों के सुख व उने साथ संबंधों के बारे में समझा जा सकता है. इसके अतिरिक्त जातक के संबंधों का पता चलता है.

इन द्रेष्काण में ग्रहों की भूमिका का भी अपना विशेष महत्व होता है. ग्रहों के अनुरूप जातक को फलों की प्राप्ति होती है. जैसे पहले द्रेष्काण को समझने पर इससे जातक के स्वभाव उसके सहयोगात्मक व्यवहार के बारे में जाना जा सकता है. यह द्रेष्काण व्यक्ति को सरल हृदय का देश विदेश में भ्रमण करने वाला बना सकता है व्यक्ति की प्रवृत्ति भी खूब चंचल हो सकती है तथा स्वभाव से वाचाल हो सकता है.

वह कथन अभिव्यक्ति में प्रवीणता पा सकता है तथा धर्मार्थ के कामों को करने की इच्छा रख सकता है. इसी के अनुरूप दूसरे द्रेष्काण में होने पर व्यक्ति साहस से पुर्ण और दूसरों का हितैषी होता है. मन से मजबूत व दृढ़ संकल्प करने वाला होता है. शुभता वाला आचरण करने वाला हो सकता है तथा परोपकार के कार्यों की ओर अग्रसर रहता है.

इसी प्रकार तीसरे द्रेष्काण में जातक का स्वभाव क्रोध से युक्त हो सकता है जिस कारण संबंधों में भी तनाव उत्पन्न हो सकता है. व्यक्ति मुंहफट भी हो सकता है उसमें धैर्य की कमी रह सकती है. जातक में लोक कल्याण की भावना भी खूब होती है और वह अपनी मेहनत परिश्रम के बल से सफलता पाने में भी सफल होता है.