कोई ग्रह कुण्डली में किस अवस्था में है यदि ग्रह नीच का है, वक्री है, पाप ग्रहों के साथ है या इनसे दृष्ट है, खराब भावों में स्थित है, षडबल में कमजोर है, अन्य अवस्थाओं में निर्बल हो इत्यादि तथ्यों से ग्रह के कमजोर होने कि स्थिति का पता लगाया जा सकता है. ग्रह के कमजोर या बलहीन होने पर उसके शुभत्व में कमी आती है और उक्त ग्रह अपने पूर्ण प्रभाव को देने में सक्षम नहीं हो पाता.

बृहस्पति के प्रथम भाव में कमजोर होने पर होने के कारण जातक के आत्मविश्वास में कमी रहती है. फैसले लेने में संकोची होता है. बलहीन गुरू ज्ञान में कमी देता है व्यक्ति में समझ का दायरा सीमित रह सकता है.

दूसरे भाव में स्थित बलहीन गुरू के होने पर पैतृक संपति का विवाद झेलना पड़ सकता है. धन की हानि हो सकती है. जातक को अपने परिश्रम द्वारा ही कुछ लाभ मिल सकता है. व्यक्ति में वाक चातुर्य नहीं आ पाता. परिवार मे विवाद बने रहते हैं.

तीसरे भाव में बलहीन गुरू के होने पर भाई बहनों का सुख नहीं मिलता या भाई बहनों की स्थिति ठीक नहीं रहती. परिश्रम करने से बचने का प्रयास करता है.

चतुर्थ भाव में होने पर बलहीन गुरू इस भाव के शुभ तत्वों में कमी आती है. इसके प्रभाव से माता का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है. मन में अशांति का भाव भी बना होता है. सुख सुविधाओं में कमी का अनुभव हो सकता है. माता से दूरी हो सकती है.

पंचम भाव में कमजोर चंद्रमा के होने से जातक को शिक्षा में कमी का अनुभव करना पड़ सकता है. बौद्धिकता का स्तर कम रहता है. एकाग्रता में कमी भी हो सकती है. संतान की ओर से दुख की प्राप्ति होती है. पांचवा भाव कमजोर स्थिति को पाता है.

छठे भाव में बलहीन गुरू के होने से जातक का मामा पक्ष से दूरी रह सकती है. रोग,ऋण व शत्रु आप पर हावी हो सकते हैं. आपका शौर्य कम होता है.

सातवें भाव में बलहीन गुरू के होने से विवाह विलंब से हो सकता है, जीवन साथी के साथ अनबन एवं मतभेद उभर सकते हैं, साथी के सुख में कमी आती है या जीवन साथी से दूरी भी रह सकती है. सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाए रखने में काफी परिश्रम करना पड़ता है.

आठवें भाव में गुरू बलहीन होकर ससुराल पक्ष से तनाव की स्थिति दे सकता है. कार्यों में रूकावट देता है, दुर्बलता व स्वास्थ्य में कमी होती है. आयुष को खतरा बना रहता हैं.

नवम भाव कमजोर बृहस्पति के होने से धार्मिक कार्यो मे रुचि नहीं रहती तथा भाग्य में अड़चनें आती हैं. पिता को तनाव या स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. गलत कार्यों की ओर झुकाव रख सकता है.

दसवें भाव में बलहीन सूर्य के होने से व्यवसाय के क्षेत्र में उतार चढाव बने रह सकते हैं. कार्य मे सफलता नहीं मिलती हो, काम बदलते रहते हो और एक कार्य में टिकाव नहीं मिल पाता.

एकादश भाव में बलहीन गुरू के होने पर बड़े भाई से तनाव या दूरी रह सकती है. लाभ में कमी होती है.

द्वादश भाव में कमजोर गुरू के होने पर खर्चों में वृद्धि रह सकती है. नेत्र संबंधी तकलीफ भी हो सकती है. शय्या सुख में कमी आती है.