वैदिक ज्योतिष अत्यधिक व्यापक क्षेत्र है. कुण्डली का विश्लेषण करना चुनौती भरा काम होता है. किसी भी कुण्डली को देखने के लिए बहुत सी बातों का विश्लेषण करके तब किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए. कुण्डली विश्लेषण में कुण्डली के योग महत्वपूर्ण होते हैं. यदि किसी कुण्डली में शुभ योगों का निर्माण हो रहा है तब उन योगों में शामिल ग्रह की दशा/अन्तर्दशा में व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति अवश्य होती है. वैसे तो वैदिक ज्योतिष में अच्छे तथा बुरे हजारों योगों का जिक्र मिलता है. लेकिन इन योगों में राजयोग अधिकतर कुण्डलियों में मिल जाते हैं.

केन्द्र भाव में राजयोग का निर्माण | Formation of Rajyoga in the center house

कुण्डली में स्थित पहला, चौथा, सातवाँ और दसवाँ भाव विष्णु स्थान कहलाते हैं. इन स्थानों को वैदिक ज्योतिष में केन्द्र भाव के नाम से भी जाना जाता है. इसी प्रकार आपकी कुण्डली के पंचम भाव तथा नवम भाव को लक्ष्मी स्थान कहते हैं. वैदिक ज्योतिष में पंचम तथा नवम भाव को त्रिकोण स्थान के नाम से भी जाना जाता है.

विष्णु जी बिना लक्ष्मी के अधूरे जान पड़ते हैं. इसलिए जब केन्द्र अर्थात विष्णु स्थान का संबंध त्रिकोण अर्थात लक्ष्मी स्थानों से बनता है तब आपकी कुण्डली में राजयोग का निर्माण होता है. कुण्डली में स्थित राजयोगों को शुभ माना जाता है. यह राजयोग आपको तभी फल देगें जब आपके जीवन में इन राजयोगों में शामिल ग्रह की दशा/अन्तर्दशा आती है.

त्रिकोण भाव में राजयोग का निर्माण | Formation of Rajyoga in triad houses

लग्न, पंचम तथा नवम भाव के संबंध से बनने वाले राजयोग  कुण्डली के पहले भाव का स्वामी यदि पंचम या नवम भाव में स्थित है तब कुण्डली में उत्तम श्रेणी का राजयोग बनता है. यदि जन्म कुण्डली में पहले भाव का स्वामी पंचमेश या नवमेश के साथ कुण्डली में एक साथ स्थित है तब यह एक शुभ तथा बली राजयोग है. पहले भाव के स्वामी का पंचमेश या नवमेश के साथ राशि परिवर्तन होने से एक अच्छा राजयोग बनता है. यदि जन्म कुण्डली में पहले भाव के स्वामी का परस्पर दृष्टि संबंध पंचमेश या नवमेश के साथ स्थापित हो रहा है तब यह बली राजयोग कहलाता है.

मिश्रित भावों का राजयोग | Rajyoga associated with mixed houses

चतुर्थ, पंचम तथा नवम भाव से बनने वाला राजयोग कुण्डली के चतुर्थ भाव का स्वामी पंचम या नवम भाव में स्थित है तब राजयोग का निर्माण होता है. यदि कुण्डली में चतुर्थेश, पंचमेश या नवमेश के साथ स्थित है तब यह राजयोग बन रहा है. जन्म कुण्डली में चतुर्थेश और पंचमेश या नवमेश का आपस में परस्पर दृष्टि संबंध स्थापित हो रहा है तब यह भी राजयोग माना जाता है. चतुर्थेश का राशि परिवर्तन पंचमेश या नवमेश के साथ होने पर राजयोग का निर्माण होता है.

सप्तम, पंचम तथा नवम भाव के स्वामियों के संबंध से बनने वाले राजयोग. सप्तम भाव का स्वामी पंचम या नवम भाव में स्थित है तब राजयोग का निर्माण कुण्डली में हो रहा है. सप्तमेश के नवम भाव में होने से भाग्योदय विवाह के बाद हो सकता है. सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव के स्वामी के साथ स्थित होने से  कुण्डली में राजयोग बन रहा है. सप्तमेश यदि कुण्डली में नवमेश के साथ स्थित है तब यह अच्छा राजयोग माना जाता है. जीवन में भाग्य से बहुत कुछ हासिल हो सकता है. सप्तमेश का पंचमेश या नवमेश के साथ राशि परिवर्तन होने से भी राजयोग का निर्माण होता है. कुण्डली में सप्तमेश का परस्पर दृष्टि संबंध पंचमेश या नवमेश से होने पर राजयोग का निर्माण हो रहा है.