जन्मकुंडली के माध्यम से जातक के अरिष्ट होने के योग या कारण को जाना जा सकता है. जन्मकुंडली में ग्रह स्थिति, गोचर तथा दशा-अन्तर्दशा से अरिष्ट योगों को समझा जा सकता है. रोगों का विचार अष्टमेश और आठवें भाव में स्थित निर्बल ग्रहों से किया जाता है. यह रोग अधिकतर दीर्घ कालिक तथा असाध्य रोग होते हैं. कुछ अप्रत्यक्ष कारणों से होने वाले रोगों का विचार षष्ठेश, छठे भाव में स्थित निर्बल ग्रहों तथा जनमकुंडली में पीड़ित राशि व पीड़ित ग्रहों से किया जाता है. जन्म कुंडली में जो भाव या राशि पाप ग्रह से पीड़ित हो या जिसका स्वामी त्रिक भाव मे हो तो उस राशि तथा भाव से संबंधित रोग प्रभावित कर सकते हैं.

छठा भाव त्रिक भावों में से एक भाव है तथा त्रिक भावों को शुभ भाव नहीं कहा जाता है. जब लग्न का संबंध इस भाव से होता है तो अरिष्ट की संभावना में वृद्धि होती है. जातक को कई प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ सकता है. कोई ना कोई ना बीमारी उसे घेरे रह सकती है. इसी प्रकार जब लग्न का संबंध आठवें से होता है तब अरिष्ट योग बनता है. अष्टम भाव को सबसे बुरा भाव माना जाता है. इसका संबंध लग्न से होने पर व्यक्ति मानसिक तथा शारीरिक परेशानियों से ग्रस्त रह सकता है. इस भाव से लम्बी अवधि के रोगों का विचार किया जाता है. जब लग्न का संबंध बारहवें से बनता है तब भी जातक को अरिष्ट का सामना करना पड़ता है क्योंकि इससे संबंध बनने पर व्यक्ति को हास्पीटल का मुख देखना ही पड़ता है.

कुण्डली में बनने वाले अन्य अरिष्ट योग | Other inauspicious yoga formed in a Kundali

कुण्डली में शुक्र और बुध वृश्चिक राशि में स्थित हों तो अरिष्ट योग बनाते हैं. इसी प्रकार मेष राशि का भाव व भावेश कमजोर हो तो जातक लाचारी भरा जीवन जीता है.

कुण्डली में बुध और चंद्रमा यदि धनु राशि में स्थित हों तो जातक को अरिष्ट बनाते हैं. कुण्डली में द्वितीयेश और तृतीयेश यदि आठवें भाव में होंतो अरिष्ट योग बनता है.

  • कुण्डली में चंद्र और सूर्य यदि मकर राशि में स्थित हों तो जातक को अरिष्ट बनाते हैं.
  • कुण्डली में सूर्य और बुध कुंभ राशि में स्थित हों तो जातक को अशुभ फलों की प्राप्ति होती है स्वाथ्य संबंधी परेशानियां सता सकती हैं.
  • कुण्डली में बुध और शुक्र यदि मीन राशि में हों तो अरिष्ट योग का निर्माण करते हैं.
  • कुण्डली में शुक्र और मंगल मेष राशि में स्थित हों तो अरिष्ट बनाते हैं.
  • कुण्डली में मंगल और बृहस्पति वृष राशि में स्थित हों तो स्वास्थ्य के लिए परेशानियां देने वाले होते हैं.
  • कुण्डली में बृहस्पति और शनि मितुन राशी में स्थित हों तो अरिष्ट बनाते हैं.
  • कुण्दली में शनि यदि कर्क राशी में हो तो अरिष्ट का कारण बनता है.
  • कुण्डली में शनि और बृहस्पति सिंह राशि में रहते हुए अरिष्ट कि स्थिति उत्पन्न करते हैं.
  • कुण्डली में बृहस्पति और मंगल कन्या राशि में होने पर शुभ फल नही देते और अरिष्ट का कारण बनते हैं.
  • कुण्डली में मंगल और शुक्र यदि तुला राशि में हों तो अरिष्ट होता है.  

अरिष्ट योग के अन्य कारण | Other reasons for the formation of inauspicious Yogas

लग्न हमारा शरीर है, छठा भाव रोग का कारण है तो आठवां भाव आयु है और बारहवें भाव से व्यय देखे जाते हैं. इस कारण जब इन सभी का संबंध किसी न किसी प्रकार से लग्न से बनता है तो अरिष्ट योग की संभावना होती है. इस प्रकार अनेक अरिष्ट योगों का वर्णन ज्योतिष शास्त्र में मिलता है. कुंडली में ग्रहों के बलाबल व स्थिति के अनुरूप बीमारियों के योग देखे जाते हैं.

  • लग्नेश कमजोर हो व लग्न तथा चंद्रमा पाप प्रभाव में हो तो स्वास्थ्य प्रभावित होता है. चंद्रमा राहु के साथ हो या बारहवाँ हो तो रोग कारण बनता है.
  • लग्नेश सप्तम में होने पर पाप प्रभाव में हो तो स्वास्थ्य के लिए कष्टकारी होता है.
  • लग्नेश अष्टम में व अष्टमेश लग्न में हो तो बीमारियाँ परेशान करती हैं.
  • राशि स्वामी पाप ग्रहों से दृष्ट या युक्त हो, अष्टम में हो तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है.
  • सूर्य, चंद्रमा और शनि एक साथ छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो भयंकर शारिरिक कष्ट मिल सकता है.
  • चंद्रमा और बुध केंद्र में हो और शनि व मंगल की दृष्टि में होने पर रोग घेर सकते हैं.