विवाह के लिए शुभ समय और शुभ मुहूर्त को बहुत ध्यान के साथ करना चाहिए. विवाह मुहूर्त के लिए कई बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता पड़ती है और बेहतर रुप से ज्योतिष गणना के द्वारा मुहूर्त शास्त्र एवं विवाह के लिए मुहूर्त निकालने की पद्धति को अपनाकर एक शुभ और योग्य समय का चयन किया जा सकता है. विवाह के लिए शुभ समय जानने के लिए जहां वर और कन्या की जन्म कुण्डली को देखा जाता है, वहीं उसके साथ शुभ दिन माह और योग इत्यादि भी देखने आवश्यक होते हैं. 

विवाह के मुहूर्त में मुख्य रुप से दस दोषों का विचार किया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. इन दस दोषों में लता, पात, युति, वेध, जामित्र, पंचबाण, एकार्गल, उपग्रह, क्रान्ति साम्य और दग्धातिथि का ध्यान रखा जाता है. इन दस दोषों में से वेध, मृत्युबाण ओर क्रांतिसाम्य नाम के तीन दोष को पूर्ण रुप से ही त्यागा जाता है. शेष बचे हुए सात दोषों में से अगर चार दोष बच भी जाते हैं तो विवाह मुहूर्त में लग्न शुद्धि से वह नष्ट हो जाते हैं. इसके अतिरिक्त भी कुछ मुख्य बिन्दुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है. विवाह लग्न मुहूर्त ज्ञात करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक माना गया है. जैसे - गुरु, शुक्र का अस्तांगत होना, चन्द्र अथवा सूर्य ग्रहण, पितृपक्ष, भीष्म पंचक आदि समय में विवाह करना शास्त्र संगत नहीं माना जाता है. 

वर-वधू के वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाये रखने के लिये विवाह (शादी) की तिथि ज्ञात करने के लिये सर्वश्रेष्ठ शुभ तिथि का उपयोग किया जाता है. शुभ विवाह की तिथि जानने हेतु वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. विवाह मुहूर्त के चयन में अनेक बातों को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक होता है तभी विवाह में शुभता बनी रहती है, जैसे वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये प्रयोग किया जाता है. विवाह की तिथि सदैव वर-वधू की कुण्डली में गुण-मिलान करने के बाद निकाली जाती है क्योंकि विवाह की तिथि तय होने के बाद, कुण्डलियों की मिलान प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए. 

निम्न सारणी से विवाह मुहूर्त समय का निर्णय करने के लिये वर-कन्या की राशियों में विवाह की एक समान तिथि को विवाह मुहूर्त के लिये लिया जाता है. वर और कन्या की कुण्डलियों का मिलान कर लेने के पश्चात उनकी राशियों में जो-जो तारीखें समान होती हैं उन तारीखों में वर और कन्या का विवाह शुभ व ग्राह्य माना जाता है. उदाहरण के लिये मेष राशि के वर का विवाह कर्क राशि की कन्या से हो रहा हो तो दोनों के विवाह के लिये यदि तिथियाँ एक समान हों तो शुभ रहेंगी. 

विवाह मुहूर्तों में त्रिबल शुद्धि

विवाह मुहूर्तों में त्रिबल शुद्धि, सूर्य-चन्द्र शुद्धि व गुरु की शुभता का ध्यान रखा गया है. सूर्य व गुरू स्वक्षेत्री या मित्रक्षेत्री हों तो उन्हें शुभ और ग्राह्य मान लिया जाता है. विवाह समय में अशुभ ग्रहों का यथाशक्ति दान व पूजन करवा लेना चाहिए ऎसा करने से वैवाहिक जीवन में शुभता बनी रहती है तथा मांगल्ये की प्राप्ति होती है. इन विवाह मुहूर्तों में सभी दोषो की गणना भी की गई है. जिन मुहूर्तों में गुरु की केन्द्र त्रिकोण में स्थिति है अथवा गुरु की शुभ दृष्टि भी पड़ रही है उनका परिहार हो जाता है जिससे उन मुहूर्तों को विवाह मुहूर्त में शामिल कर लिया जाता है. वर्ष 2024 में 

विवाह के लिए वर्जित न्समय | Time period prohibited to marry in 2024

गुरु के अस्त और उदय होने का समय (अस्तोदय) | Jupiter Astudaya (set and rise)

06 मई 2024 को गुरु अस्त होंगे और 02 जून 2024 को पूर्व में उदय होगा. गुरु के अस्त और उदय होने का समय ये समय विवाह के अनुकूल नहीं माना जाता है. 

गुरु वार्धक्य तथा बालत्व | Guru Vardhakya and Balatva

गुरु वार्धक्य दोष होगा. वार्धक्य का अर्थ है गुरु के अस्त होने से पहले की स्थिति है जिसे अच्छा नहीं माना जाता है. गुरु बाल्यावस्था यह गुरु के उदय होने के ठीक बाद वाली स्थिति होती है जिसे विवाह आदि के नजरिये से शुभ नहीं माना गया है.

शुक्र के अस्त और उदय होने का समय (अस्तोदय) | Venus Astudaya (set and rise)

शुक्र 24 अप्रैल 2024 को अस्त होंगे ओर इसके बाद 07 जुलाई 2024 को पूर्व में उदय होगा. शुक्र विवाह का कारक ग्रह होता है इसलिए इसके अस्त होने की स्थिति में विवाह नहीं किया जाता है. 

शुक्र वार्धक्य व बालत्व | Venus vardhakya and Balatva

शुक्र वार्धक्य का अर्थ शुक्र के अस्त होने से पहले की स्थिति है जो शुभ नहीं मानी जाती है. शुक्र बाल्यत्व अर्थात शुक्र बाल्य अवस्था में रहेंगे और इस अवस्था को भी विवाह के लिए शुभ नहीं माना जाता है.

श्राद्ध पक्ष | Shraddha Paksha

वर्ष 2024 में 17 सितंबर से 02 अक्टूबर तक श्राद्ध रहेंगे और इस समय विवाह निषेद्ध माना गया है.

होलाष्टक | Holashtak

06 मार्च से 14 मार्च 2024 की अवधि के दौरान होलाष्टक है.

भीष्म पंचक | Bhishma Panchaka

वर्ष 2024 में 11 नवंबर से 15 नवंबर भीष्म पंचक रहेंगे जिसमें विवाह करना वर्जित होता है.

चातुर्मास का विचार | Chaturmas ka Vichar

उत्तर भारत के बहुत से भागों में चातुर्मास्यादि में विवाह करना वर्जित माना जाता है. आषाढ़ माह की शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक माह की पूर्णिमा तक विवाह नहीं किए जाते हैं.