कुण्डली में स्थित ग्रहों कि स्थिति के द्वारा संतान सुख के विषय में जाना जा सकता है. किसी की कुण्डली में ग्रहों की ऐसी स्थिति होती है जो उन्हें कई संतानों का सुख देती है. तो किसी कि कुण्डली संतान में बाधा को दर्शाती है. ग्रहों कि उपरोक्त स्थिति अनेक कारणों से बनती है जिसे हम कुछ उदाहरणों द्वारा समझ सके हैं:-

जन्म लग्न एवं चन्द्र लग्न से पंचम भाव के स्वामी और बृहस्पति अगर शुभ स्थान पर विराजमान हैं तो इस शुभ ग्रह स्थिति में आप संतान सुख प्राप्त करते हैं.

यदी कुण्डली में पंचम भाव का स्वामी गुरू बलीअवस्था में हो और लग्नेश की गुरू पर दृष्टि हो तो होने वाली संतान आज्ञाकारी होती है.

संतान सुख के विषय में ज्योतिषशास्त्र की यह भी मान्यता है कि पंचमेश अगर स्वगृही हो और साथ ही शुभ ग्रह अथवा सुखेश व भाग्येश की पूर्ण दृष्टि हो तो यह संतान प्राप्ति के लिए अनुकूल ग्रह स्थिति मानी जाती है.

कुण्डली में यदि पंचमेश बली होकर लग्न , पंचम, सप्तम अथवा नवम भाव में स्थित हो तथा कोई भी पापी ग्रह क अप्रभाव उस पर नहीं हो तो संतान सुख प्राप्त होता है.

संतान प्राप्ति के संदर्भ में माना जाता है कि कुण्डली में बृहस्पति अगर मजबूत व प्रबल हो साथ ही लग्न का स्वामी पंचम भाव में मौजूद हो तो यह संतान कारक कहलाता है.

एकादश भाव में बुध, शुक्र, अथवा चंद्र में से एक भी ग्रह हो तो संतान का सुख मिलता है. इसी प्रकार पंचम भाव में यदि मेष, वृष अथवा कर्क राशि में केतु हो तो संतान योग की संभावना बनती है.

लग्नेश व नवमेश यदि कुण्डली में सप्तम भाव में होते हैं तो संतान सुख प्राप्त होता है. लग्नेश और पंचमेश के उच्च राशि में होने पर भी शुभ परिणाम मिलता है. इसी प्रकार लग्नेश पर बृहस्पति की शुभ दृष्टि भी मंगलकारी होती है.

कुण्डली में केन्द्र स्वामी त्रिकोणगत होते हैं तो संतान योग अच्छा बनता है. इसी प्रकार नवम भाव में गुरू, शुक्र एवं पंचमेश हो तो उत्तम संतान का योग बनता है.

कुण्डली में लग्न से पंचम भाव शुक्र अथवा चन्द्रमा के वर्ग में हों तथा शुक्र और चन्द्रमा से युक्त हों उसके कई संतानें होती हैं. परंतु इस स्थिति में अशुभ ग्रहों की दृष्टि एवं युति परिणाम में बाधा डाल सकती है.

पंचमेश या लग्नेश जब पुरूष ग्रह के वर्ग में होते हैं और पुरूष ग्रह द्वारा देखे जाते हैं तब संतान की प्राप्ति होती है. पंचमेश और राहु की युति होने पर राहु की अन्तर्दशा में संतान की प्राप्ति का योग बन सकता है. .

पंचम भाव में अगर वृष, सिंह, कन्या अथवा वृश्चिक राशि सूर्य के साथ हों एवं अष्टम भाव में शनि और लग्न स्थान पर मंगल विराजमान हों तो संतान सुख विलम्ब से प्राप्त होता है.

इसी प्रकार की स्थिति तब होती है जब एकादश भाव में राहु हो और पंचम भाव ग्रह विहीन हो.दशम भाव मे बृहस्पति, शुक्र, चन्द्र हो तथा पंचम भाव में राहु, शनि तथा सूर्य तो संतान सुख में देरी होती है.

यहां हम पंचम भाव को अधिक महत्ता देते हैं क्योंकि पंचम भाव संतान भाव भी कहलाता है ओर इसी भाव से प्रथम गर्भ से संबंधित विचार भी किए जाते हैं. पंचम भाव का कारक ग्रह गुरु है. गुरु इस भाव का कारक होकर संतान, ज्ञान, सम्मान देता है. पंचम भाव विशेष रुप संतान प्राप्ति के लिए देखा जाता है. इस योग की अशुभता से व्यक्ति को अपनी संतान से वियोग का सामना भी करना पड सकता है.

पंचमेश और अष्टमेश का परिवर्तन योग व्यक्ति की संतान के लिए शुभ योग नहीं है. यह योग व्यक्ति की संतान को मिलने वाले पैतृक सम्पति को प्रभावित करता है. व्यक्ति को अपने जीवन में स्वयं के द्वारा किए गये कार्यो से अप्रसन्नता होती है. साथ ही यह योग व्यक्ति के स्वास्थय को भी प्रभावित करता है.