अमेजोनाइट उपरत्न । Amazonite Gemstone – Amazonite Substone (Benefits of wearing Amazonite)

यह उपरत्न अर्द्ध पारभासी उपरत्न है. प्राचीन समय में इस उपरत्न का उपयोग मिस्त्रवासियों द्वारा किया जाता था. इस उपरत्न को साहस तथा पराक्रम का उपरत्न माना जाता है. इस उपरत्न का नाम अमेजन नदी के नाम पर रखा गया है क्योंकि इसकी खोज अमेजन नदी के किनारे हुई थी. कई लोगों का मानना है कि अमेजन महिलाओं के नाम पर इस उपरत्न का नाम रखा गया जो चन्द्रमा की देवी डायना की पूजा करते थे और अमेजन महिला योद्धा बहुत ही साहसी होती थी. इन महिलाओं को पुरुष भी चुनौती देने में डरते थे. इसलिए इस उपरत्न को पुरुषों की आक्रामकता और स्त्रियों के मूल्यों के मध्य संतुलन के प्रतीक की कडी़ माना गया है. यह दोनों में व्यवहारिकता और दयालुता की वृद्धि करने के रुप में उपयोग में लाया जाता था.

इस उपरत्न का मुख्य तौर पर उपयोग वैवाहिक जीवन को सुखी तथा खुशहाल बनाने के लिए किया जाता है. यह उपरत्न कई रंगों में पाया जाता है. सबसे अच्छा उपरत्न पीले रंग में हरे रंग की आभा से लेकर नीले रंग में हरे रंग की आभा लिए हुए होता है. इस उपरत्न के अंदर महीन तथा स्पष्ट सफेद रंग की धारियाँ दिखाई देती हैं. यह उपरत्न शरीर में अनाहत चक्र(Heart Chakra) तथा विशुद्ध चक्र(Throat Chakra) को नियंत्रित करता है. इस उपरत्न में पृथ्वी तत्व माना गया है.

अमेजोनाइट के गुण | Qualities Of Amazonite Gemstone

इस उपरत्न में कई गुणों का समावेश पाया गया है. मुख्यतया इसका उपयोग व्यक्ति विशेष में साहस की वृद्धि करने के लिए किया जाता है. जिन लोगों का विवाहित जीवन सुखी नहीं है, वह इस उपरत्न का उपयोग करते हैं. यह तनाव और डर को दूर करने में भी व्यक्ति की सहायता करता है. दु:खों तथा तकलीफों को दूर करने में सहायक होता है. यह व्यक्ति को सच बोलने के लिए प्रेरित करता है. ईमानदार बनाता है. मान-सम्मान में वृद्धि करता है. संचार माध्यम में वृद्धि करता है. धारणकर्त्ता वाकपटु होता है. मानसिक दृष्टि को बढा़ता है. नकारात्मक सोच को सकारात्मक बनाता है. नेतृत्व की भावना का विकास करता है. 

धारणकर्त्ता को अच्छी भविष्यवाणी करने के लिए प्रोत्साहित करता है. यह उपरत्न व्यक्ति को विश्लेषण करने में मदद करता है. बुद्धि तथा ज्ञान द्वारा सहजता से प्राप्त जानकारी का गठबन्धन करने में मदद करता है. यह मानसिक सुख तथा शांति प्रदान करता है. यह मस्तिष्क तथा तंत्रिका तंत्र दोनों के लिए शांति प्रदान करने वाला उपरत्न है. जिन व्यक्तियों के व्यवहार में सरलता से अक्रामकता का भाव समा जाता है, उनके लिए यह उपरत्न अत्यंत लाभकारी है. यह आत्मविश्वास को बढा़ता है. व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में सरलता से निर्णय लेने में सक्षम रहता है. धारणकर्त्ता दूसरों के प्रति दया भाव रखता है.

अमेजोनाइट के चिकित्सीय गुण | Medicinal Qualities Of Amazonite Upratna

इस उपरत्न का एक छोटा-सा टुकडा़ तीसरी आंख अथवा आज्ञा चक्र के समीप रखने से व्यक्ति की अन्तर्दृष्टि का विकास होता है. सभी प्रकार के अवरोध हट जाते हैं. यह उपरत्न धारणकर्त्ता के शरीर से कैल्शियम को अवशोषित करता है और हड्डियों को मजबूत बनाता है. चय-उपचय प्रणाली को संतुलित रखता है. तंत्रिका तंत्र का संतुलन भी बनाए रखता है. लीवर, थायरॉयड, गले तथा नसों को सुचारु रुप से कार्य करने के लिए प्रेरित करता है.

दाँतों की समस्या को दूर करने में सहायक होता है. रीढ़ की हड्डी से जुडी़ परेशानियों से निजात दिलाता है. जिन स्त्रियों को मासिक धर्म में ऎंठन होती है, उससे यह राहत दिलाता है. शरीर की अन्य माँस-पेशियों में होने वाली ऎंठन से छुटकारा दिलाता है. बच्चे के जन्म के समय माता को होने वाली परेशानियों में कमी करता है. 

कौन धारण करे | Who Should Wear Amazonite 

इस उपरत्न को सभी प्रकार के रत्नों तथा उपरत्नों के साथ धारण किया जा सकता है.

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पंचमी तिथि | Panchami Tithi

हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार एक तिथि का निर्माण सूर्य के अपने अंश से 12 अंश आगे जाने पर होता है. इस तिथि के देव नाग देवता है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को नाग देवता का पूजन करना चाहिए. नागों की रक्षा करना और नागों की पूजा करना भी उतम रहता है. यह तिथि पूर्णा तिथियों की श्रेणी में आती है. पूर्णा तिथि को कार्य पूर्ण करने वाली तिथि कहा गया है.

पंचमी तिथि वार योग

तिथि और वार के योग से बनने वाले योगों की श्रेणी में पंचमी तिथि जब शनिवार के दिन होती है. तो वह मृत्युदा योग बनाती है. यह योग अशुभ योगों में से एक है. गुरुवार के दिन पंचमी तिथि हो तो सिद्धिदा योग बनता है. सिद्धिदा योग में किए गए कार्य सिद्ध होते है. पंचमी तिथि के दिन दोनों ही पक्षों में भगवान शिव का पूजन और चिन्तन करना शुभ होता है.

पंचमी तिथि में किए जाने वाले काम

पंचमी तिथि में शुभ कार्यों को किया जा सकता है. इस तिथि में सभी कार्य किए जा सकते हैं केवल किसी उधार देना इस तिथि में सही नहीं माना गया है.

पंचमी तिथि व्यक्ति स्वभाव

पंचमी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति व्यवहार विषयों में कुशल होता है. वह ज्ञानी होता है. तथा उसके गुणों की प्रशंसा सर्वत्र होती है. ऎसा व्यक्ति माता-पिता का भक्त होता है. दान-धर्म कार्यों में भाग लेने वाला होता है. व्यक्ति के प्रेम प्रसंग अल्पकालीन होते हैं. जातक न्याय के मार्ग पर चलने वाला होता है.

इस तिथि में जन्मा जातक, अपने कार्यों के प्रति बहुत सजग होता है. कुछ आलसी हो सकता है लेकिन चीजों के प्रति ध्यान लगाने में निपुण भी होता है. आसानी से चकमा नहीं खाता है. परिवार के साथ रहना पसंद करता है. जातक कुछ बातों में गहन विचारशील होता है. जातक उच्च शिक्षा को पाता है. विदेश में निवास करता है. धार्मिक एवं आध्यात्मिक रुप से कुछ मजबूत होता है. जातक अपनी व्यवहारकुशलता से जीवन को जीता है और लोगों के मध्य प्रसिद्ध भी होता है.

पंचमी तिथि के समय भगवान शिव का पूजन शुभ माना गया है. मान्यता है की इस तिथि समय भगवान शिव कैलाश में निवास करते हैं. इस कारण से भी इस दिन शिव पूजन अत्यंत प्रभावशाली माना गया है. इस तिथि में जन्मे जातक को अपने जीवन में उत्पन्न संकटों से मुक्ति के लिए भगवान शिव का पूजन करना चाहिए. इसके साथ ही जातक को नाग देव की पूजा भी करनी चाहिए. मंदिर में दूध का दान करना चाहिए एवं शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करना चाहिए.

पंचमी तिथि व्रत व त्यौहार

विभिन्न मासों में पंचमी तिथि के समय पर कई प्रकार के पर्व एवं उत्सव भी मनाए जाते हैं. इस तिथि को भी विधान से उत्सव मनाने की परंपरा रही है.

ऋषि पंचमी –

ऋषि पंचमी का पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है. इस दिन ऋषियों व साधु-संतों को नमन करना चाहिए एवं अपने प्राचीन ऋषि मुनियों का पूजन कर भागवत कथा श्रवण करनी चाहिए. इस दिन सतसंग एवं गुरु जनों की वाणी सुनने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है. सप्तऋषियों की पूजा अर्चना द्वारा साधक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

रंग पंचमी –

फाल्गुन माह में होली के बाद आने वाली पंचमी तिथि को रंग पंचमी के रुप में मनाने की परंपरा रही है. इस समय पर्व विशेष पकवान बनाए जाते हैं. साथ ही इस समय के दौरान में रंगों से खेला जाता है.

नाग पंचमी –

मुख्य रुप से ये त्यौहार नाग देवता की पूजा का विधान होता है. इस तिथि को काल सर्प शांति के लिए उपयुक्त माना गया है. इस तिथि के समय के लिए.

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वराहमिहिर- ज्योतिष का इतिहास | Varahamihira – History of Astrology | Varahamihira Scriptures (Varahamihira Books Name) | Rishi Atri

वराहमिहिर ज्योतिष लोक के सबसे प्रसिद्ध ज्योतिष शास्त्रियों में से रहे है.  वराहमिहिर के प्रयासों ने ही ज्योतिष को एक विज्ञान का रुप दिया. ज्योतिष के क्षेत्र में इनके योगदान की सराहना जितनी की जाएं, वह कम है. ज्योतिष की प्राचीन प्रसिद्ध नगरी उज्जैनी में रहकर इन्होने अनेक ज्योतिश ग्रन्थों की रचना की. इनके पिता भी अपने समय के प्रसिद्ध ज्योतिषी थें. ज्योतिष की प्रथम शिक्षा इन्होनें अपने पिता से ही प्राप्त की. 

इनके द्वारा लिखे गए कुछ शास्त्रों का नाम निम्न है. 

वराहमिहिर रचित शास्त्र | Varahamihira Scriptures

पंचसिद्धान्तिका, बृ्हत्संहिता, बृ्हज्जातक, लघुजातक, विवाह पटल, योगयात्रा, समास संहिता आदि इनके प्रमुख शास्त्रों में से कुछ एक है. इनके द्वारा लिखी गई रचनाओं की तुलना अन्य किसी शास्त्र से नहीं की जा सकती है. फलित ज्योतिष में इनका योगदान अविश्वरणीय़ है. 

वराहमिहिर ने विक्रमाद्वित्य के नौ रत्नों में से ये एक रत्न थें. उसी समय के ज्योतिषी आर्यभट्ट के साथ मिलकर भी इन्होने ज्योतिष के फलित नियमों का प्रतिपादन किया. आर्यभट्ट इनके गुरु थें. और ज्योतिष की अनेक नियम इन्होने आर्यभट्ट से सीखें.  आर्यभट्ट के मुख्य रुप से  गणित विषय पर काम किया था, इसलिए इन्होनें ज्योतिष शास्त्रों में गणितीय गणना आर्यभट्ट से सिखी. 

 

वराहमिहिर ने अपने नियमों से उस समय ही न्य़ूटन के सिद्धान्त “गुरुत्वाकर्षण नियम” का प्रतिपादन कर दिया था. वे जानते थे कि पृ्थ्वी की वस्तुओं को कोई आकर्षण शक्ति अपनी ओर खींचती है. जिसे बाद में गुरुत्वाकर्षण का नाम दिया गया.  

 वराहमिहिर ने चार प्रकार के माहों का उल्लेख् किया. 

जिसमें, सौर माह, चन्द्र माह, वर्षीय माह और पाक्षिक माह थे. वराहमिहिर का कुल योगदान फलित ज्योतिष के अलावा, खगोल ज्योतिष, और वृ्क्षायुर्वेद विषयों पर रहा.  

ऋषि  अत्रि

ज्योतिष के इतिहास से जुडे 18 ऋषियों में से एक थे ऋषि अत्रि. एक मान्यता के अनुसार ऋषि अत्रि का जन्म ब्रह्मा जी के द्वारा हुआ था. भगवान श्री कृ्ष्ण ऋषि अत्रि के वंशज माने जाते है. कई पीढीयों के बाद ऋषि अत्रि के कुल में ही भगवान श्री कृ्ष्ण का जन्म हुआ था. यह भी कहा जाता है,कि ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्र उत्पन्न हुए थे, उसमें ऋषि पुलस्त्य, ऋषि पुलह, ऋषि वशिष्ठ, ऋषि कौशिक, ऋषि मारिचि, ऋषि क्रतु, ऋषि नारद है. इन महाऋषियों के ज्योतिष के प्राद्रुभाव में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. 

ब्रह्मा जी के यही सात पुत्र आकाश में सप्तर्षि के रुप में विद्यमान है. इस संबन्ध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है. तारामंडल का प्रयोग दिन, तिथि, कुण्डली निर्माण, त्यौहार और मुहूर्त आदि कार्यो के लिए किया जाता है. व इन सभी का उपयोग भारत की कृ्षि के क्षेत्र में प्राचीन काल से होता रहा है.  

ज्योतिष के इतिहास के ऋषि अत्रि का नाम जुडा होने के साथ साथ, देवी अनुसूया और रायायण से भी ऋषि अत्रि जुडे हुए है.  आयुर्वेद और प्राचीन चिकित्सा क्षेत्र सदैव ऋषि का आभारी रहेगा. (Simonsezit) इन्हें आयुर्वेद में अनेक योगों का निर्माण किया.  पुराणों के अनुसार ऋषि अत्रि का जन्म ब्रह्मा जी के नेत्रों से हुआ माना जाता है. 

ऋषि अत्रि ने ज्योतिष में चिकित्सा ज्योतिष पर कार्य किया, इनके द्वारा लिखे गये. सिद्दान्त आज चिकित्सा ज्योतिष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है.  

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राशियों का वर्गीकरण | Classifications of Signs

आपने पिछले अध्याय में जाना कि ज्योतिष में बारह राशियों का कुल मान 360 डिग्री होता है. प्रत्येक राशि 30 डिग्री की होती है. अब आप यह समझे कि कौन सी राशि कहाँ पर आती है. 

राशि राशि का मान 

मेष 0-30 अंश(Degree) 

वृष 30-60 अंश 

मिथुन 60-90 अंश

कर्क 90-120 अंश 

सिंह 120-150 अंश 

कन्या 150-180 अंश 

तुला 180-210 अंश 

वृश्चिक 210-240 अंश 

धनु 240-270 अंश 

मकर 270-300 अंश 

कुम्भ 300-330 अंश 

मीन 330-360 अंश 

आशा है कि आपको राशियों का वर्गीकरण अंशों(Degrees) के आधार पर समझ आ गया होगा. अब आप राशियों का वर्गीकरण नक्षत्रों के आधार पर समझने की कोशिश करें. चन्द्रमा एक नक्षत्र को पार करने में 22 से 26 घण्टे तक का समय लेता है. कुल 27 नक्षत्र हैं. एक नक्षत्र का मान 13 डिग्री 20 मिनट का होता है. एक नक्षत्र के चार चरण होते हैं. 13 डिग्री 20 मिनट के चार बराबर भाग किए जाएँ तो एक चरण का मान 3 डिग्री 20 मिनट का होता है. (lowpricebud)  

राशियों का वर्गीकरण नक्षत्रों के आधार पर | Classification of the Signs based on Nakshatra

मेष राशि | Aries

0 से 13 डिग्री 20 मिनट तक अश्विनी नक्षत्र रहता है. इसमें अश्विनी के चारों चरण आते हैं. 

13 डिग्री 20 मिनट से 26 डिग्री 40 मिनट तक भरणी नक्षत्र रहता है. भरणी के चारों चरण आते हैं. 

26 डिग्री 40 मिनट से 30 डिग्री तक कृतिका नक्षत्र का प्रथम चरण रहता है. कृतिका के अन्य तीन चरण वृष राशि में आएंगें. 

वृष राशि | Taurus

0 से 10 डिग्री तक कृतिका नक्षत्र के तीन चरण आते हैं. 

10 से 23 डिग्री 20 मिनट तक रोहिणी नक्षत्र के चारों चरण आते हैं. 

23 डिग्री 20 मिनट से 30 डिग्री तक मृगशिरा नक्षत्र के दो चरण आते हैं. 

मिथुन राशि Gemini

0 से 6 डिग्री 40 मिनट तक मृ्गशिरा नक्षत्र के दो चरण आते हैं. 

6 डिग्री 40 मिनट से 20 डिग्री तक आर्द्रा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं. 

20 डिग्री से 30 डिग्री तक पुनर्वसु नक्षत्र के तीन चरण आते हैं. 

कर्क राशि | Cancer

0 से 3 डिग्री 20 मिनट तक पुनर्वसु नक्षत्र का चौथा चरण आता है. 

3 डिग्री 20 मिनट से 16 डिग्री 40 मिनट तक पुष्य नक्षत्र के चारों चरण आते हैं. 

16 डिग्री 40 मिनट से 30 डिग्री तक अश्लेषा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं. 

सिंह राशि | Leo

0 से 13 डिग्री 20 मिनट तक मघा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं. 

13 डिग्री 20 मिनट से 26 डिग्री 40 मिनट तक पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के चारों चरण आते हैं. 

26 डिग्री 40 मिनट से 30 डिग्री तक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का प्रथम चरण आता है. 

कन्या राशि | Virgo

0 से 10 डिग्री तक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के तीन चरण आते हैं. 

10 डिग्री से 23 डिग्री 20 मिनट तक हस्त नक्षत्र के चारों चरण आते हैं. 

23 डिग्री 20 से 30 डिग्री तक चित्रा नक्षत्र के प्रथम दो चरण अते हैं. 

तुला राशि | Libra

0 से 6डिग्री 40 मिनट तक चित्रा नक्षत्र के बाकी दो चरंण आते है. 

6 डिग्री 40 मिनट से 20 डिग्री तक स्वाति नक्षत्र के चारों चरण आते हैं. 

20 डिग्री से 30 डिग्री तक विशाखा नक्षत्र के तीन चरण आते हैं. 

वृश्चिक राशि | Scorpio

0 से 3 डिग्री 20 तक विशाखा नक्षत्र नक्षत्र का चौथा चरण आता है. 

3 डिग्री 20 मिनट से 16 डिग्री 40 मिनट तक अनुराधा नक्षत्र के चार चरण आते हैं. 

16 डिग्री 40 मिनट से 30 तक ज्येष्ठा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं. 

धनु राशि | Sagittarius

0 से 13 डिग्री 20 मिनट तक मूल नक्षत्र के चार चरण आते हैं. 

13 डिग्री 20 मिनट से 26 डिग्री 40 मिनट तक पूर्वाषाढा़ नक्षत्र के चार चरण आते हैं. 

26 डिग्री 40 मिनट से 30 डिग्री तक उत्तराषाढा़ नक्षत्र का प्रथम चरण आता है. 

मकर राशि | Capricorn

0 से 10 डिग्री तक उत्तराषाढा़ नक्षत्र के तीन चरण आते हैं. 

10 डिग्री से 23 डिग्री 20 मिनट तक श्रवण नक्षत्र के चार चरण आते हैं. 

23 डिग्री 20 मिनट से 30 डिग्री तक धनिष्ठा नक्षत्र के दो चरण आते हैं. 

कुम्भ राशि | Aquarius

0 से 6 डिग्री 40 मिनट तक धनिष्ठा नक्षत्र के दो चरण आते हैं. 

6 डिग्री 40 मिनट से 20 डिग्री तक शतभिषा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं. 

20 डिग्री से 30 डिग्री तक पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के तीन चरण आते हैं. 

मीन राशि | Pisces

0 से 3 डिग्री 20 मिनट तक पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का चीथा चरण रहता है. 

3 डिग्री 20 मिनट से 16 डिग्री 40 मिनट तक उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के चारों चरण आते हैं. 

16 डिग्री 40 मिनट से 30 डिग्री तक रेअवती नक्षत्र के चारों चरण आते हैं. 

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सिट्रीन उपरत्न | Citrine | Citrine Gemstone – Metaphysical Properties Of Citrine

यह उपरत्न पीले रंग से लेकर सुनहरे रंग तक की आभा वाले रंगों में पाया जाता है. यह एक पारभासी उपरत्न है. इस उपरत्न को देखने पर यह पुखराज का भ्रम पैदा करता है. इस उपरत्न को पहनने की शुरुआत प्राचीन समय में ग्रीक देश से हुई थी. उसके बाद से यह उपरत्न लुप्त जैसे हो गया था. 1930 से यह उपरत्न फिर से उपयोग में लाया जाने लगा. प्रथम और द्वित्तीय महायुद्ध के बीच यह उपरत्न “आर्ट डेको” आंदोलन के लिए प्रसिद्ध हो गया. यह क्वार्टज की तरह का उपरत्न है. सिट्रीन का यह नाम सिट्रोन शब्द से लिया गया है. फ्रेन्च में सिट्रोन का अर्थ नींबू है. यह उपरत्न नींबू जैसे रंग का होता है. इसके अतिरिक्त यह गहरे पीले रंग में भी पाया जाता है. यह अम्बर उपरत्न जैसे रंग में भी पाया जाता है.

इस उपरत्न में आयरन उपस्थित होता है. आयरन की जितनी अधिक मात्रा होगी उतना ही यह उपरत्न गहरा होता जाएगा. यह उपरत्न जितना गहरा होता है उतना ही बढ़िया माना जाता है जबकि हल्के रंग का सिट्रीन अधिक शुद्ध होता है. वर्तमान समय में मिलने वाले सिट्रीन को ताप तथा ऊष्मा में तपाकर उपयोग में लाया जाता है. कई व्यापारी सिट्रीन को टोपाज बताकर भी बेच देते हैं. इसलिए दोनों उपरत्नों में अन्तर करना आना चाहिए.   

सिट्रीन के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Citrine

इस उपरत्न में कई गुण विद्यमान होते हैं. इस उपरत्न को मस्तिष्क के विकास के लिए उपयोग में लाया जाता है. प्राचीन समय के लोगों का विश्वास है कि सिट्रीन उपरत्न को यदि माथे के मध्य में रखा जाएगा तो व्यक्ति की मानसिक तथा अलौकिक शक्ति का विस्तार होता है. जातक के आत्मसम्मान में वृद्धि करता है. किसी अन्य के शोषण से सुरक्षा करता है. व्यक्ति के समुचित विकास के लिए नए विचारों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है. विचारों में स्पष्टता लाता है. यह उपरत्न व्यापारियों के लिए शुभ माना जाता है. उनके व्यापार में वृद्धि करता है. आर्थिक रुप से सम्पन्न होने में मदद करता है. सिट्रीन को यदि रुपये रखने के स्थान पर रख दिया जाए तो जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं.

यह उपरत्न धारणकर्त्ता को मानसिक शांति तथा संतुष्टि प्रदान करता है. लक्ष्यों को प्राप्त करने में मददगार सिद्ध होता है. व्यक्ति के अन्तर्ज्ञान में वृद्धि करता है. रचनात्मक क्रिया-कलापों में वृद्धि करता है. नकारात्मक ऊर्जा से जातक की सुरक्षा करता है.

सिट्रीन के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Citrine

जिन व्यक्तियों को पाचन संबंधी परेशानियाँ रहती हैं उन्हें यह उपरत्न धारण करना चाहिए. इससे उनकी पाचन प्रणाली सुचारु रुप से काम करेगी. व्यक्ति के पेट में पाचन तंत्र में जहरीली चीजों को खतम करता है. उसे शुद्ध बनाता है. पेट को साफ रखने में सहायक होता है. इसे धारण करने से व्यक्ति की उदासीनता का अंत होता है. कई व्यक्ति इस उपरत्न का उपयोग तनाव को दूर करने में इस्तेमाल करते हैं. कब्ज से राहत मिलती है. डायबिटिज को कम करता है. पेट संबंधी सभी विकारों को दूर करने में सहायक होता है. शरीर के प्रवाह तंत्र को नियंत्रित रखता है. यह थायराइड को भी सक्रिय रखता है. यह धारणकर्त्ता को खुश रखता है तथा दूसरों से प्यार करना सिखाता है.

उपरोक्त बातों के अतिरिक्त यह उपरत्न आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाता है. कैरियर को आगे बढा़ने में सहायक होता है. जो लोग अपना नया बिजनेस आरम्भ करना चाहते हैं उनके लिए यह अत्यधिक लाभदायक होता है. उन्हें सफलता बनाता है. व्यक्ति को अपने बिजनेस को चलाने के लिए जिसका भी साथ चाहिए, वह उन्हें मिलता है. जैसे बिजनेस चलाने के लिए कच्चा माल, तैयार माल को बेचना और बाजार में उसे लोकप्रिय बनाना आदि जैसे कार्यों में रुकावट नहीं आती है. यह उपरत्न व्यक्ति के अंदर भीड़ में भी बोलने की क्षमता का विकास करता है. यह व्यक्ति को साहसिक बनाता है और विचारों में तीव्रता लाता है. व्यक्ति के विश्वास को कठिन परिस्थितियों में भी डगमगाने नहीं देता है. 

यह व्यक्ति के नाभि चक्र को नियंत्रित करता है. यह नाभि चक्र व्यक्ति के शारीरिक तथा भौतिक शक्ति का केन्द्र है.  इस उपरत्न को धारण करने से यह चक्र संतुलित रहता है.

कौन धारण करे । Who Should Wear Citrine

इस उपरत्न को सभी वर्गों के व्यक्ति धारण कर सकते हैं.

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13वीं राशि “ओफियुकस” 13th Zodiac Sign “Ophiuchus”

ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार भ्रचक्र में एक बडा परिवर्तन हुआ है. इंगलैंड की प्रसिद्ध ज्योतिषिय संस्था के अनुसार राशियों की संख्या 12 से 13 हो गई है. अर्थात सूर्य को एक वर्ष में 12 राशियों के स्थान पर 13 राशियों में भ्रमण करना पडेगा. भचक्र राशि परिवार में शामिल होने वाली इस नई राशि का नाम “ओफियुकस” है. इस राशि को वृ्श्चिक राशि और धनु राशि के मध्य स्थान दिया गया है. इस राशि में सूर्य की अवधि को कुल 18 दिन का समय दिया गया है. वृ्श्चिक राशि से सूर्य अब 29 नवम्बर को बाहर निकल जायेगें, और इसके बाद वे अगले 18 दिन ओफियुकस राशि में रहेगें. 18 दिन ओफियुकस नामक राशि में रहने के बाद इनका गोचर धनु राशि में होगा.  

इस विषय की स्थिति अभी बहुत अधिक स्पष्ट नहीं है. अलग- अलग मत सामने आ रहे है. राशियों में एक नई राशि का सम्मिलित होना वैदिक ज्योतिष में आस्था रखने वाले ज्योतिषियों के लिये यह समस्या लेकर आ रहा है, कि अब राशियों के अंशों की गणना किस प्रकार की जायें.

भचक्र की स्थिति की माने तो पृ्थ्वी अपने स्थान से तीन डिग्री खिसक गई है. पृ्थ्वी का अपनी धूरी से खिसकना, एक नई राशि को जन्म दे रहा है. ब्रह्माण्ड का यह बदलाव, व्यक्तियों के जीवन पर क्या बदलाव लेकर आयेगा. इस विषय में अभी अनुमान लगाये जा रहे है.    

वैदिक ज्योतिष शास्त्र प्राचीन ज्योतिष शास्त्र है. इसके विशेषज्ञ पाश्चात्य  देशों के ज्योतिषिय परिवर्तनों को कभी स्वीकार नहीं करते है. इससे पूर्व भी जब यहा कहा गया कि ग्रहों कि संख्या 9 से हटकर 12 हो गई है. इस बात को भी वैदिक ज्योतिषियों ने स्वीकार नहीं किया था. ब्रह्माण्ड हों, या भचक्र हों, इनमें होने वाले बदलाव को वैदिक ज्योतिष स्वीकार नहीं करता है.  

भचक्र में 13वीं राशि जुडने की बात सत्य हो, या भ्रम इसकी इसके जानकारी सही रुप में मिलनी अभी संभव नहीं है. राशियों में 13वीं राशि को सम्मिलित करने से 360 डिग्री के भचक्र को बांटना अभी कठिन हो जायेगा. प्रत्येक राशि 13 डिग्री 20 मिनट की होती है. अभी एक राशि के लिये नए अंश क्या होगा? यह सब बदलाव ज्योतिष शास्त्र की रुपरेखा को पूरी तरह से बदल देगें. ग्रह दशा से लेकर ग्रह की स्थिति तक कुण्डली में बदल जायेगी. 

पृ्थ्वी के अपने धूरी से खिसकने की बात वैज्ञानिक संदर्भ में सही हो सकती है, परन्तु वैदिक ज्योतिष शास्त्र में इसे सरलता से स्वीकार नहीं किया जायेगा.   दूसरी और पाश्चात्य ज्योतिष जगत में 13 का अंक प्रारम्भ से ही सभी की आंख का कांटा रहा है. 13 अंक पाश्चात्य जगत के ज्योतिषियों को स्वीकार्य होगा या नहीं, अभी इस विषय में कुछ कहना शीघ्रता होगी. अशुभ माने जाने वाला 13 अंक जब व्यक्ति के भावी जीवन का हाल बताने वाली राशियों में सम्मिलित होगा, तो लोगों को इसके फल शुभ मिलेगें, या अशुभ मिलेगे. इसके लिये कुछ समय प्रतिक्षा करनी पड सकती है.           

ज्योतिष शास्त्र से आज दो तरह के लोग जुडे हुए है, एक वो जिन्होने परम्परागत ढंग से ज्योतिष शास्त्र की शिक्षा ली, ज्योतिषिय कार्य जिनकी आजीविका का आधार है. उन्हें, राशियों का 12 से 13 होना, कुछ अटपटा सा लगें, और ज्योतिष शात्र जानने वाला दूसरा वर्ग वह है, जिन्होने बडे बडे ज्योतिषिय संस्थानों में शिक्षा ली. और जीवन में होने वाले परिवर्तनों, की तरह वे ब्रह्राण्ड में होने वाले इस परिवर्तन हो भी स्वीकार करें. ऎसे लोग ज्योतिष की बारीक जानकारी पर भी नजर रखते है. और वैज्ञानिक तथ्यों को स्वीकार करने में जिन्हें कोई परहेज नहीं होता है.   

वैदिक ज्योतिष चन्द्र की स्थिति के अनुसार व्यक्ति की जन्म राशि मानता है, जबकि पाश्चात्य ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति का जन्म जिस माह में हुआ होता है, उस माह, तिथि में सूर्य की जो स्थिति होती है, उसके अनुसार व्यक्ति की जन्म राशि होती है. उदाहरण के तौर पर 

सूर्य एक राशि में एक माह विचरण करता है.  उसकी गति एक दिन में एक अंश होती है. इसलिये सूर्य को पाश्चात्य ज्योतिष अपनी फलित का आधार मानता है. 

भचक्र में नई राशि जुडने के बाद पाश्चात्य ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माह-तिथि में सूर्य की स्थिति निम्न राशियों में रहेगी.  ऎसे में 29 नवम्बर से 17 दिसम्बर के मध्य जन्म लेने वाले व्यक्तियों की सूर्य जन्म राशि “ओफियुकस” कहला सकती है. 

13वीं राशि की स्थिति को स्वीकार करने के बाद वर्ष में राशियों की स्थिति भचक्र में कुछ इस प्रकार की हो सकती है.    

राशि माह तिथि से माह तिथि तक
मकर जनवरी 20 फरवरी 16
कुम्भ फरवरी 16 मार्च 11
मीन मार्च 11 अप्रैल 18
मेष अप्रैल 18 मई 13
वृ्षभ मई 13 जून 21
मिथुन जून 21 जुलाई 20
कर्क जुलाई 20 अगस्त 10
सिंह अगस्त 10 सितम्बर 16
कन्या सितम्बर 16 अक्तुबर 30
तुला अक्तूबर 30 नवम्बर 23
वृ्श्चिक नवम्बर 23 नवम्बर 29
ओफियुकस नवम्बर 29 दिसम्बर 17
धनु दिसम्बर 17 जनवरी 20
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नक्षत्र के अनुसार चोरी की वस्तु या खोई वस्तु का ज्ञान | Finding Facts About Stolen Goods According to Nakshatra.

जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. 

* यदि प्रश्न के समय चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु शहर के भीतर है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा भरणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु गली में है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में है तो खोई वस्तु जंगल में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु ऎसे स्थान पर है जहाँ नमक या नमकीन वस्तुओं का भण्डार हो. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु चारपाई, पलँग अथवा सोने के स्थान के नीचे रखी होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र में स्थित है तो खोई वस्तु मंदिर में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में है तो खोई वस्तु अनाज रखने के स्थान पर रखी गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र – 8/में है तो खोई वस्तु घर में ही है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आश्लेषा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु धूल के ढेर में अथवा मिट्टी के ढे़र में छिपाई गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु चावल रखने के स्थान पर होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शून्य घर में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु जलाशय में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा हस्त नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु तालाब अथवा पानी की जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु रुई के खेत में अथवा रुई के ढे़र में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा स्वाति नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शयनकक्ष में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु अग्नि के समीप अथवा वर्तमान समय में अग्नि से संबंधित फैकटरियों में हो सकती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा अनुराधा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु लताओं अथवा बेलों के नजदीक होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु मरुस्थल अथवा बंजर जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा मूल नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु पायगा में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु छप्पर में छिपाई जाती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा उत्तराषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु धोबी के कपडे़ धोने के पात्र में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु व्यायाम करने के स्थान पर या परेड करने की जगह होती है. 

* प्रश्न के समय घनिष्ठा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु चक्की के निकट होती है. 

* प्रश्न के समय शतभिषा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु गली में होती है. 

* प्रश्न के समय पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु घर में आग्नेयकोण में होती है. 

* प्रश्न के समय उत्तराभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु दलदल में होती है. 

* प्रश्न के समय रेवती नक्षत्र हो तो खोई वस्तु बगीचे में होती है. 

खोये सामान की जानकारी मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी? इस बात का पता भी नक्षत्रों के अनुसार चल जाता है. सभी 28 नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है. 

नक्षत्रों का लोचन ज्ञान | Lochan Facts About The Nakshatra

अंध लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Andh Lochan  

रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा़, धनिष्ठा. 

मंद लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatra Coming in Mand Lochan

अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा़, शतभिषा. 

मध्य लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Madhya Lochan

भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद. 

सुलोचन नक्षत्र में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Sulochan Nakshatras

कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद. 

* यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है. 

* यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है. 

* यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है. ढा़ई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है. 

* यदि वस्तु सुलोचन नक्षत्र में गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है. वस्तु की ना तो खबर ही मिलती है और ना ही वस्तु ही मिलती है. 

अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली
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Dasha Cycles in Vedic Jyotish

जैमिनी ज्योतिष में दशाक्रम बिलकुल भिन्न होता है. इस पद्धति में कुल बारह दशाएँ होती हैं जो बारह राशियों पर आधारित होती हैं. आइए सबसे पहले आप बारह राशियों के बारे में जान लें. बारह राशियाँ हैं :- 

(1) मेष राशि 

(2) वृष अथवा वृषभ राशि 

(3) मिथुन राशि 

(4) कर्क राशि 

(5) सिंह राशि 

(6) कन्या राशि 

(7) तुला राशि 

(8) वृश्चिक राशि 

(9) धनु राशि 

(10) मकर राशि 

(11) कुम्भ राशि 

(12) मीन राशि 

राशियों के स्वामी ग्रह | Planetary Lord of the Signs

प्रत्येक राशि का स्वामी ग्रह अलग होता है. सूर्य तथा चन्द्रमा को एक-एक राशि का स्वामित्व मिला है जबकि अन्य बची सभी राशियों में एक-एक ग्रह को दो राशियों का स्वामी माना गया है. राहु तथा केतु को किसी भी राशि का आधिपत्य प्राप्त नहीं है. यह दोनों छाया ग्रह हैं. जिस राशि में होते हैं उस राशि के स्वामी ग्रह के जैसे बर्ताव करते हैं. 

राशि ग्रह स्वामी

मेष मंगल 

वृष शुक्र

मिथुन बुध 

कर्क चन्द्रमा

सिंह सूर्य

कन्या बुध 

तुला शुक्र 

वृश्चिक मंगल 

धनु बृहस्पति

मकर शनि 

कुम्भ शनि 

मीन बृहस्पति 

राशियों का दशाक्रम | Rashidasha Kram 

पिछले अध्याय में आपने राशियों तथा राशि स्वामियों के बारे में जानकरी हासिल की. जैमिनी चर दशा में  यह बारह राशियाँ पूरे भचक्र का एक चक्कर 24 घण्टे में पूर्ण करती हैं. हर राशि के आगे लिखी संख्या उस राशि की स्वामी है. जैसे पिछले अध्याय में 1 संख्या की स्वामी मेष राशि है. बाकी राशियाँ भी इसी प्रकार क्रम से स्वामी हैं. प्रत्येक राशि की अपनी स्वतंत्र दशा होती है. चर दशा में एक राशि की दशा कम-से-कम एक वर्ष तक रहती है और अधिक-से-अधिक बारह वर्ष तक की दशा व्यक्ति को मिलती है. 

दशा निर्धारण के लिए जैमिनी ऋषि ने कुछ नियम निर्धारित किए हैं. चर दशा में छ: राशियों का दशाक्रम सव्य(Direct) होता है और बाकी छ: राशियों का दशाक्रम अपसव्य(Indirect) होता है. 

सव्य वर्ग की राशियाँ | Direct category signs

यदि किसी व्यक्ति के लग्न में मेष, सिंह, कन्या, तुला, कुम्भ तथा मीन राशि आती है तो वह सव्य वर्ग की राशियाँ कहलाती हैं. माना लग्न में मेष राशि है तब सबसे पहले मेष राशि की दशा आरम्भ होगी. उसके बाद वृष राशि की दशा होगी. उसके बाद मिथुन राशि आदि की दशाएँ क्रम से चलेगीं. (thedentalspa) अंत में मीन राशि की दशा होगी. उसके बाद पुन: वही चक्र आरम्भ हो जाएगा. 

अपसव्य वर्ग की राशियाँ | Indirect category signs

जन्म कुण्डली के लग्न में यदि वृष, मिथुन, कर्क, वृश्चिक, धनु तथा मकर राशियाँ आती हैं तो दशा का क्रम अपसव्य होगा. उदाहरण के लिए लग्न में मकर राशि है तब सबसे पहली दशा मकर राशि की होगी. उसके बाद धनु राशि की दशा होगी. धनु के बाद वृश्चिक राशि, फिर तुला राशि, कन्या राशि, सिंह राशि, कर्क राशि, मिथुन राशि, वृष राशि, मेष राशि, मीन राशि और अंतिम दशा कुम्भ राशि की होगी. इसके बाद फिर से दशाक्रम उसी प्रकार चलेगा.  

अन्तर्दशाक्रम | Antardasha Kram

जैमिनी पद्धति में प्रत्येक राशि की महादशा में अन्तर्दशा क्रम भी महादशा क्रम की तरह हैं. जैसे अपसव्य वर्ग की राशियों का दशाक्रम अपसव्य चलेगा और सव्य वर्ग की राशियों का दशाक्रम सव्य चलेगा परन्तु चर दशा में एक बात पर विशेष ध्यान यह देना होगा कि हर राशि की महादशा में उसी राशि की अन्तर्दशा सबसे अंत में आएगी. माना मेष राशि जन्म कुण्डली के लग्न में है तो मेष राशि की दशा में वृष राशि की अन्तर्दशा सर्वप्रथम होगी. उसके बाद मिथुन राशि की अन्तर्दशा होगी. मिथुन के बाद क्रम से सभी राशियों की अन्तर्दशा चलेगी. अंत में मेष राशि की महादशा में मेष राशि की अन्तर्दशा आरम्भ होगी. 

अपसव्य वर्ग में यदि धनु राशि की महादशा चल रही है तो धनु राशि की महादशा में सर्वप्रथम वृश्चिक राशि की अन्तर्दशा चलेगी. उसके बाद तुला राशि. फिर कन्या राशि की अन्तर्दशा चलेगी. अंत में धनु राशि की महादशा में धनु राशि की अन्तर्दशा आरम्भ होगी. 

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