कन्या लग्न के लिए सभी ग्रह दशा का प्रभाव

कन्या लग्न के प्रभाव से व्यक्ति में संघर्षों से लड़ने की क्षमता होती है. यह राशि पृथ्वी तत्व की राशि मानी जाती है इसलिए यह परिस्थिति से उबरने में सक्षम होती है. बुध इसके लग्न का स्वामी  होता है. बुध बौद्धिक क्षमता का कारक माना जाता है इसलिए बुध के प्रभाव से आप बुद्धिमान और व्यवहारकुशल व्यक्ति बनते हैं. लोग दिमाग का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं इसलिए शरीर का इस्तेमाल कम से कम करने की कोशिश करें. उन्हें आराम करना पसंद है. अब इस लग्न के ग्रह की स्थिति अपनी दशा अवधि में अपने फलों को दर्शाती है. ऎसे में जो ग्रह इस लग्न के लिए बेहतर होंगे उस दशा का असर भी अनुकूल रहेगा. 

कन्या लग्न के लिए सभी ग्रहों का दशाफल 

कन्या लग्न में बुध का प्रभाव

कन्या लग्न में बुध ग्रह प्रथम और दशम भाव का स्वामी होता है. कन्या लग्न की कुंडली में लग्न का स्वामी बुध होता है. कन्या लग्न के लिए बुध एक लाभदायक ग्रह है. लग्नेश इनकी कुंडली में जहां भी बैठा हो वह सदैव अनुकूल रहने में सहायक होता है, अत: यह लग्न होने के कारण कुंडली में सबसे शुभ ग्रह माना जाता है. लग्नेश बुध प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम एवं एकादश भाव में अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. बुध तीसरे, छठे, सातवें नीच, आठवें और बारहवें भाव में अशुभ हो जाता है. इसकी दशा-अन्तर्दशा का प्रभाव व्यक्ति को इसकी कुंडली में शुभ अशुभ स्थिति से मिलता है. 

कन्या लग्न में शुक्र का प्रभाव

इस लग्न कुंडली में शुक्र द्वितीय और नवम भाव का स्वामी होने के कारण अत्यंत योगकारक ग्रह है. कन्या लग्न की कुंडली में दूसरे भाव में तुला राशि होती है, जिसका स्वामी शुक्र होता है. शुक्र, बुध के साथ मित्रता रखता है इसलिए कन्या लग्न की कुंडली में शुक्र एक लाभकारी ग्रह बन जाता है. दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में शुक्र अपनी दशा और अंतर्दशा में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. प्रथम , तृतीय, षष्ठ, अष्टम तथा द्वादश भाव में शुक्र उदित अवस्था में मारक होकर अशुभ फल देता है. शुक्र अपनी कुंडली में स्थिति के अनुसार परिणाम देने वाला ग्रह बनता है.

कन्या लग्न में मंगल का प्रभाव

इस लग्न कुंडली में मंगल ग्रह तीसरे और आठवें भाव का स्वामी है. कन्या लग्न की कुंडली में तीसरे भाव में वृश्चिक राशि होती है, जिसका स्वामी मंगल होता है, कन्या लग्न की कुंडली में अष्टम भाव में मेष राशि होती है, जिसका स्वामी मंगल होता है, मंगल को अष्टमेश मिलने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में मंगल सबसे मारक ग्रह बन जाता है. मंगल की बुध से शत्रुता के कारण कन्या लग्न की कुंडली में मंगल एक मारक ग्रह बन जाता है. लग्न बुध का अत्यंत शत्रु होने के कारण कुंडली में इसे अत्यंत मारक ग्रह माना गया है. कुंडली के किसी भी भाव में मंगल अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमता के अनुसार अशुभ फल देता है. कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भाव में भी मंगल विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल देने की क्षमता रखता है. 

कन्या लग्न में बृहस्पति का प्रभाव

कन्या लग्न की कुंडली में बृहस्पति चतुर्थ और सप्तम केंद्र का स्वामी होता है. सप्तमेश होने के कारण बृहस्पति मारकेश भी है. कन्या लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में धनु राशि मौजूद होती है, जिसका स्वामी बृहस्पति होता है, कन्या लग्न की कुंडली में सप्तम भाव में मीन राशि मौजूद होती है, जिसका स्वामी बृहस्पति होता है. बृहस्पति की बुध से मित्रता के कारण कन्या लग्न की कुंडली में बृहस्पति एक शुभ ग्रह बन जाता है. बृहस्पति लग्न से सम भाव में होने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में बृहस्पति सकारात्मक प्रभाव देने वाला ग्रह बन जाता है. इस लग्न की कुंडली में बृहस्पति अपनी स्थिति के अनुसार अच्छा या बुरा फल देता है. बृहस्पति अपनी दशा-अंतर्दशा में पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. यदि कुंडली के किसी भी भाव में गुरु देव अस्त अवस्था में बैठे हों तो उनका बेहतर फल नहीं मिल पाता है.

कन्या लग्न में शनि का प्रभाव

कन्या लग्न की कुंडली में शनि देव पंचम और षष्ठ भाव के स्वामी होते हैं. शनि देव लग्न बुध के मित्र भी हैं इसलिए इन्हें कुंडली का योगकारक घर माना जाता है. कन्या लग्न की कुंडली में पंचम भाव में मकर राशि होती है, जिसका स्वामी शनि है, शनि की बुध से मित्रता होने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में शनि योगकारक ग्रह बन जाता है.कन्या लग्न की कुंडली में छठे भाव में कुंभ राशि होती है, जिसका स्वामी शनि है, शनि की बुध से मित्रता होने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में शनि एक लाभकारी ग्रह बन जाता है. शनि देव प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम एवं एकादश भाव में अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में उदय अवस्था में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देते हैं. कुंडली के तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें भाव में उदित अवस्था में हों तो अशुभ हो जाते हैं और सहा में अनुकूल परिणाम मिलने कमजोर होते हैं. 

कन्या लग्न में चन्द्रमा का प्रभाव

इस लग्न कुंडली में चंद्र देव एकादश भाव के स्वामी हैं. कन्या लग्न की कुंडली में ग्यारहवें घर में कर्क राशि मौजूद होती है, जिसका स्वामी चंद्रमा होता है. कन्या लग्न की कुंडली में चंद्रमा की बुध से शत्रुता के कारण चंद्रमा एक मारक ग्रह बन जाता है. बुध के अत्यंत शत्रु होने के कारण लग्न को चंद्र कुंडली का क्रूर ग्रह माना जाता है. कुंडली के सभी भावों में चंद्र देव अपनी दशा और अंतर्दशा में अपनी क्षमता के अनुसार अशुभ फल देने वाला बनता है. चन्द्रमा की दशा अन्तर्दशा में ध्यान पूर्वक कार्यों को करने की सलाह दी जाती है.

कन्या लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव

इस लग्न कुंडली में सूर्य देव बारहवें भाव के स्वामी होते हैं इसलिए इन्हें कुंडली में सबसे मारक ग्रह माना जाता है. कन्या लग्न की कुंडली में बारहवें घर में सिंह राशि मौजूद होती है, जिसका स्वामी सूर्य है, सूर्य की मित्रता बुध के साथ होती है, लेकिन सूर्य व्यय का स्वामी होने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में सबसे अधिक खास ग्रह बन जाता है.कुंडली के सभी भागों में सूर्य देव अशुभ फल देते हैं

कन्या लग्न में राहु केतु का प्रभाव 

कन्या लग्न के लिए राहु केतु दशा का प्रभाव उनकी लग्न अनुसार स्थिति से दिखाई देता है. राहु केतु अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में अपनी योग्यता के अनुसार फल देता है. लेकिन कुंडली के तीसरे, छठे और बारहवें घर में स्थित यह ग्रह बैठ कर विजय की क्षमता रखते हैं, इसके लिए बुध का मजबूत और शुभ होना बहुत जरूरी है.    

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