प्रश्न कुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति संतान सुख प्राप्त कर पाएगा या नहीं. कुंडली में बनने वाले योग कुछ वैदिक नियमों और सिद्धांतों पर आधारित होते हैं. इस लेख में हम कुछ उदाहरणों के माध्यम से इन सिद्धांतों को विस्तृत करने का प्रयास करेंगे और जानेंगे कि किस प्रकार प्रश्न कुंडली के द्वारा संतान के विषय को समझा जा सकता है. प्रश्न कुंडली का अध्ययन करते हुए कुछ मुख्य बातों पर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है. इसमें प्रश्न कुंडली में लग्न को देखना ओर साथ ही लग्न की स्थिति, पंचम भाव स्थान और प्रश्न कुंडली के चंद्र को देखना बहुत आवश्यक माना गया है.
प्रश्न कुंडली में पंचम स्थान से संतान का विचार होता है. इसके अलावा प्रश्न कुंडली में मौजूद बृहस्पति ग्रह की स्थिति को देखना भी जरुरी होता है. संतान सुख के योग प्रश्न कुंडली में पंचम भाव एवं ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करते हैं. प्रश्न कुंडली में पंचम भाव, पंचमधिपति और बृहस्पति के शुभ ग्रह की दृष्टि या युति हो तो संतान योग होता है. प्रश्न कुंडली का लग्नेश पंचम भाव में हो और बृहस्पति बली हो तो संतान योग को दिखाता है. प्रश्न कुंडली के लग्नेश की मजबूत गुरु पर दृष्टि हो तो प्रबल संतान योग होता है. संतान भाव के स्थान पर शुक्र जैसे अन्य शुभ ग्रहों की दृष्टि आवश्यक है.
प्रश्न कुंडली में पंचम भाव की स्थिति
प्रश्न कुंडली अनुसार पंचम भाव की स्थिति शुभस्थ होना बहुत अच्छा होता है. यहां यदि केंद्र त्रिकोणाधिपति शुभ ग्रह हो अथवा पंचम भाव के स्वामी का इन के साथ संबंध बन रहा है तो संतान होने की संभावना जल्द दिखाई देती है.
पंचम भाव में कोई पाप ग्रह नहीं होना, पंचम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में नहीं होना, अशुभ, अस्त और शत्रु राशियों से बचाव होना ही संतान के स्वास्थ्य की शुभता को दर्शाता है पंचम भाव में बुध और कर्क या तुला राशि हो, पंचम भाव में शुक्र या चंद्र स्थित हो या पंचम भाव पर दृष्टि हो तो एक साथ अधिक संतान का योग भी बनता है. प्रश्न कुंडली के लग्नेश, पंचमेश शुभ ग्रह के साथ केंद्र में हो या दोनों अपने घर, मित्र के घर या उच्च में हो तो संतान योग होता है. प्रश्न कुंडली में पंचमेश नवम भाव का स्वामी हो और किसी शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो संतान योग होता है.
प्रश्न कुंडली अनुसार खराब स्थिति
प्रश्न कुंडली में संतान की स्थिति नकारात्मक तब होती है जब यहां अशुभ कारक अपना अधिकि असर दिखा रहे हों. मंगल और शनि का प्रभाव चंद्रमा के साथ होना, पंचम भाव पर होना संतान से मिलने वाले कष्ट की ओर संकेत दिखाता है. पंचम भाव का स्वामी छठे भाव में हो या छठे का स्वामी पंचम से संबंध बना रहा हो तो इस स्थिति में गर्भपात का खतरा भी बढ़ जाता है.
इसके अलावा प्रश्न कुंडली में यदि पंचमेश अष्टम भाव में बैठा हो तो इसके कारण संतान होने में देरी अधिक दिखाई देती है. इसके अलावा पंचम के साथ मंगल शनि अष्टम में हों तो गर्भपात होने अथवा गर्भकाल के दौरान जटिलताओं की स्थिति अधिक असर डाल सकती है. चंद्रमा की स्थिति पाप ग्रहों से प्रभावित हो तो संतान सुख में विलंब ह रहता है. प्रश्न कुडली में पंचम भाव में स्थित राशि पर यदि किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो तो इसके कारण गर्भधारण में परेशानी अधिक झेलनी पड़ सकती है.
प्रश्न कुंडली में पाप ग्रहों की भूमिका
प्रश्न कुंडली में पाप ग्रहों का असर यदि प्रश्न पर पड़ता है तो इसके खराब फल ही मिलते हैं. पाप ग्रह फल मिलने की संभावनाओं में देरी कर देते हैं. इसके अलावा फल की प्राप्ति में कई तरह की दुर्घटनाएं एवं अटकाव भी इसके कारण झेलने पड़ते हैं. इसी के आधार पर जब प्रश्न कुंडली में संतान के सुख से संबंधित प्रश्न की बात होती है तो उस स्थिति में प्रश्न कुडली में मौजूद पाप ग्रहों पर भी निगाह डालने कि आवश्यकता होती है. पंचम भाव में शनि, मंगल और मंगल स्थित हों और पंचम भाव का स्वामी छठे भाव में हो तो इस स्थिति में संतान नहीं होने की संभावना प्रबल होने लगती है. बुध और लग्नेश दोनों लग्न के अलावा केंद्र स्थान में हों तो संतान का अभाव देखने को मिल सकता है.
प्रश्न कुंडली में यदि पंचम भाव में चंद्रमा हो और सभी पाप ग्रह आठवें या बारहवें भाव में हों, बुध और शुक्र सप्तम भाव में हों, पाप ग्रह चौथे भाव में हों और बृहस्पति पंचम भाव में हो तो यह स्थिति संतान के सुख में बाधा पहुंचाने का काम करने वाली होती है.
प्रश्न कुंडली के लग्न में पाप ग्रह हो, चतुर्थ भाव में चंद्रमा हो और पंचम भाव में लग्नेश हो और पंचम भाव का स्वामी नीच की स्थिति में हो तो इस स्थिति के कारण भी संतान की देरी हो सकती ःऎ. इसके अलावा प्रश्न कुडली में पंचम भाव का स्वामी वक्री अवस्था में हो तो भी इसके कारण संतान होने में देरी की स्थिति को झेलना पड़ सकता है.