नक्षत्रों की भूमिका को ज्योतिष में बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. यदि ज्योतिष में कृष्णमूर्ति पद्धिति की बत की जाए तो उसमें नक्षत्रों का ही बोलबाला रहा है. हर प्रकार की भविष्यवाणि में नक्षत्र की स्थिति अत्यंत विशेष स्थान रखती है. प्रत्येक ग्रह के स्वामित्व में तीन नक्षत्र होते हैं. नक्षत्र में ग्रह का गोचर उसके प्रभाव को निर्धारित करता है. इस लिए जब भी कोई विशेष ग्रह अपनी राशि को बदलता है या राशि में संचरण करता है तो उस के दौरान वह जिस भी ग्रह के नक्षत्रों में होता है उसके प्रभाव काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
राहु और बृहस्पति के नक्षत्रों के बीच संबंध
अन्य सभी ग्रहों की तरह बृहस्पति के भी तीन नक्षत्र हैं. पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद. राहु की दशा के दौरान भी जातक की वित्तीय स्थिरता मजबूत होती है यदि बृहस्पति शुभ स्थिति में हो और राहु उपरोक्त किसी भी नक्षत्र में स्थित हो. उसकी आय में वृद्धि होती है और वह एक सुखी पारिवारिक जीवन व्यतीत करता है. वह सभी सांसारिक सुखों का आनंद लेता है और समाज में प्रशंसा प्राप्त करता है. ज्योतिष अनुसात कुंडली में बृहस्पति के नीच अथवा निर्बल होने का मतलब असफलता और काम में रुकावट हो सकता है. यह धन हानि का संकेत दे सकता है. कुंडली में इस व्यवस्था वाली स्थिति के कारण व्यक्ति को अनावश्यक अपमान और यहां तक कि हार का भी सामना करना पड़ सकता है. राहु का बृहस्पति के नक्षत्रों में जाना बृहस्पति की स्थिति के साथ साथ नक्षत्रों की शक्ति के अनुसार प्रभाव दिखाने वाला होता है. राहु का बृहस्पति के नक्षत्रों में होना कई मायनों में आध्यात्मिक क्षेत्र एवं विचारधारों की अलग परंपरा भी विकसित करने वाला होता है. बृहस्पति एक शुभ ज्ञान युक्त ग्रह है इसके नक्षत्रों में राहु का गोचर अवश्य ही बदलाव के संकेतों को दिखाने में भी आगे रहता है.
राहु और शुक्र के नक्षत्रों के बीच संबंध
राहु के साथ शुक्र की युति परस्पर मित्र होने के कारण अच्छे परिणाम देती है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार भरणी, पूर्वाफाल्गुनी और पूर्वाषाढ़ा शुक्र के नक्षत्र हैं. यदि राहु अपनी दशा काल में इनमें से किसी भी एक नक्षत्र में स्थित हो तो इसके बेहतर परिणाम मिल सकते हैं. व्यक्ति को शुक्र से संबंधित वस्तुओं से लाभ प्राप्त होता है. भौतिक इच्छाएँ पूर्ण होती हैं तथा जीवन में कई ऎसे उपकरण भी प्राप्त होते हैं जो बेहद महंगे तथा कीमती हो सकते हैं. जैसे के ऑटोमोबाइल, महंगे कपड़े और गहने इसमें मुख्य हो सकते हैं. विपरित लिंग का आकर्षण भी इन्हें प्राप्त होता है. दूसरी ओर, एक नीच शुक्र का अर्थ है अधिक परेशानी और दुख. अपने रिश्तों में नुकसान और शर्मिंदगी का सामना करना पड़ सकता है. अस्वस्थता और काम में रुकावटें आना आम बात है. ऎसे में जब शुक्र नीच के शुक्र के नक्षत्रों से प्रभावित होता है तब इसके परिणाम परेशानी और मानहानि जैसी बातों का संकेत भी बनते हैं.
राहु और सूर्य के नक्षत्रों के बीच संबंध
सूर्य के नक्षत्रों में कृतिका, उत्तरा फाल्गुनी और उत्तराषाढा का नाम आता है. जब राहु अपनी दशा में इस नक्षत्रों में गुजरता है तब यह काफी गंभीर असर दिखाने वाला हो सकता है. यहां इन दोनों ग्रहों के मध्य की शत्रुता अधिक परेशानी का सबब बन सकती है. इसलिए राहु का सूर्य के इन नक्षत्रों में होना बड़ी दुर्घटना एवं चिंता का कारण बन सकता है. वैसे यह स्थान नए अनुसंधानों के लिए भी काफी महत्व रखता है.
राहु और चंद्र के नक्षत्रों के बीच संबंध
चंद्रमा के नक्षत्र में रोहिणी, हस्त, श्रवण का नाम आता है. राहु अपनी दशा में यदि इन नक्षत्रों के साथ संबंधित होता है तब यह मानसिक विकार एवं उत्तेजना को बढ़ा सकता है. राहु का असर यहा शुभ फलों की कमी को अधिक दर्शाता है. राहु का प्रभव जब इन नक्षत्रों के साथ बनता है तो यह भौतिक इच्छाओं के प्रति अधिक उत्साहित बना सकता है.
राहु और मंगल के नक्षत्रों के बीच संबंध
मंगल के नक्षत्र में मृगशिरा, चित्रा एवं श्राविष्ठा या धनिष्ठा का नाम होता है. इसमें जब राहु का प्रभाव दशा अवधि पर होता है तब स्थिति अत्यधिक तेजी से आक्रामक परिणाम अपना असर दिखाते हैं. इस गोचर के दौरान दुर्घटनाओं की संभावना अधिक रह सकती है और साथ में साहसिक कार्यों के द्वारा मुश्किलों पर विजय हासिल करने में सफल रहते हैं.
राहु और शनि के नक्षत्रों का प्रभाव
शनि और राहु दोनों ही पाप ग्रह हैं और इस प्रकार परस्पर मित्र भी हैं. पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद शनि के नक्षत्र हैं. इनमें से किसी भी नक्षत्र में राहु की अपनी पीड़ा अवधि में स्थिति शनि के समान अशुभ हो जाती है.
जातक को हड्डियों में दर्द हो सकता है. बार-बार गिरना और बीमार होना राहु के कुछ नकारात्मक प्रभाव हैं. जातक मांसाहारी भोजन के प्रति आकर्षित हो सकता है. वैवाहिक जीवन में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. तलाक के लिए मजबूर करने के लिए भी हालात बिगड़ सकते हैं. एक शुभ शनि कड़ी मेहनत को धन और सफलता के साथ पुरस्कृत करता है.
राहु और केतु के नक्षत्रों के बीच संबंध
केतु राहु की तरह एक नैसर्गिक अशुभ ग्रह है. अश्विनी, मघा और मूल केतु के नक्षत्र हैं जब राहु इनमें से किसी भी एक नक्षत्र में हो तो व्यक्ति को जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. जातक को हड्डी के रोग हो सकते हैं तथा सर्प दंश की सम्भावना रहती है. उसके शत्रु बढ़ जाते हैं और उसका परिवार आर्थिक तंगी से चलता है. लोग उस पर विश्वास नहीं करते हैं और घरेलू जीवन समस्याग्रस्त हो जाता है. शुभ केतु का अर्थ है वित्तीय स्थिरता, नया घर और जमीन खरीदना. जातक के पास एक सफल पेशा होता है और एक समृद्ध जीवन का आनंद लेता है.
राहु का स्व नक्षत्र प्रभाव
राहु के नक्षत्र आर्द्रा, स्वाति और शतविषा हैं. राहु यदि स्वराशि में स्थित हो तो जातक को मानसिक और शारीरिक कष्ट देता है. जातक गठिया से पीड़ित हो सकता है; बार-बार गिरना और लगातार तनाव होना. अशुभ राहु जातक और उसके जीवन साथी के बीच दूरियां पैदा करता है. इस स्थिति में राहु अनावश्यक व्यय और समाज में मानहानि का कारण बन सकता है.