मेष लग्न के लिए शनि की महादशा का फल

मेष लग्न के लिए शनि की महादशा का समय कार्यक्षेत्र एवं महत्वाकांक्षाओं की स्थिति को प्रभावित करने वाला होता है. मेष लग्न का स्वामी मंगल है और शनि इस लग्न के लिए दशम भाव के साथ एकादश भाव का स्वामी बनता है. अब इन दो स्थानों के स्वामित्व को पर शनि इस लग्न के लिए मिलेजुले परिणाम देने वाला होता है. अब मंगल के साथ शनि का संबंध अनुकूल न होने के कारण यह इसके लिए कम सकारात्मक स्थिति को भी दिखा सकता है. लग्न के अनुसार शनि की स्थिति एवं लग्न स्वामी के साथ शनि का संबंध, शनि की कुंडली में स्थिति इन सभी को ध्यान में रख कर ही अपना असर दिखाती है. कोई भी फल जो शनि से उसकी दशा में प्राप्त होता है उस सब का आधारा कुंडली में मौजूद शनि की स्थिति के कारण ही प्राप्त होता है. 

मेष लग्न के लिए शनि 

शनि का दशम भाव का स्वामी होना – शनि महादशा का प्रभाव विशेष रुप से इस समय कर्म को प्रभावित करने वाला होगा. जीवन में होने वाले बदलाव तथा नई जिम्मेदारियों को देखने का समय होता है. काम किस प्रकार का होगा, काम में किस प्रकार की स्थितियां जीवन में हमारे सामने होंगी ये बातें शनि महादशा के दोरान काफी सक्रिय होती हैं. इस दशा के समय पर व्यक्ति को अपने लिए किए जाने वाले कामों को लेकर अधिक सजग भी होता है. दशम भाव जीवन की गतिविधियों और नियमित क्रियाओं पर अपना प्रभाव डालने वाला होता है. शनि महादशा के समय पर व्यक्ति को इस दशा में कई तरह से इसके फल मिलते हैं जो शनि महादशा के साथ अन्य ग्रहों के साथ संबंधों की स्थिति के अनुसार प्रभाव देने वाले होते हैं. शनि महा दशा के दौरान व्यक्ति अपने करियर, व्यवसय अथवा अपने प्रतिष्ठा को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करता है. इस दशा के समय फल प्राप्ति को लेकर समय लगता है लेकिन प्राप्ति भी कर्म अनुसार होती है. 

दशम भाव को केन्द्र भाव कहा जाता है, यह एक शुभ भाव होता है. इस भाव का स्वामी होकर शनि अपने शुभ फल देने वाला होता है. शनि महादशा के समय पर केन्द्र भाव से जुड़े फल मिलते हैं. इन में लोगों के साथ संपर्क, सामाजिक स्थिति, कार्यक्षेत्र में मिलने वाले शुभ अशुभ प्रभाव. शनि ग्रह दसवें घर का स्वामी है जो करियर और नौकरी पर अधिकार करके विशेष बन जाता है.  पराशर होरा शास्त्र, सर्वार्थ चिंतामणि और सारावली आदि जैसे अधिकांश प्राचीन शास्त्रों का मत है कि मेष लग्न के लिए शनि ग्रह एक अशुभ ग्रह है लेकिन केन्द्र स्वामी का स्वामी होकर संघर्ष के तैयार करता है. इस महादशा के समय करियर और नौकरी से संबंधित कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. ये समय आसान नहीं होता है. जीवन में लगातार संघर्ष बने रहते हैं. कई बार यह नुकसान को भी दिखाती है तो कई बार इसमें लाभ भी हमें मिलता है.   

एकादश भाव का स्वामी शनि – इस लग्न के लिए शनि ग्यारहवें भाव का स्वामी बनता है. इस स्थान का स्वामित्व पाकर यह लाभ को दिखाता है लेकिन साथ ही इच्छाओं की पूर्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों पर भी शनि महादशा में देखने को मिलते हैं. शनि महादशा के समय सामाजिक स्थिति एवं अपने वरिष्ठ लोगों से मिलने वाले लाभ की प्राप्ति किस रुप में होगी वह इसी दशा के समय में देखने को मिलती है. 

मेष लग्न के लिए उच्च शनि महादशा – शनि महादशा का असर शनि के कुंडली में स्थिति के अनुसार भी मिलता है. यदि कुंडली में शनि उच्च स्थिति का होगा तो उस दशा में वह व्यक्ति को कुछ अधिक अवसरों को दिलाने में सहायक बनता है. व्यक्ति की कार्यक्सुहलता में परिश्रम का आगमन होता है. अपनी कोशिशों के लिए वह कुछ सम्मानित भी होता है. सामाजिक रुप से उसके द्वारा किए जाने वाले कामों को प्रतिष्ठा एवं नाम भी प्राप्त होता है. अब यहां शनि के प्रभाव से व्यक्ति सामाजिक रुप से अपनी पहचान को पाने में काफी सक्षम होता है. अब इस उच्च स्थिति का असर मेष लग्न के सातवें भाव में बनेगा इस घर में इस के कारण जीवन साथी और साझेदारी पर भी ये महादशा का असर भी पड़ने वाला है. 

मेष लग्न में शनि महादशा में अन्य ग्रहों की दशा प्रभाव 

शनि की महादशा में शनि की अंतर्दशा

शनि की महादशा में शनि की ही अन्तर्दशा तीन वर्ष की होती है. दोनों ही स्थानों में शनि की उपस्थिति आपको बहुत ही मिश्रित परिणाम देने वाली होती है. इस अवधि में करियर और नौकरी से जुड़े मामलों में भी लाभ मिलता है.  इस समय पर व्यक्ति इच्छाओं को लेकर काफी उत्साहित होता है. इस समय पर परिश्रम की अधिकता बढ़ जाती है.

शनि की महादशा में बुध की अंतर्दशा

शनि की महादशा में बुध की अंतर्दशा दो साल, आठ महीने और नौ दिनों तक रहती है. इस अवधि में आपको करियर और पैसों के मामले में बदलाव देखने को मिलते हैं. बुध की अन्तर्दशा में होने के कारण यह शनि के साथ मिलकर मिलेजुले परिणाम देती है. संघर्ष कि अधिकता अभी बनी रहता है.   

शनि की महादशा में केतु की अंतर्दशा

शनि की महादशा में केतु की अन्तर्दशा एक वर्ष एक माह और नौ दिन की होती है. शनि के साथ केतु की युति होने से जातकों को लाभ मिलता है. इस अवधि में जातक को विदेश जाने का भी मौका मिल सकता है, वहीं आय में वृद्धि होने की भी संभावना है.  आध्यात्मिक रुप से ये समय अधिक प्रभावित कर सकता है.

शनि की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा

शनि की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा तीन साल दो महीने तक रहती है. शनि की महादशा में जब शुक्र की अंतर्दशा होती है तो व्यक्ति का जीवन पटरी पर आने लगता है और बिगड़ी हुई चीजें सुधरने लगती हैं.

शनि की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा

शनि की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा ग्यारह महीने बारह दिन की होती है.  शनि और सूर्य एक दूसरे के परम शत्रु माने जाते हैं, इसलिए शनि की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा अशुभ फल ही देती है

शनि की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा

शनि की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा एक वर्ष सात माह की होती है. यह योग अशुभ फल देने वाला माना जाता है. इस अवधि में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जातक को अधिक परेशान करती हैं और वैवाहिक जीवन में भी तनाव रहता है. 

शनि की महादशा में मंगल की अंतर्दशा

शनि की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा एक वर्ष, एक माह और नौ दिनों की होती है. मंगल को आक्रामक और क्रूर भी माना जाता है. शनि की महादशा होने पर जीवन में कठिनाइयां आती हैं. स्वभाव में आक्रामकता और गुस्सा बढ़ने लगता है.  

शनि की महादशा में राहु की अंतर्दशा

शनि की महादशा में राहु की अन्तर्दशा दो वर्ष दस माह छह दिन तक रहती है. इस दौरान वहां  जातक के जीवन में कठिन संघर्ष होते हैं और कड़ी मेहनत के बाद भी जातक को सफलता नहीं मिलती है. मानसिक परेशानी के साथ-साथ आर्थिक पक्ष भी परेशानी देता है.

शनि की महादशा में गुरु की अंतर्दशा

शनि की महादशा में गुरु की अन्तर्दशा दो वर्ष, छह महीने और बारह दिनों की होती है. बृहस्पति ग्रह आपको शुभ फल देने वाला है. यह ज्ञान और आध्यात्मिकता से भी दृढ़ता से जुड़ा हुआ है. यह अवधि जातकों के करियर में नई ऊंचाईयां लेकर आती है. फलस्वरूप आपको हर काम में सफलता मिलती है. 

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