कार्यसिद्धि के नियम | Rules for Success of Prashna

प्रश्न की पहचान के लिए कई नियम आपको पिछले अध्याय में बताए गए हैं. इस अध्याय में भी कुछ और नियमों की चर्चा की जाएगी. सबसे पहले हम षटपंचाशिका के नियमों की चर्चा करेंगें. यह नियम हैं :-

(1) जिस ग्रह का नवाँश लग्न में है वह ग्रह अपने नवाँश में बैठकर लग्न, पंचम अथवा नवम भाव को देखे तो धातु चिन्ता होगी. 

(2) जिस ग्रह का लग्न में नवाँश है, वह ग्रह किसी और ग्रह के नवाँश में बैठकर लग्न, पंचम अथवा नवम भाव को देखे तो जीव चिन्ता होगी. 

(3) जिस ग्रह का नवाँश लग्न में नहीं है वह ग्रह अपने नवाँश में ना हो और लग्न, पंचम अथवा नवम भावों से संबंध बना रहा हो तो मूल चिन्ता होगी. 

उपरोक्त नियम षटपंचाशिका के आधार पर हैं. वर्तमान समय के अनुसार भी कुछ नियम प्रश्न की पहचान के लिए निर्धारित किए गए हैं. वह नियम हैं :- 

(1) चन्द्रमा का नक्षत्रेश अर्थात प्रश्न कुण्डली के चन्द्रमा का नक्षत्र स्वामी जिस भाव में स्थित है, उस भाव या उस ग्रह से संबंधित प्रश्न होगा. (ग्रह के कारकत्व के अनुसार प्रश्न होगा) प्रश्न कुण्डली के लग्नेश के नक्षत्र के अनुसार भी प्रश्न का विश्लेषण कर सकते हैं. 

(2) जो ग्रह लग्न को निकटतम पराशरी दृष्टि से देखता हो उस ग्रह के कारकत्व से संबंधित प्रश्न होगा. 

(3) प्रश्न कुण्डली में जिस ग्रह का लग्नेश के साथ निकटतम इत्थशाल हो उस ग्रह से संबंधित प्रश्न अथवा चिन्ता हो सकती है. चन्द्रमा का निकटतम इत्थशाल भी देख लेना चाहिए. 

(4) प्रश्न कुण्डली के लग्न में जिन ग्रहों के अंश लग्न अथवा चन्द्रमा के अत्यधिक नजदीक हो उनसे संबंधित प्रश्न भी हो सकता है. 

जैसे प्रश्न कुण्डली में यदि लग्नेश का इत्थशाल सप्तम भाव अथवा पंचम भाव से हो रहा है तो प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न जीवनसाथी अथवा संतान से संबंधित हो सकता है. इसके अतिरिक्त सप्तम तथा पंचम भाव के कारकत्वों के अनुसार और अन्य बातों का विचार भी किया जा सकता है. 

कार्यसिद्धि के आरम्भिक नियम | Initial Rules for Success of Prashna

प्रश्न कुण्डली में किसी भी प्रश्न का जवाब प्रश्नकर्त्ता को तुरन्त मिल जाता है. जिस भी क्षेत्र से प्रश्न का संबंध हो उस क्षेत्र से संबंधित कार्य बनेगा अथवा नहीं बनेगा उसके लिए कुछ नियम मोटे तौर पर बनाए गए हैं जिन्हें समझना आपके लिए आरम्भिक स्तर पर आवश्यक है. आने वाले पाठों में आपको प्रश्न कुण्डली के सिद्ध होने के नियमों को विस्तार से समझाया जाएगा. 

(1) यदि प्रश्न कुण्डली का शीर्षोदय लग्न(3, 5, 6, 7, 8 अथवा 11) हो और यह शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तब कार्यसिद्धि अवश्य होगी. 

(2) प्रश्न कुण्डली का पृष्ठोदय लग्न (1, 2, 4, 9 अथवा 10 ) हो और यह लग्न पाप दृष्ट हो तब कार्य सिद्धि नहीं होगी. 

(3) प्रश्न कुण्डली में यदि चन्द्रमा शुभ भाव में है, शुभ दृष्ट है तब कार्यसिद्धि होगी. 

(4) प्रश्न कुण्डली में यदि लग्न शुभ दृष्ट है और लग्न शुभ ग्रहों के प्रभाव में है तब कार्यसिद्धि होगी. 

(5) प्रश्न कुण्डली की नवाँश कुण्डली भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में तथा शुभ दृष्ट हो तब कार्यसिद्धि होगी. 

(6) प्रश्न कुण्डली में कार्य भाव का स्वामी अर्थात कार्येश लग्न में स्थित है और शुभ दृष्ट है तब कार्य की सिद्धि होगी. 

(7) कुण्डली में लग्नेश, प्रश्न संबंधित भाव को देखे और प्रश्न संबंधित भावेश लग्न को देखे तब कार्य की सिद्धि होगी. 

(8) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा भावेश की युति हो अथवा दोनों की परस्पर दृष्टि हो तो कार्य सिद्धि होगी. 

(9) प्रश्न कुण्डली में केन्द्र तथा त्रिकोण भावों में शुभ ग्रह हों और 3,6,11 भावों में अशुभ ग्रह हों तब कार्य की सिद्धि होगी. 

(10) लग्नेश तथा भावेश में ताजिक योग का कोई शुभ योग बन जाए तो कार्यसिद्धि होगी. 

उपरोक्त नियम में से यदि कोई नियम लगता है तो उसके साथ ताजिक के योगों को भी अवश्य देखें कि वह कार्यसिद्धि के लिए अनुकूल हैं अथवा नहीं. यदि नियमानुसार कार्यसिद्धि हो रही है लेकिन ताजिक के खराब योग भी बन रहें हैं तब कार्यसिद्धि नहीं होगी. 

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