स्वाधिष्ठान चक्र | Second Chakra । Sacral Chakr । Swadhisthana Chakra | Second Chakra Location | Chakra

स्वाधिष्ठान, चक्र जननेन्द्रियों या अधिष्ठान त्रिकास्थि में स्थित होता है. स्वाधिष्ठान को द्वितीय चक्र स्वाधिष्टान, सकराल, यौन, द्वितीय चक्र नामों से भी संबोधित किया जाता है. यह मूलाधार के पश्चात द्वितीय स्थान पाता है जिस कारण इसे द्वितीय (दूसरा) चक्र कहा जाता है. इसके जाग्रत होने पर आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास, अहंकार इत्यादि दुर्गणों का नाश होता है.

सहज ज्ञान – स्वाधिष्ठान चक्र | Swadhisthana Chakra

स्वाधिष्ठान या दूसरा चक्र, उपस्थ में स्थित होता है. यह चक्र छ: पंखुड़ियों वाला कमल होता है तथा यह कमल छ: नाड़ियों का मिलन स्थान भी है. इस स्थान पर छ ध्वनियां- वं, भं, मं, यं, रं, लं प्रवाहित होती रहती हैं.  इस चक्र का प्रभाव प्रजनन से संबंधित है. (sematext.com) स्वाधिष्ठान चक्र का तत्व जल है और यदि इस तत्व में मूलाधार का पृथ्वी तत्व विलीन हो तो कुटुम्ब बनाने तथा संबंधों कि कल्पना की उत्पत्ति आरंभ होने लगती है. 

स्वाधिष्ठान चक्र के कारण चित में नवीन भावनाओं उदय होने लगता है और यह चक्र भी अपान वायु के अधीन होता है तथा इसका सम्बंध चन्द्रमा से होता है. इस अधिष्ठान चक्र स्थान से ही प्रजनन संबंधी क्रियाएं सम्पन्न होती हैं. मनुष्य के शरीर अधिकतर भाग जल से निर्मित है अत: चित मनुष्य की भावनाओं के वेग को प्रभावित करता है. स्त्रियों में मासिकधर्म आदि चन्द्रमा से संबंधित है तथा इन कार्यो का नियंत्रण स्वाधिष्ठान चक्र द्वारा संभव होता है यह समस्त क्रियाएं स्वाधिष्ठान चक्र के द्वारा ही पूर्ण होती हैं. 

द्वितीय चक्र व्यक्ति के आंतरिक और बाहरी संसार में समानता स्थापित करने की कोशिश करता है तथा मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास होता है. हमारी प्रत्येक प्रकार की भावनाएँ इस चक्र से जुड़ीं हुई होती हैं, स्वाधिष्ठान चक्र किडनी, लीवर का नियंत्रण करना, मस्तिष्क को सोचने के शक्ति देना जैसे कार्य करता है. स्वाधिष्ठान चक्र पर ध्यान लगाने से हृदय शांत होता है तथा धारणा व ध्यान की शक्ति प्राप्त होती है और आत्म ज्ञान का अनुभव प्राप्त होता है. 

स्वाधिष्ठान को मूत्र तंत्र और अधिवृक्क से संबंधित भी माना है. इस चक्र का प्रतीक छह पंखुड़ियों वाला नारंगी रंग का एक कमल है. स्वाधिष्ठान का कार्य – संबंध, हिंसा, भावनात्मक आवश्यकताएं, व्यसन लत और सुख है. शारीरिक रूप से स्वाधिष्ठान- प्रजनन, मा‍नसिक रचनात्मकता, खुशी और उत्सुकता को नियंत्रित करता है.

दूसरे चक्र संबंधी समस्याएं । Second Chakra Imbalance

शारीरिक समस्याएँ | Physical Problems

स्वाधिष्ठान चक्र के निर्बल एवं खराब होने पर अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जैसे खून की कमी, शुष्क त्वचा, सोने पर बिस्तर गीला कर देना, खून में अस्थिरता, शरीर से दुर्गंध आना, खसरा, मधुमेह, किडनी और लीवर से सम्बंधित रोग, हर्निया, दाद या खाज, नपुंसकता, कामुक्ता की कमी, गुर्दे की समस्याएं, मासिक धर्म से संबंधित समस्याएँ, गर्भाशय मे समस्याएँ, पैरों में सुजन, पेशाब ग्रन्थि कि सम्स्याएँ, योनि मे विकार, शीघ्रपतन इत्यादि परेशानियों को देखा जा सकता है. 

मानसिक समस्याएँ | Emotional Problems

इसी प्रकार इस चक्र के कमजोर होने पर मानसिक एवं भावनात्मक परेशानियां भी उत्पन्न हो जाती हैं, जैसे कि शराब की लत लगना, अकेलापन, भावनात्मक कष्ट तथा अस्थिरता का भाव जागृत होना, भय, लालसा, विश्वास जैसी भावना का समाप्त होना, सृजनता कि कमी, आलस्य, निष्क्रिय होना, कामुक्ता की कमी, अकेलापन जैसे भाव बली होने लगते हैं.

रत्न तथा क्रिस्टल । Second Chakra Stones and Crystal

स्वाधिष्टान को मजबूत बनाने के लिए तथा इससे संबंधित समस्याओं से मुक्त होने के लिए कुछ रत्नों को धारण किया जा सकता है जैसे – हीरा, मोती, मून स्टोन, जैस्पर इत्यादि.

सुगन्ध | Second Chakra Aromatherapy

स्वादिष्ठान चक्र से संबंधित सुगंधें इस प्रकार हैं – रोज़मेरी, गुलाब, शहद, रात की रानी की खुश्बू है. इनका  इस्तेमाल करना फ़ायदेमंद होता है . 

स्वाधिष्ठान यौन इंन्द्रियों मे स्थापित होता है. 

स्वाधिष्टान का तत्व  – जल है. 

स्वाधिष्ठान का रंग – नारंगी है. 

स्वाधिष्ठान राग – तोडी और यमन हैं 

स्वाधिष्ठान चक्र मंत्र –  वम् है 

स्वाधिष्ठान चक्र बीजक्षार –  बं, भ, मं, यं, रं, लं हैं. 

स्वाधिष्ठान के गुण – निर्मल विद्या एवं निर्मल इच्छा चित्त हैं 

शरीर में स्थान – मूलाधार के ऊपर और नाभि के निचे,किडनी, यकृत में है. 

द्वितीय चक्र महत्व । Second Chakra Significance

स्वाधिष्ठान चक्र का स्वामी बृहस्पति है तथा धनु व मीन राशि होती हैं बृहस्पति संतान कारक ग्रह होता है इसलिए संतान की उत्पत्ति में इस चक्र की अहम भूमिका रहती है. यदि मनुष्य में बृहस्पति या धनु−मीन राशि पीड़ित हों तो इस चक्र संबंधी समस्या उत्पन्न हो सकती हैं तथा संतान संबंधी कष्ट या बृहस्पति, धनु, मीन राशि जिस भाव से संबंध बनाती हैं उस भाव संबंधी अंग में रोग भी हो सकता है. 

इस चक्र का रक्त वर्ण है, इस चक्र की अधिष्ठात्री देवी शाकिनी हैं, छह – ब, भ,म, य, र, ल वर्ण दल हैं. इस चक्र के स्वामी देवता विष्णु भगवान हैं अत: इसके निर्बल होने पर विष्णु भगवान का मनन एवं विष्णु सहस्र नाम का पाठ करना लाभकारी होता है तथा संतान प्राप्त हेतु गोपाल सहस्त्र नाम का पाठ किया जा सकता है. स्वाधिष्ठान चक्र जल के अंतर्गत आता है. 

इसके छ कमल दलों पर काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, अंहकार छ विकसित भाव वाली शिक्तयां वास करती हैं, यह  जीवन को प्रभावित करते हैं और व्यक्ति को हिंसक, क्रूर, कामी भाव में धकेलते हैं. इन विकारों के शमन से मोक्ष एवं मुक्ति प्राप्त होती है अत: साधक  को नियमित रूप से प्राण शोधन क्रिया एवं बीज मंत्र से स्वाधिष्ठान की साधना करनी चाहिए ऐसा करने से मन निर्मल होकर सार्वभौमिक सत्ता की ओर अग्रसर होता है और यहीं से समत्व के भाव की प्राप्ति होती है और वाणी मधुर बनती है. 

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