जानिए, लाजवर्त रत्न धारण करने के चमत्कारिक फायदे

लाजवर्त जिसका एक नाम लापिस लाजुली भी है. इस उपरत्न को शनि ग्रह के रत्न नीलम के उपरत्न रुप में धारण किया जाता है. इस उपरत्न की व्याख्या आसमान के सितारों से की जाती है. इस उपरत्न का रंग नीले रंग की विभिन्न आभाओं में पाया जाता है. नीले रंग के अंदर सफेद अथवा पीले रंग के धब्बे भी इस उपरत्न में पाए जाते हैं. इस उपरत्न की सबसे अच्छी किस्म में किसी प्रकार का कोई मिश्रण नहीं होता है.

लाजवर्त न केवल शांति हेतु उपयोग होता है अपितु इसका उपयोग सुंदर आभूषण बनाने और कई प्रकार की अन्य वस्तुओं में भी किया जाता रहा है. लाजवर्त का उपयोग बहुत पुराने समय से अनेक सभ्यताओं में देखा जाता रहा है. इसका उपयोग न केवल प्राचीन भारतीय संस्कृति में ही था, अपितु इसका उपयोग सिंधु घाटी की सभया में मिले अवशेषों में भी देखा गया है. इसे सुन्दर चमकदार रंग के कारण ही यह रत्न इतना बहुमूल्य रहा है. भारतीय ज्योतिष शास्त्र में इसे नव रत्नों में स्थान दिया गया है.

लाजवर्त कहां मिलता है

लाजवर्त अफ़गा़निस्तान में पाया जाता है. इसके साथ ही यूएसए और सोवियत रूस में भी यह पाया जाता है. लाजवर्त रत्न को फरवरी माह में पैदा होने वाले लोगों के लिए अनुकूल माना गया है.

लाजवर्त के गुण

इस उपरत्न में अलौकिक गुणों को बढा़ने की अदभुत क्षमता होती है. इस उपरत्न से उदासी का अंत होता है और बुखार की रोकथाम में भी यह उपरत्न सहायक होता है. यह नकारात्मक भावनाओं को दूर रखता है. यह गले संबंधी विकारों को दूर करता है. यह उपरत्न उन व्यक्तियों के लिए भी शुभ है जो डायबिटिज की बीमारी से ग्रसित है. यह व्यक्ति की सहनशक्ति बढा़ने में भी सहायक होता है.

लाजवर्त के अलौकिक गुण

इस उपरत्न को धारण करने से मानसिक क्षमता का विकास होता है. मस्तिष्क शांत रहता है. मस्तिष्क में स्पष्टता रहती है. पुरुषार्थ का विकास होता है. अध्यापन कार्य से जुडे़ व्यक्तियों के लिए यह उपरत्न उनकी क्षमताओं में वृद्धि करता है और वह अपने कार्य पर अपना पूर्ण ध्यान केन्द्रित करते हैं. रचनात्मक आत्म अभिव्यक्ति में वृद्धि करता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता के तनाव को दूर करता है और आध्यात्म में वृद्धि करता है. यह उनकी भी सहायता करता है जो व्यक्ति जीवन के सभी सूक्ष्म मूल्यों को समझते हैं.

कौन धारण करे

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित हैं वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

लाजवर्त रत्न पहनने से लाभ

लाजवर्त रत्न को धारण करने से मानसिक रुप से शांति प्राप्त होती है. इसी कारण इस रत्न का उपयोग हीलिंग चिकित्सा में भी किया जाता है. यह व्यक्ति के नकारात्मक प्रभाव में कमी लाने वाला होता है. इस रत्न की ऊर्जा और प्रकाश के कारण इसके आस-पास का माहौल काफी शुभदायक होता है. इस रत्‍न को कई मामलों में स्वतंत्रता और उन्मुक्तता का अनुभव कराने वाला कहा जाता है.

इस रत्न के प्रयोग से एकाग्रता में वृद्धि होती है. चीजों को याद रखने की आदत में इजाफा होता है. मनोविज्ञान से संबंधित कामों में भी इसका फायदा है. जो छात्र पढ़ाई में कमजोर हैं उनके कमरे में इस रत्न का उपयोग करना बेहतर होता है. यह रत्न बौद्धिकता और ज्ञान में वृद्धि कराने का कारक होता है. कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए इस रत्न का उपयोग भी किया जाता है. अगर आप नौकरी में सफलता के लिए प्रयासशील हैं तो इस रत्न का उपयोग फायदेमंद होता है.

जिन कामों में रचनात्मकता की जरुरत हो उस स्थान पर इस रत्न के उपयोग से चमत्कारिक फायदा मिलता है. अगर आप किसी पत्रकारिता के काम में जुड़े हैं या फिर किसी संस्थान में सलाहकार के रुप में कार्यरत हैं तो ये रत्न बहुत फायदेमंद होता है. इस रत्न का उपयोग जातक के आलसीपन को भी दूर करने वाला होता है. व्यक्ति अपने काम के प्रति सजग होता है. उसका ढुलमुल रवैया समाप्त होता है. यह व्यक्ति पर तुरंत अपना प्रभाव देने में भी सक्षम होता है.

इस रत्न का उपयोग गले और आवाज से संबंधित रोगों से बचाव के लिए भी इस रत्न के उपयोग से लाभ मिलता है.

लाजवर्त कैसे धारण करें

लाजवर्त का उपयोग अंगूठी, ब्रसलेट, लॉकेट इत्यादि में किया जा सकता है. इसे शनिवार के दिन पंचधातु या स्‍टील की धातु में जड़वाकर उपयोग करें. सूर्य अस्त होने से दो घंटे पहले ही इसकी प्राण प्रतिष्ठा करके शनि के कोई भी मंत्र जैसे ऊं शं शनैश्‍चराय नम: बोलते हुए इसे धारण करना चाहिए.

लाजवर्त की पहचान और गुणवत्ता

लाजवर्त अगर गहरे नीले रंग की चमकती हुई आभा लिए हुए हो तो यह बहुत ही अच्छा माना जाता है. इसके रंग और इसकी बनावट के आधार पर ही इसकी कीमत भी तय होती है. यदि कम गहरा नीला रंग हो या इसमें हरे, बैंगनी या भूरे रंग की झलक हो तो यह कम महंगा और कम असरकारक होता है.

कौन धारण नहीं करे

पुखराज, माणिक्य, मोती, मूँगा रत्न अथवा इनके उपरत्न के साथ लाजवर्त (लापिस लाजुली) उपरत्न को धारण नहीं करना चाहिए.

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