अष्टमी तिथि

चन्द्र मास में सप्तमी तिथि के बाद आने वाली तिथि अष्टमी तिथि कहलाती है. चन्द्र के क्योंकि दो पक्ष होते है, इसलिए यह तिथि प्रत्येक माह में दो बार आती है. जो अष्टमी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है, वह शुक्ल पक्ष की अष्टमी कहलाती है. पक्षों का निर्धारण पूर्णिमा व अमावस्या से होता है. पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष व अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष शुरु होता है. इस तिथि के स्वामी भगवान शिव है. इसके साथ ही यह तिथि जया तिथियों की श्रेणी में आती है.

अष्टमी तिथि प्रभावशाली और विजय की प्राप्ति के लिए बहुत ही उपयोगी है. यह तिथि उन कार्यों में सफलता दिलाने में बहुत सहायक बनती है जिनमें व्यक्ति को साहस और शौर्य की अधिक आवश्यकता होती है. माँ दुर्गा की शक्ति के लिए भी अष्टमी तिथि का बहुत महत्व होता है. इस दिन की ऊर्जा का प्रवाह व्यक्ति को जीवन जीने की शक्ति और विपदाओं से आगे बढ़ने की क्षमता भी देता है.

अष्टमी तिथि वार योग

जिस पक्ष में अष्टमी तिथि मंगलवार के दिन पडती है. तो उस दिन यह सिद्धिद्दा योग बनाती है. सिद्धिदा योग शुभ योग है. इसके विपरीत बुधवार के दिन अष्टमी तिथि हो तो मृत्यु योग बनता है. इस तिथि में भगवान शिव का पूजन केवल कृष्ण पक्ष में ही किया जाता है तथा शुक्ल पक्ष में अष्टमी तिथि के दिन भगवान शिव को पूजना शुभ नहीं होता है.

अष्टमी तिथि में किए जाने वाले काम

अष्टमी तिथि में किसी पर विजय प्राप्ति करना उत्तम माना गया है. यह विजय दिलाने वाली तिथि है, इस कारण जिन भी चीजों में व्यक्ति को सफलता चाहिए वह सभी काम इस तिथि में करे तो उसे सकारात्मक फल मिल सकते हैं.

इस तिथि में लेखन कार्य, घर इत्यादि वास्तु से संबंधित काम, शिल्प निर्माण से संबंधी काम, रत्नों से संबंधित कार्य, आमोद-प्रमोद से जुडे़ कार्य, अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले काम का आरम्भ इस तिथि में किया जा सकता है.

अष्टमी तिथि व्यक्ति गुण

अष्टमी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति धर्म कार्यो में निपुण होता है. वह सत्य बोलना पसन्द करता है. इसके साथ ही उसे भौतिक सुख-सुविधाओं में विशेष रुचि होती है. दया और दान जैसे गुणौं से निपुण होता है. तभा वह अनेक कार्यो में कुशलता प्राप्त करता है. अष्टमी तिथि में जन्मा जातक विद्वान और बहुत सी चीजों का जानकार होता है.

व्यक्ति में समाज के कल्याण की इच्छा भी होती है. वह कोशिश करता है की जो काम वह कर रहा है उसके प्रयासों में कोई कमी न आने पाए. परिवार में होने वाले मेल जोल और जिम्मेदारी से थोड़ा दूर भी रह सकता है. घूमने का शौकिन होता है. दूर स्थलों की यात्रा करना पसंद आता है. व्यक्ति ऎसे कामों में भागलेने की इच्छा अधिक रखता है जिनको करने में उसे बल का उपयोग अधिक करना पड़े. अपनी मर्जी का स्वामी होता है और खुद के बनाए नियमों पर चलना उसे ज्यादा पसंद आता है.

स्वास्थ्य की दृष्टि से सामान्य लेकिन चोट इत्यादि अधिक लग सकती है. मुख्य रुप से सिर और बाहें अधिक प्रभावित हो सकती हैं. इस तिथि में जन्मा जातक मध्यम कद का होता है, इनकी आंखें अधिक आकर्षक होती हैं. बातचीत में कुशल होता है.

अष्टमी तिथि पर्व

अष्टमी तिथि के दौरान भी बहुत से त्यौहार मनाए जाते हैं. ये त्यौहार दांपत्य सुख, संतान के सुख, समृद्धि और शत्रुओं पर विजय हेतु रखे जाते हैं. इस तिथि में अष्टमी के दौरान गौरी अष्टमी, राधाअष्टमी, शीतला अष्टमी जैसे त्यौहार मनाए जाते हैं.

अहोई अष्टमी –

यह त्यौहार माताएं अपनी संतान के सुख और उसकी लम्बी आयु की कामना हेतु रखती हैं. ये व्रत माता अहोई के निमित्त रखा जाता है. यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है. माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और शाम के समय तारे देख कर अहोई पूजन होता है . यह व्रत मुख्य रुप से उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्र में उत्साह और श्रृद्धा के साथ मनाया जाता है.

शीतला अष्टमी –

शीतला अष्टमी का व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. कुछ जगहों पर इस व्रत को बसौड़ा के नाम से जाना जाता है. इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है और बासी भोजन ही खाया जाता है. मान्यता है की शीतला माता का पूजन करने से चेचक, खसरा, माता जैसे रोग परेशान नहीं करते हैं. आज के दिन मुख्य रुप से माताएं अपने बच्चों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए इस दिन व्रत रखती है.

अष्टमी पूजन –

नवरात्रों के दिन अष्टमी तिथि में माता गौरी के पूजन का विशेष महत्व होता है. अष्टमी तिथि के दिन भी माँ दुर्गा की पूजा की जाती है. इस दिन छोटी बच्चियों का पूजन भी किया जाता है जिसे कन्या पूजन भी कहते हैं. कन्याओं को भोजन के लिए आमंत्रित करते हैं. (Xanax) इसमें 1 से 10 वर्ष तक की कन्याओं का पूजन होता है.

राधाष्टमी –

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि श्री राधाष्टमी पर्व के रुप में मनाई जाती है. मान्यता अनुसार इस तिथि के दिन श्री राधा जी प्रकट हुई थीं. पद्मपुराण में राधाजी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है. इसमें इनकी जन्म की कथा भी बताई गई है कि किस प्रकार वृशभानु को यज्ञ भूमी से राधा जी की प्राप्ति हुई थी. वृंदावन, ब्रज और बरसाना क्षेत्र में राधाष्टमी भी एक बड़े त्यौहार के रूप में मनाई जाती है.

सीता अष्टमी –

फाल्गुन कृष्ण अष्टमी तिथि को सीता अष्टमी मनाई जाती है. इस पर्व को सीता या जानकी जयंती के नाम से भी जाना जाता है.