आषाढ़ माह की कालाष्टमी जानें पूजा विधि और महत्व

आषाढ़ माह की कालाष्टमी

भारतीय संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है. इन्हीं धार्मिक अनुष्ठानों में से एक है कालाष्टमी व्रत, जो भगवान भैरव की पूजा के लिए समर्पित है. कालाष्टमी हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आती है, लेकिन आषाढ़ माह की कालाष्टमी का विशेष महत्व माना जाता है क्योंकि यह वर्षा ऋतु की शुरुआत का प्रतीक होती है और इसे तांत्रिक साधनाओं के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है.

कालाष्टमी का व्रत न केवल भगवान काल भैरव की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि नकारात्मक शक्तियों से रक्षा, भयमुक्त जीवन, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति हेतु भी किया जाता है. यहां हम आषाढ़ माह की कालाष्टमी पूजा की सम्पूर्ण जानकारी, महत्व, पूजा विधि, कथा और नियमों के बारे में जानेंगे.

काल भैरव कौन हैं

काल भैरव भगवान शिव के रौद्र रूप माने जाते हैं. उन्हें “भय का नाश करने वाला” कहा जाता है. शास्त्रों के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने अहंकारवश शिव का अपमान किया, तब शिव के क्रोध से काल भैरव का प्राकट्य हुआ जिन्होंने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था. इस कारण उन्हें ‘ब्रह्महत्या दोष’ से मुक्ति पाने के लिए काशी में वास करना पड़ा. आज भी काशी में काल भैरव का मंदिर विशेष प्रसिद्ध है.

आषाढ़ माह की कालाष्टमी का विशेष महत्व

आषाढ़ का महीना हिंदू पंचांग के अनुसार चौथा महीना होता है, जो ज्येष्ठ के बाद आता है. यह माह वर्षा ऋतु का आरंभ करता है और यह समय अध्यात्म व साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है. इस माह की कालाष्टमी में की गई पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है. विशेष रूप से जो लोग जीवन में भय, आर्थिक संकट, रोग या कोर्ट-कचहरी के मामलों से जूझ रहे होते हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना गया है.

कालाष्टमी की पूजा विधि

पूजा की तैयारी के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर लेना चाहिए. शुद्ध वस्त्र धारण करें और पूजा स्थान को साफ सुथरा करें. एक चौकी पर लाल या काले कपड़े को बिछाकर उस पर काल भैरव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें.

पूजा सामग्री के लिए फूल, धूप-दीप, सरसों का तेल, काला तिल, भोग खीर, हलवा, पूड़ी आदि अर्पित करें. पूजा समय भगवान भैरव का ध्यान कर निम्न मंत्र का उच्चारण करें “ॐ कालभैरवाय नमः” भैरव जी को तिल, तेल और काले फूल अर्पित करें. दीपक में सरसों का तेल भरकर भैरव जी के सामने जलाएं. भैरव चालीसा और कालभैरव अष्टक का पाठ करें. रात्रि के समय भैरव जी की विशेष आरती की जाती है. कालाष्टमी की रात को जागरण करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है. इसमें भैरव भजन, मंत्रजाप, कथा और ध्यान किया जाता है.

व्रत के नियम

व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. व्रत के दिन मांस-मदिरा का सेवन वर्जित होता है. दिनभर फलाहार पर रहकर शाम को भगवान भैरव की पूजा करें. इस दिन कुत्तों को भोजन कराना शुभ माना जाता है, क्योंकि कुत्ता काल भैरव का वाहन है. मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखना आवश्यक होता है. भारत में कई ऐसे स्थल हैं जो काल भैरव की पूजा के लिए प्रसिद्ध हैं, विशेष रूप से कालाष्टमी के दिन जहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है. 

भैरव अष्टमी कथा 

एक समय की बात है कि ब्रह्मा जी ने कहा कि वे सृष्टि के रचयिता और सबसे बड़े देव हैं. यह सुनकर भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि यह अहंकार उचित नहीं है. परन्तु ब्रह्मा जी नहीं माने. क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपनी जटा से एक तेजस्वी रूप प्रकट किया, जो काल भैरव के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

काल भैरव ने ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया, जो कि उनके अहंकार का प्रतीक था. इससे ब्रह्मा जी का घमंड चूर हुआ, लेकिन काल भैरव को ब्रह्महत्या का दोष लग गया. इस दोष से मुक्त होने के लिए वे कई स्थानों पर भटकते रहे, अंततः काशी में उन्हें मुक्ति मिली. तभी से उन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है.

कालाष्टमी पूजा लाभ 

काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति निडर और साहसी बनता है. जो लोग कोर्ट-कचहरी या किसी झूठे आरोप में फंसे होते हैं, उन्हें भैरव जी की आराधना से न्याय मिलता है. भैरव को स्वास्थ्य का रक्षक भी माना जाता है. तांत्रिक दृष्टिकोण से यह पूजा नकारात्मक शक्तियों को दूर करने में सहायक है.

आषाढ़ मास की कालाष्टमी का धार्मिक, आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा है. यह न केवल भगवान भैरव की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि जीवन के भय, संकट और समस्याओं से छुटकारा पाने का सरल उपाय भी है. जो भी भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को करता है, उसे मानसिक शांति, साहस, सुरक्षा और सफलता प्राप्त होती है.  

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