अग्नि नक्षत्रम : कब मनाया जाता है अग्नि नक्षत्रम का पर्व

ज्योतिष एवं धर्म शास्त्रों के अनुसार अग्नि नक्षत्रम का समय वो काल खंड होता है जब सूर्य का गोचर कुछ विशेष नक्षत्रों में हो रहा होता है. ऐसा ही एक विशेष काल है अग्नि नक्षत्र जिसे दक्षिण भारत सहित देश के कई भागों में अग्नि नक्षत्र पर्व के नाम से जाना जाता है ओर इस समय पर विशेष पूजा अनुष्ठान किए जाते हैं. यह समय ग्रमी की अधिकता, तेज धूप और तपन का प्रतीक माना जाता है.

अग्नि नक्षत्र क्या है

अग्नि नक्षत्र  जिसे तमिल में “कथिरी वेयिल” और संस्कृत में क्रूरा नक्षत्र भी कहा जाता है, वह समय होता है जब सूर्य भरणी नक्षत्र में प्रवेश करता है और अत्यधिक तीव्रता से गर्मी देने लगता है. यह काल आमतौर पर अप्रैल के अंतिम सप्ताह से शुरू होकर मई के मध्य तक चलता है हर वर्ष इसकी तिथि पंचांग और ग्रह स्थितियों के अनुसार थोड़ी बदल सकती है. ज्योतिष के अनुसार, जब सूर्य मेष राशि में उच्च स्थिति में होता है और भरणी, कृत्तिका आदि नक्षत्रों से होकर गुजरता है, तब पृथ्वी पर अत्यधिक गर्मी का प्रभाव पड़ता है. यह काल लगभग 21 दिन का होता है और इसे ही अग्नि नक्षत्र कहते हैं.

अग्नि नक्षत्र का समय और अवधि

हर साल अग्नि नक्षत्र की शुरुआत और समाप्ति तिथि पंचांग पर आधारित होती है. सामान्यत: यह अप्रैल के अंतिम सप्ताह या मई के पहले सप्ताह में आरंभ हो जाता है और लगभग 21 से 28 दिन तक इसका प्रभव बना रहता है. दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, और केरल में इसका विशेष महत्त्व है. तमिल पंचांग के अनुसार यह काल कथिरी वय्यल कहलाता है.

ज्योतिष में अग्नि नक्षत्र को एक क्रूर काल माना गया है. ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए कुछ कार्य शुभ फल नहीं देते नव निर्माण कार्य जैसे घर बनवाना, भूमि पूजन आदि से बचने की सलाह दी जाती है. शादी-ब्याह के लिए यह समय वर्जित होता है. सूर्य से जुड़ी पूजा विधियां जैसे सूर्य उपासना, सूर्य अर्घ्य, विशेष रूप से की जाती हैं. कुछ लोग इस समय में दान-पुण्य, उपवास और साधना के माध्यम से आत्मशुद्धि पर ध्यान केंद्रित करते हैं.

अग्नि नक्षत्र का वैज्ञानिक पक्ष

अग्नि नक्षत्र का वैज्ञानिक पक्ष मौसम विज्ञान से जुड़ा हुआ है. इस काल में सूर्य पृथ्वी के अत्यधिक निकट होता है और सूर्य की किरणें सीधे भूमध्यरेखा के ऊपर पड़ती हैं. इसके कारण:

दिन का तापमान अत्यधिक होता है, हवा में नमी कम होती है, जिससे वातावरण और अधिक शुष्क हो जाता है. हीटवेव की घटनाएँ बढ़ जाती हैं. पानी के स्रोत जैसे झीलें, तालाब और कुएं सूखने लगते हैं. मोसम में बड़े बदलावों को इस दौरान देखा जाता है. 

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

तमिलनाडु में कथिरी वय्यल के समय लोग हल्के भोजन करते हैं, गर्मी से बचने के लिए परंपरागत उपाय अपनाते हैं, जैसे नीलम चूर्ण, वेटिवर पानी (खस का पानी), पाल्म जूस आदि का सेवन. तेलुगु क्षेत्रों में, इस समय जल दान और अन्नदान का विशेष महत्त्व होता है.

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अग्नि नक्षत्र से जुड़ी कई लोक मान्यताएं हैं. जैसे गायों और पशुओं को पानी पिलाना पुण्य का काम माना जाता है. इस काल में पेड़-पौधों को जल देना पुण्यदायक समझा जाता है. अग्नि नक्षत्र न केवल मौसम का एक विशेष कालखंड है, बल्कि यह हमें प्रकृति के प्रभाव, संतुलन और जीवन शैली के प्रति जागरूक करता है. यह काल हमें सिखाता है कि प्रकृति के तीव्र स्वरूपों का सम्मान करें, उनके साथ तालमेल बिठाकर ही हम सुरक्षित और स्वस्थ रह सकते हैं. इसलिए अग्नि नक्षत्र के समय केवल शारीरिक ही नहीं, मानसिक और सामाजिक रूप से भी सजग रहना आवश्यक है.  

अग्नि नक्षत्रम कथा

अग्नि नक्षत्रम शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है उग्र तारा. यह समय मई के महीने में शुरू होता है और इसकी तीव्रता बदलती रहती है, जब सूर्य भरणी नक्षत्र में प्रवेश करता है तो यह चरम पर होता है. अग्नि नक्षत्रम दो तमिल महीनों में फैला हुआ है चिथिरई और वैकासी. चिथिरई में, यह दस दिनों तक रहता है, जबकि वैकासी में, यह अधिक दिनों तक चलता है जिसे अक्सर कथिरी वेइल अवधि के रूप में जाना जाता है.

यह समय भगवान मुरुगन के लिए भी शुभ माना जाता है और कई लोग मानते हैं कि अग्नि नक्षत्र के दौरान गृह प्रवेश समारोह जैसे महत्वपूर्ण जीवन की घटनाओं से बचना सबसे अच्छा है. ऐसा माना जाता है कि इस अवधि के दौरान तीव्र गर्मी ऐसे अवसरों के लिए आवश्यक ऊर्जा को बाधित करती है. मंदिरों में, विशेष रूप से पलानी और तिरुत्तनी जैसे पवित्र स्थलों पर, गर्मी को कम करने के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं. अग्नि नक्षत्र की पौराणिक कथा खांडव वन का जलना है जैसा कि महाभारत में वर्णित है. 

अग्नि के देवता अग्नि देव राजा सुवेदकी और ऋषि दुर्वासा द्वारा किए गए वर्षों के निरंतर यज्ञों से बहुत अधिक घी खाने के बाद कमजोर हो गए थे. अपनी ताकत वापस पाने के लिए, उन्हें पवित्र खांडव वन की औषधीय जड़ी-बूटियों और पौधों का सेवन करने की आवश्यकता थी. हालाँकि, जंगल की रक्षा देवताओं के राजा भगवान इंद्र द्वारा की जाती थी, जो अग्नि की लपटों को बुझाने के लिए वर्षा का उपयोग करते थे, जब भी अग्नि उसे जलाने की कोशिश करती थी.

हताश होकर अग्नि ने भगवान कृष्ण और अर्जुन से मदद मांगी. वे सहमत हुए इस दौरान इंद्र ने मूसलाधार बारिश से अग्नि को रोकने का प्रयास किया, लेकिन अर्जुन ने अपने दिव्य बाणों से बारिश को रोक दिया, और कृष्ण ने अटूट दिव्य सहायता प्रदान की और अग्नि पूरी तरह से तरोताजा हो गई और उसने कृष्ण और अर्जुन के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त की. तीव्र गर्मी और आग के इन दिनों को अब अग्नि नक्षत्रम के रूप में जाना जाता है जो अग्नि के पुनर्जन्म और शुद्धि का प्रतीक है.  

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