हिंदू धर्म में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और प्रथम पूज्य देवता के रूप में पूजा जाता है. वर्ष भर में भगवान गणेश को समर्पित कई व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें से संकष्टी चतुर्थी का विशेष स्थान है. प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है, और यदि यह मंगलवार को पड़े तो अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहलाती है. ज्येष्ठ माह की संकष्टी चतुर्थी को ‘एकदंत संकष्टी चतुर्थी’ कहा जाता है, जो भगवान गणेश के ‘एकदंत’ स्वरूप को समर्पित होती है.
ज्येष्ठ माह एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व
ज्येष्ठ मास की संकष्टी चतुर्थी का धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्व होता है. इस दिन व्रती गणेश जी की पूजा करके समस्त कष्टों, बाधाओं और संकटों से मुक्ति की कामना करते हैं. ‘संकष्टी’ शब्द का अर्थ होता है ‘संकट को हरने वाली’, और ‘एकदंत’ भगवान गणेश का वह स्वरूप है जिनका एक ही दांत है. पौराणिक मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजा करने से जीवन के सभी दुखों और रोगों का नाश होता है और भक्त को सुख, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है.
एकदंत गणेश जी का स्वरूप
भगवान गणेश के एकदंत स्वरूप का भी पौराणिक महत्व है. एक कथा के अनुसार, एक बार परशुराम जी जब भगवान शिव से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे, तब गणेश जी ने उन्हें अंदर जाने से रोका. इससे क्रोधित होकर परशुराम जी ने अपने फरसे से गणेश जी पर प्रहार किया, जिससे उनका एक दांत टूट गया. तभी से उन्हें एकदंत कहा गया. यह स्वरूप दृढ़ संकल्प, संयम और क्षमाशीलता का प्रतीक माना जाता है.
ज्येष्ठ माह की एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत विधि
इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए. भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र को लाल या पीले वस्त्र पर स्थापित करने चाहिए. फिर उन्हें रोली, अक्षत, दूर्वा, लाल फूल, मोदक, नारियल आदि अर्पित करने चाहिए. व्रत में दिनभर निराहार या फलाहार रहकर संध्या के समय चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत खोला जाता है.
स्नान व संकल्प लेना चाहिए, प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
पूजन सामग्री तैयार करने चाहिए, दूर्वा, फूल, मोदक, लड्डू, धूप, दीप, कपूर, रोली, अक्षत, जल से भरा कलश, पंचामृत आदि एकत्र करने चाहिए.
भगवान गणेश की स्थापना शुभ होती है, घर के मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा रखें और उनके समक्ष कलश स्थापित करने चाहिए.
ध्यान और आवाहन करना शुभ होता है, भगवान गणेश का ध्यान करने चाहिए और उन्हें पूजन के लिए आमंत्रित करने चाहिए.
रोली, अक्षत और चंदन से तिलक करने चाहिए.
फूल और दूर्वा चढ़ाएं. दूर्वा को विशेष महत्व दिया जाता है.
भोग के रूप में मोदक या लड्डू अर्पित करने चाहिए.
धूप-दीप जलाकर आरती करने चाहिए.
व्रत कथा का पाठ शुभ होता है, एकदंत संकष्टी चतुर्थी की कथा श्रवण करने चाहिए या पढ़ना चाहिए.
चंद्रमा को अर्घ्य देना शुभ होता है रात में चंद्रमा के दर्शन कर अर्घ्य दें और व्रत का पारण करने चाहिए.
ज्येष्ठ माह की एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत का लाभ
इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति आती है.
सभी प्रकार के विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं.
संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को संतान सुख की प्राप्ति होती है.
व्यापार, नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में तरक्की मिलती है.
मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है.
रोगों और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है.
ज्येष्ठ माह की एकदंत संकष्टी चतुर्थी का पौराणिक महत्व
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि चतुर्थी तिथि स्वयं भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय है. एकदंत चतुर्थी का व्रत भगवान के एकदंत स्वरूप की आराधना से संबंधित है. यह स्वरूप हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में यदि कोई कठिनाई आए, तो उसे धैर्य और संयम से पार किया जा सकता है. एकदंत होने के बाद भी गणेश जी अपने सभी कार्यों में सफल रहते हैं, यह हमारे लिए प्रेरणास्रोत है.
ज्येष्ठ माह की एकदंत संकष्टी चतुर्थी की कथा
प्राचीन समय की बात है, एक निर्धन ब्राह्मण परिवार था. उसमें एक महिला अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए हर संकष्टी चतुर्थी को व्रत करती थी. एक बार ज्येष्ठ माह की संकष्टी चतुर्थी आई. महिला ने व्रत रखा और विधिपूर्वक पूजन किया. उसी रात उसे स्वप्न में भगवान गणेश के एकदंत स्वरूप के दर्शन हुए. भगवान ने कहा कि “तुम्हारे व्रत से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं, तुम्हारा पुत्र लंबी उम्र वाला और बुद्धिमान बनेगा.”
अगले दिन उस महिला ने चंद्र दर्शन के साथ व्रत का पारण किया. समय के साथ उसका पुत्र विद्वान, धर्मनिष्ठ और समाज का आदर्श बन गया. इस कथा से यह सिद्ध होता है कि भगवान गणेश अपने भक्तों के व्रत से प्रसन्न होकर उन्हें मनोवांछित फल प्रदान करते हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में संकष्टी चतुर्थी विशेष उत्सव के रूप में मनाई जाती है. कई स्थानों पर भजन-कीर्तन, कथा पाठ, गणेश पूजन और सामूहिक व्रत भी आयोजित किए जाते हैं. ज्येष्ठ माह में गर्मी अधिक होती है, इसलिए इस समय व्रत करने से शरीर को संयम और मन को स्थिरता की प्राप्ति होती है. यह तप और भक्ति दोनों का अद्भुत मेल है.
ज्येष्ठ माह की एकदंत संकष्टी चतुर्थी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और मानसिक अनुशासन का माध्यम भी है. भगवान गणेश के प्रति श्रद्धा और आस्था रखने वाले इस व्रत को पूरी निष्ठा से करते हैं, जिससे उनके जीवन की अनेक समस्याएं दूर हो जाती हैं. यह व्रत विश्वास, समर्पण और नियमितता का प्रतीक है. एकदंत गणेश की पूजा करके हम न केवल अपने जीवन के विघ्नों को हर सकते हैं, बल्कि अपने आत्मबल को भी सुदृढ़ कर सकते हैं.