चित्रा पौर्णमि : जानें इस दिन का महत्व और विशेष प्रभाव

चित्रा पौर्णमि का पर्व तमिल हिन्दुओं का एक विशेष त्यौहार है जो चिथिराई माह में आने वाली पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है. इस त्योहार का संबंध चित्रगुप्त जी से है जिन्हें यमराज का सहायक माना जाता है. भगवान चित्रगुप्त सभी जीवों के कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं जिसके अनुसार जीव अपने पाप अथवा पुण्यों के अनुसा फल पाता है. इस दिन भक्त भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं और अपने कर्मों की शुभता के लिए प्रार्थना करते हैं और जाने अंजाने में हुए गलत कामों के लिए क्षमा मांगते हैं. जिससे भक्त अपने जीवन के शुभ कर्मों को बढ़ा सके और सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त कर सके.

चित्रा पूर्णिमा कब मनाई जाती है?

चित्रा पूर्णिमा एक प्रमुख हिन्दू पर्व है जो दक्षिण भारत में धूम धाम से मनाते हैं तमिल हिंदुओं का खास समय होता है जो चिथिराई मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. जब सूर्य मेष राशि में होता है, तो यह वैदिक नववर्ष की शुरुआत को दर्शाता और पहली पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में चमकती है, तो इसे चित्रा पूर्णिमा या चित्रा पूर्णिमा कहा जाता है.इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है और इसे धार्मिक दृष्टि से बहुत शुभ माना जाता है. चित्रा नक्षत्र और पूर्णिमा तिथि के संयोग से इसे चित्रा पूर्णिमा कहा जाता है.

इस दिन धूप, कपूर, फूलों के साथ कर्मों को लिखने वाले लेखाकार बहीखाताकार चित्रगुप्त और भगवान शिव की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है. गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराने से भी दिव्य आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है. चित्र पूर्णिमा का पौराणिक महत्व चित्र पूर्णिमा चित्र पूर्णिमा को दिव्य लेखाकार चित्रगुप्त का जन्मदिन माना जाता है. भगवान ब्रह्मा ने उन्हें सूर्य देव के माध्यम से बनाया था. उन्हें मृत्यु के देवता यम का छोटा भाई और उनका सहायक माना जाता है.

माना जाता है कि चित्रगुप्त मनुष्यों के अच्छे और बुरे कर्मों को रिकॉर्ड करने के लिए पृथ्वी पर निगरानी रखते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति मरता है, तो चित्रगुप्त तुरंत उस व्यक्ति के अच्छे और बुरे कर्मों की पूरी जाँच करते हैं. फिर वह व्यक्ति की आत्मा के भाग्य पर अंतिम निर्णय लेने के लिए भगवान यम को संदेश देते हैं. इस दिन, वह उदार हो जाते हैं और उन लोगों के पापों को मिटाने में मदद कर सकते हैं जो अपने कर्मों से छुटकारा पाने के लिए उपाय करते हैं.

चित्रा पूर्णिमा पूजा विधि

चित्रा पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु प्रातःकाल उठकर स्नान कर पवित्रता का पालन करते हैं. फिर विशेष रूप से चंद्र देव, भगवान विष्णु और चित्रगुप्त की पूजा की जाती है. दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु और केरल में इस दिन की पूजा अत्यंत भव्य होती है. पूजा विधि इस प्रकार होती है

सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें.

घर या मंदिर में चित्रगुप्त जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें.

उन्हें अक्षत, फूल, धूप, दीप, रोली और नैवेद्य अर्पित करें.

व्रत करने वाले व्यक्ति उपवास रखते हैं और दिन भर भजन-कीर्तन करते हैं.

रात में चंद्रमा को अर्घ्य देना अत्यंत शुभ माना जाता है.

कई स्थानों पर पवित्र नदियों में स्नान करना भी आवश्यक माना जाता है.

चित्रा पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?

चित्रा पूर्णिमा का पर्व मुख्य रूप से पुण्य अर्जन, पापों का शमन और आत्मशुद्धि हेतु मनाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ यमराज के सचिव चित्रगुप्त जी की पूजा का विशेष महत्व होता है. चित्रगुप्त जी का कार्य जीवों के कर्मों का लेखा-जोखा रखना है. मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा से व्यक्ति के पाप कम होते हैं और उसे धर्म, मोक्ष तथा सत्य पथ पर चलने की प्रेरणा मिलती है. इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस दिन किए गए दान और सेवा के कार्य कई गुना फलदायी होते हैं.

चित्रा पूर्णिमा पूजा के लाभ

चित्रा पूर्णिमा व्रत और पूजा करने से अनेक आध्यात्मिक एवं सांसारिक लाभ प्राप्त होते हैं.

कर्म शुद्धि: इस दिन की पूजा व्यक्ति को अपने बुरे कर्मों से मुक्ति दिलाती है और उसे आत्मनिरीक्षण करने का अवसर देती है.

मानसिक शांति: चंद्र पूजा से मन को शांति मिलती है और तनाव कम होता है.

धन और समृद्धि: भगवान विष्णु और चित्रगुप्त जी की कृपा से जीवन में धन, सुख और वैभव की प्राप्ति होती है.

पारिवारिक सुख: इस दिन पूजा करने से पारिवारिक समस्याएँ दूर होती हैं और परिवार में शांति एवं प्रेम बना रहता है.

आरोग्यता: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चित्रा पूर्णिमा पर स्नान और उपवास करने से शरीर की शुद्धि होती है और रोगों से मुक्ति मिलती है.

मोक्ष की प्राप्ति: यह दिन मोक्षदायक माना गया है. विशेष रूप से वे लोग जो अपने पूर्वजों की शांति हेतु यह व्रत करते हैं, उन्हें दिव्य लाभ प्राप्त होता है.

चित्रा पूर्णिमा का महत्व

चित्रा पूर्णिमा न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसका महत्व निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है. यह दिन विशेष रूप से चित्रगुप्त जी और चंद्र देव की आराधना के लिए शुभ होता है. इस दिन की पूजा से आत्मा की शुद्धि और मन की शांति प्राप्त होती है. चित्रगुप्त न्याय और धर्म के रक्षक माने जाते हैं. इस दिन उनके प्रति श्रद्धा और निष्ठा प्रकट कर मनुष्य अपने कर्मों की जिम्मेदारी समझता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन स्नान, दान और पूजा करने से हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है. चंद्रमा मानसिक स्वास्थ्य का प्रतीक है. पूर्णिमा पर चंद्रमा की शीतलता और ऊर्जा ध्यान और ध्यान साधना के लिए उपयुक्त मानी जाती है.

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