जैन धर्म, जो कि भारतीय धार्मिक परंपराओं में एक प्राचीन और अद्वितीय स्थान रखता है, इनमें कई महत्वपूर्ण तिथियां अनुष्ठान होते हैं. इन अनुष्ठानों में से एक प्रमुख अनुष्ठान है अष्टाह्निका विधान. अष्टाह्निका विधान विशेष रूप से श्रावक समुदाय द्वारा पालन किया जाता है और यह एक पवित्र समय होता है, जिसका उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक स्तर में उत्तम स्थान प्राप्त करना है. अष्टाह्निका शब्द का अर्थ होता है आठ दिन जो साधना से पूर्ण होते हैं.
अष्टानिका पर्व जैन धर्म के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है. यह पर्व साल में तीन बार यानी कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ माह में मनाया जाता है. यह पर्व भगवान महावीर स्वामी को समर्पित है. फाल्गुन अष्टानिका विधान का आयोजन जैन कैलेंडर के आधार पर तिथि के अनुसार किया जाता है. यह अनुष्ठान मुख्य रूप से आठ दिनों तक चलता है और जैन धर्म के अनुयायी इसे बड़े श्रद्धा और विधिपूर्वक करते हैं. अष्टाह्निका विधान का पालन विशेष रूप से किया जाता है, जो आत्मा की शुद्धि और जीवन मुक्ति मार्गदर्शन करने का कार्य करते हैं.
कब कब मनाया जाता है आषाढ़ अष्टाह्निका पर्व
यह हर चार महीने में, आषाढ़ (जून-जुलाई), कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) और फाल्गुन (फरवरी-मार्च) के महीनों के शुक्ल पक्ष के आठवें दिन से पूर्णिमा तक मनाया जाता है. इसलिए इसे अष्टाह्निका कहा जाता है.
आषाढ़ और फाल्गुन के महीनों में अष्टाह्निका होती है, तो अनुष्ठान को नंदीश्वर अष्टाह्निका के रूप में जाना जाता है. अपनी संस्कृति के अनुसार, “अष्टाह्निका जैन त्योहारों में से एक है जिसका बहुत महत्व है. यह सबसे पुराने जैन अनुष्ठानों में से एक है. भक्त जैन धर्म के प्रचारक भगवान महावीर को हिंदू भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं. इसलिए, अष्टाह्निका विधान अनुष्ठानों को हिंदुओं द्वारा भी शुभ माना जाता है.
आषाढ़ अष्टाह्निका से संबंधित कार्य
अष्टाह्निका विधान का उद्देश्य आत्मा के शुद्धिकरण के साथ-साथ जैन धर्म के आचार और सिद्धांतों का पालन करना है. यह अनुष्ठान विशेष रूप से उन दिनों में आयोजित किया जाता है, जब जैन धर्म के अनुयायी अपने जीवन में आत्मा की शुद्धि, तप, और साधना का विशेष महत्व देते हैं. यह एक अवसर है जब व्यक्ति अपने जीवन को पुनः संतुलित करने, अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य और संपत्ति से वैराग्य जैसे जैन सिद्धांतों को पुनः अपनाता है. यह अनुष्ठान जैन अनुयायियों को मानसिक और शारीरिक रूप से शुद्ध करता है, जिससे उनकी आत्मा को उच्च स्तर की शांति और संतुलन प्राप्त होता है. इसके अतिरिक्त, अष्टाह्निका विधान को शुद्ध तप, साधना और ध्यान की प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, जिससे व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है.
अष्टाह्निका विधान का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
अष्टाह्निका विधान केवल एक शारीरिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा है. इसके माध्यम से, जैन अनुयायी अपने आत्मा को शुद्ध करते हैं. अपने पापों से मुक्ति पाने की कोशिश करते हैं. जैन धर्म के अनुसार, हर व्यक्ति के कर्म उसके जीवन के लिए जिम्मेदार होते हैं और यह समय कर्मों का शुद्धिकरण करने का एक अवसर है. इसके साथ ही, अष्टाह्निका विधान से व्यक्ति अपने भीतर के अहंकार और लोभ को त्याग कर अहिंसा, करुणा, और प्रेम को स्थान देता है. यह धार्मिक और आध्यात्मिक साधना के रूप में व्यक्तित्व का विकास करता है. जैन धर्म में समय का ध्यान और तप की शक्ति का अत्यधिक महत्व है और अष्टाह्निका विधान इन्हीं सिद्धांतों को जीवन में उतारने का एक माध्यम है.
अष्टाह्निका विधान न केवल व्यक्तिगत रूप से लाभकारी होता है, बल्कि समाज पर भी इसके गहरे प्रभाव होते हैं. यह अनुष्ठान सामूहिक एकता, सहिष्णुता, और अहिंसा की भावना को बढ़ावा देता है. इसके अलावा, जैन समुदाय के लोग अष्टाह्निका विधान के दौरान आपस में सहयोग और सहायता करने की भावना रखते हैं, जो सामाजिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होता है. अष्टाह्निका विधान जैन धर्म में एक अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो व्यक्ति के आत्मा की शुद्धि, तप, साधना और ध्यान के माध्यम से उसकी आध्यात्मिक प्रगति में सहायक होता है. यह अनुष्ठान केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह समाज में शांति, सहिष्णुता, और अहिंसा के प्रचार में भी योगदान करता है. जैन अनुयायी इस अनुष्ठान के माध्यम से अपने जीवन को पुनः संवारने, शुद्ध करने और आत्मा के उच्चतम स्तर तक पहुंचने का प्रयास करते हैं. इस प्रकार, अष्टाह्निका विधान जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो न केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि समाज के लिए भी लाभकारी है.
यह त्योहार आठ दिनों तक चलता है. इस पर्व के दौरान विभिन्न तरह के अनुष्ठान, उपवास और प्रार्थनाओं को किया जाता है. आषाढ़ अष्टाह्निका विशेष और पुराने जैन अनुष्ठानों में से एक है. दिगंबर और श्वेतांबर दोनों संप्रदाय हर साल तीन बार इस आठ दिवसीय अनुष्ठान (अष्टाह्निका) को मनाते हैं. अष्टाह्निका शब्द को “अष्ट” यानी आठ से संबंधित माना गया है. यह उत्सव आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और ज्ञान प्राप्त करने में मदद करता है. इस समय का पालन करने से भक्तों की इच्छा पूरी होती है.
आषाढ़ अष्टाह्निका से संबंधित विचार
अष्टाह्निका के अनुष्ठान पद्म पुराण में पाए जा सकते हैं, जो रविसेनाचार्य का एक साहित्यिक कार्य है. “जैसा कि पद्म पुराण में उल्लेख किया गया है, राजा दशरथ ने कार्तिक महीने में अष्टाह्निका विधान मनाया और भगवान जिन से आशीर्वाद प्राप्त किया. एक अन्य साहित्यिक कृति श्रीपालचरित्रे के अनुसार, मैनासुंदरी ने कार्तिक अष्टाह्निका की इस शुभ अवधि के दौरान कुष्ठ रोग को ठीक किया. महान ऋषि अकालंकदेव ने इस अवधि के दौरान बौद्ध भिक्षुओं को हराकर गौरव प्राप्त किया और जैन धर्म की महिमा का प्रचार करने में कामयाब रहे, इस महीने के दौरान सिद्धचक्र पूजा विधान पूजा अनुष्ठान भी मनाया जाता है.
अष्टानिका पर्व के संबंध में कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत मैना सुंदरी ने की थी, जिन्होंने अपने पति श्रीपाल के कुष्ठ रोग को दूर करने के लिए प्रयास किए थे, जिसका उल्लेख जैन शास्त्रों में मिलता है. इतना ही नहीं, अपने पति को ठीक करने के लिए उन्होंने सिद्धचक्र विधान मंडल का जल छिड़कने और तीर्थंकरों के अभिषेक तक 8 दिनों तक साधना की थी. तभी से जैन धर्म के अनुयायी ध्यान और आत्मशुद्धि के लिए इन 8 दिनों तक कठिन तपस्या और उपवास करते हैं. पद्मपुराण में इस पर्व का वर्णन करते हुए कहा गया है कि सिद्ध चक्र का पालन करने से कुष्ठ रोगी भी रोग से मुक्त हो गए थे. इसलिए जैन धर्म में इस व्रत का बहुत महत्व माना गया है.