वसंत पूर्णिमा हिंदू कैलेंडर में एक बहुत ही महत्वपूर्ण अवधि है, इस समय को देश भर में यह त्यौहार उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है. इस समय कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इस समय को रंगों से भरी पूर्णिमा के रुप में भी जाना जाता है. वसंत पूर्णिमा के दिन विशेष पूजा-अर्चना और अन्य धार्मिक कार्य किए जाते हैं. पूर्णिमा को साल का चंद्रमा के बल के लिए भी जाना जाता है, इसे पूरे भारत में पूनम, पूर्णिमा और पूर्णमासी आदि नामों से मनाया जाता है.
वसंत पूर्णिमा होली का पर्व
वसंत पूर्णिमा फाल्गुन महीने में शुक्ल पक्ष के अंत में होती है, जो साल का आखिरी महीना भी होता है. फाल्गुन पूर्णिमा हिंदू कैलेंडर के अंत का प्रतीक है और एक नए साल की शुरुआत का आगमन भी है. यह दिन वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है और शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी ऊर्जाओं से पृथ्वी को प्रभावित करता है. इस दिन किए गए अनुष्ठान प्रकृति और मनुष्य के बीच घनिष्ठ संबंध का प्रतीक हैं.
वसंत पूर्णिमा के समय पर ही होली का उत्सव भी मनाया जाता है. रंगों से जुड़ा यह पर्व सभी के भीतर आनंद और प्रेम को भर देने वाला होता है.
वसंत पूर्णिमा सभी बारह महीनों में से अंतिम महीना है. हिंदू नववर्ष का अंतिम महीना वसंत महीना होता है और इस महीने में आने वाली पूर्णिमा बहुत महत्वपूर्ण होती है. वसंत पूर्णिमा पर पूर्णिमा तीव्र गति से ऊर्जा प्रवाहित करती है. इस दिन अनुष्ठान करने से संपुर्ण उर्जाओं के साथ बेहतर तालमेल बनता है.
वसंत पूर्णिमा व्रत एवं पूजन
पूर्णिमा पर चंद्रमा सबसे शक्तिशाली होता है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हर पूर्णिमा का अपना महत्व और महत्ता होती है, हर पूर्णिमा पर पूजा की विधि भी अलग होती है. वसंत पूर्णिमा पर पूजा-पाठ, धार्मिक स्थलों पर दान, गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि यह बहुत पुण्य का काम है और मोक्ष के करीब ले जाता है.
वसंत पूर्णिमा कथा
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. वसंत पूर्णिमा कथा में होली का भी वर्णन है. यह कथा हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद से जुड़ी है. इस कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद को मारना चाहता था, क्योंकि वह भगवान विष्णु का भक्त था. हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना दुश्मन मानता था और वह भगवान विष्णु की पूजा करने वाले सभी लोगों को दंडित करता था. इसलिए वह अपने बेटे से नफरत करने लगा था. वह प्रह्लाद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, लेकिन हर बार भगवान विष्णु प्रह्लाद को बचा लेते हैं.
आखिर में हिरण्यकश्यप एक योजना बनाता है. वह अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को गोद में लेकर आग पर बैठने को कहता है. भगवान ब्रह्मा ने होलिका को वरदान दिया था. वरदान के अनुसार वह कभी भी आग में नहीं जल सकती. इसलिए वह प्रह्लाद के साथ आग में बैठ गई. लेकिन भगवान विष्णु के आशीर्वाद से प्रह्लाद आग से बच गया, बल्कि होलिका जल गई.
होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इस दिन होलिका दहन किया जाता है. गाय के गोबर और लकड़ियों की मदद से होलिका बनाई जाती है. होलिका दहन पूरा होने पर शुभ मुहूर्त में पूजा की जाती है.
वसंत पूर्णिमा पूजन विधि
प्राचीन शास्त्रों के अनुसार, वसंत पूर्णिमा के दिन किसी पवित्र स्थान पर स्नान करना चाहिए. अगर यात्रा करना संभव न हो तो नहाने के पानी में गंगा जल की कुछ बूंदें मिला सकते हैं. विधि अनुसार चंद्रमा की पूजा करें. पूजा करते समय चंद्र मंत्र का जाप करना चाहिए. वसंत पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा करने से सुख और मानसिक शांति मिलती है. इस दिन श्री विष्णु भगवान के साथ भगवान शिव की पूजा करें और शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिए. भगवान नरसिंह, जिन्हें भगवान श्री हरि विष्णु का अवतार माना जाता है, उनकी पूजा भी इस दिन की जाती है. ऐसा माना जाता है कि इस शुभ दिन पर भगवान नरसिंह, भगवान श्री हरि विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से समस्त कष्टों का नाश होता है और सुख समृद्धि का वास होता है.
वसंत पूर्णिमा और चंद्रमा के पूजन का महत्व
वसंत पूर्णिमा पर चंद्र देव की पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन उनका जन्म हुआ था. भगवान शिव को चंद्रमा का देवता माना जाता है. भगवान शिव ने चंद्रमा को अपने माथे पर धारण किया है. इसलिए इस दिन चंद्रमा के साथ भगवान शिव की भी पूजा की जाती है. चंद्रमा का गोत्र अत्रि और दिशा वायव है. सोमवार को चंद्रमा का दिन माना जाता है. इसलिए सोमवार को चंद्रमा की पूजा की जाती है और इसके साथ ही अगर पूर्णिमा भी सोमवार को हो तो इसे बहुत लाभकारी माना जाता है.
चंद्रमा जल का प्रतिनिधित्व करता है. इस दिन ज्वार-भाटा अधिक होता है. इस दिन व्यक्ति के मन और शरीर पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है. मानव चेतना का प्रवाह अधिक गति से होता है. इसका मानव शरीर पर प्रभाव पड़ता है क्योंकि हमारा शरीर 60% पानी से बना है. चंद्रमा विस्तार की ओर ले जाता है.
इस दिन चंद्रमा की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में नकारात्मकता और अंधकार दूर होता है. ज्योतिष के अनुसार अगर इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाए तो चंद्रमा के सभी अशुभ प्रभाव दूर होते हैं और मानसिक शक्ति भी बढ़ती है. ज्योतिष में चंद्रमा को शुभ और सौम्य ग्रह माना जाता है. यह स्त्रीत्व का प्रतिनिधित्व करता है. ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा में अमृत होता है और इसलिए इसका संबंध दवाओं से भी है अत: चंद्र देव का पूजन स्वास्थ्य को भी बल देने वाला होता है.