रंगभरी एकादशी: एक आध्यात्मिक पर्व

रंगभरी एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. यह एकादशी विशेष रूप से भगवान विष्णु एवं भगवान शिव की पूजा के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है, और इसे “होली एकादशी” के नाम से भी जाना जाता है. रंगभरी एकादशी का आयोजन विशेष रूप से उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से किया जाता है, और इस दिन को होली से जुड़ा हुआ माना जाता है, क्योंकि यह रंगों और उल्लास का पर्व है. आइये जान लेते हैं रंगभरी एकादशी का महत्व, पूजा विधि, और इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताएं. 

रंग भरी एकादशी श्री हरि और शिव पूजन का खास समय 

रंगभरी एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है. इसे भगवान विष्णु एवं भगवान शिव के विशेष आशीर्वाद प्राप्त करने का दिन माना जाता है. यह दिन विशेष रूप से उन भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है, जो जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की कामना करते हैं. इस दिन व्रत रखने और विशेष पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

रंगभरी एकादशी का संबंध भगवान विष्णु की पूजा के साथ साथ महादेव की पूजा से है. इसे होली एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि यह होली के समय आती है. इस दिन लोग रंगों से भगवान के साथ होली खेलते हैं. धार्मिक दृष्टिकोण से यह दिन उपासना का दिन होता है. इस दिन व्रत रखने और विशिष्ट धार्मिक कार्यों को करने से समृद्धि, शांति और भगवान की कृपा प्राप्त होती है.

फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को वाराणसी में रंगभरी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. यह एक हिंदू त्योहार है जो होली से पांच दिन पहले रंगों के त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है. भारत के उत्तरी क्षेत्र में विशेष रूप से मनाया जाने वाला यह त्योहार आमतौर पर फाल्गुन शुक्ल एकादशी के रूप में जाना जाता है. यह एकमात्र ऐसी एकादशी है जो भगवान शिव को समर्पित है जबकि बाकी सभी एकादशी भगवान विष्णु से जुड़ी हैं. रंगभरी एकादशी के दिन रुद्राभिषेक, भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है.

रंगभरी एकादशी परंपरा

रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी, आंवला एकादशी या आमलका एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. आंवले के वृक्ष की इस दिन विधिवत पूजा की जाती है. माना जाता है कि इस दिन पूजनीय भगवान विष्णु इस पेड़ में निवास करते हैं. परंपराओं के अनुसार, भगवान शिव ने महाशिवरात्रि के दिन देवी पार्वती से विवाह किया था और कुछ दिनों के लिए पार्वती के मायके में रुके थे. दो सप्ताह बाद रंगभरी एकादशी के दिन महादेव विवाह के पश्चात पहली बार उन्हें अपने नगर काशी लेकर आए. रंगभरी एकादशी शिव और शक्ति के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाई जाती है. चूंकि यह देवी पार्वती की पहली यात्रा थी, इसलिए सभी देवता उत्सव में शामिल हुए और नवविवाहित जोड़े पर स्वर्ग से पंखुड़ियों और रंगों की वर्षा की. गौना की रस्म सभी रीति-रिवाजों के साथ एकादशी से कुछ दिन पहले शुरू होती है. दूल्हा एकादशी से एक दिन पहले श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत के घर पहुंचता है.

रंगभरी एकादशी के दिन हर साल इस दिन एक जुलूस निकाला जाता है. असीम ऊर्जा से भरपूर भक्त नृत्य करते हैं और रंगों से खेलते हैं. जुलूस टेढ़ी नीम स्थित महंत के घर से शुरू होता है और काशी विश्वनाथ मंदिर में समाप्त होता है. शिव और पार्वती की चांदी की मूर्तियों को पालकी पर मुख्य मंदिर में ले जाया जाता है जो कुछ गज की दूरी पर है. यह जोड़ा विशेष पूजा और प्रार्थना के लिए मुख्य मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करता है. जुलूस के साथ-साथ विश्वनाथ गली की संकरी गलियाँ लोगों और रंगों से भरी हुई हैं. रंगभरी एकादशी के अगले दिन, शिव अपने गणों, भूत-प्रेतों और श्मशान घाट पर रहने वाली आत्माओं के साथ उसी होली को मनाने के लिए मसान जाते हैं, जिसे मसान की होली कहा जाता है. इसके बाद, होली तक शहर में अगले छह दिनों तक उत्सव जारी रहता है.

रंगभरी एकादशी की पूजा विधि

रंगभरी एकादशी की पूजा विधि काफी सरल है, लेकिन इसके कुछ विशेष नियम होते हैं जिन्हें श्रद्धापूर्वक पालन किया जाता है. इस दिन के लिए भक्तों द्वारा किए जाने वाले कुछ मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:

व्रत शुरू करने से पहले भक्तों को पवित्र स्नान करने की सलाह दी जाती है. स्नान के बाद उबटन भी किया जाता है, जिसमें उबटन की सामग्री का उपयोग शरीर को शुद्ध करने के लिए किया जाता है. रंगभरी एकादशी के दिन व्रत रखना अनिवार्य माना जाता है. इस व्रत में अनाज, मांसाहार और शराब से परहेज करना चाहिए. यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन में व्यतीत करने का होता है. इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ शिव गौरी पूजा की जाती है. पूजा में विशेष रूप से श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ,  शिव चालिसा,  मंत्रों का जाप किया जाता है.

रंगभरी एकादशी की रात को जागरण किया जाता है. इस रात में भक्त भगवान के भजनों में डूबे रहते हैं, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है. यह रात्रि जागरण धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. व्रत के साथ ही दान करने की परंपरा भी है. भक्त इस दिन वस्त्र, अन्न, और अन्य सामान दान करते हैं 

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