यशोदा जयंती : संतान सुख के लिए किया जाता है यशोदा जयंती का व्रत

यशोदा जयंती का पर भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है, माता यशोदा भगवान श्री कृष्ण की माता के रुप में सदैव ही पूजनीय रही हैं और उनके मातृत्व प्रेम की परिभाषा संतान और माता के प्रेम की परकाष्ठा को दर्शाती रही है. भारतीय संस्कृति और विशेषकर हिन्दू धर्म के एक अत्यंत महत्वपूर्ण पात्र के रूप में जानी जाती हैं. वे भगवान श्री कृष्ण की माता थीं और उनके जीवन से जुड़े अनेक प्रेरणादायक प्रसंग धार्मिक ग्रंथों में मिलते हैं.

यशोदा जी का जीवन मातृत्व का आदर्श है और उनके त्याग, स्नेह और श्रद्धा का भी अद्वितीय उदाहरण है. यशोदा जयंती का उत्सव मथुरा से जुड़े तमाम क्षेत्रों में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता रहा है. इस दिन माता यशोदा जी का पूजन होता है और साथ ही श्री कृष्ण के प्रति भक्ति भाव के साथ इस दिन को मनाते हैं.

यशोदा जयंती की ब्रज में धूम
शास्त्रों के अनुसार यशोदा जी का जन्म ब्रज क्षेत्र के गोकुल गांव में हुआ था. उनके पति नंद बाबा थे, जो एक प्रमुख गोकुलवासी थे. यशोदा का जीवन एक सामान्य महिला का नहीं था, क्योंकि वे भगवान श्री कृष्ण की माँ थीं. यशोदा का जीवन मातृत्व और भक्ति के योग से सशक्त और प्रेरणादायक रूप में सामने आता है. भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय, यशोदा के पास भगवान की वास्तविक माता बनने का अवसर था, लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें कृष्ण की पालक मां बना दिया. यशोदा का प्रेम और उनकी ममता कृष्ण के प्रति अद्वितीय थी, और उनका जीवन भगवान कृष्ण के साथ बिताया हर पल एक प्रेम और भक्ति की मिसाल था. वे न केवल एक माँ थीं, बल्कि श्री कृष्ण की पहली गुरु भी थीं, जिन्होंने कृष्ण को प्रेम, निष्ठा और आस्था के साथ जीने का पाठ पढ़ाया.

यशोदा का ममतामयी प्रेम
यशोदा का ममता और प्रेम भगवान श्री कृष्ण के प्रति अद्वितीय था. उनकी गोदी में श्री कृष्ण का खेलना, उनका अपनी माँ के साथ स्नेहपूर्ण संवाद करना, उनके द्वारा यशोदा को “माँ” कहकर पुकारना और उनके साथ बिताए गए पल हिन्दू धर्म के अनमोल पल हैं. यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण को अपनी संतान माना, और उनके प्रति ऐसा स्नेह और आदर दिखाया, जो किसी भी आम माँ से भी कहीं अधिक था. उनका प्रेम न केवल एक माँ का था, बल्कि उन्होंने एक सच्चे भक्त की तरह कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति का प्रदर्शन किया.

यशोदा जयंती पूजन से मिलता है संतान सुख का आशीर्वाद
यशोदा जयंती न केवल एक धार्मिक अवसर है, बल्कि यह एक विशेष योग भी है जो संतान सुख को प्रदान करता है. यशोदा जयंती के दिन माता का पूजन श्री कृष्ण के साथ बाल स्वरुप में होता है. इस दिन निसंतान योग वालों को भी माता यशोदा के आशीर्वाद से संतान सुख प्राप्त होता है. भगवान के प्रति भक्ति और एक माँ का प्रेम, दोनों ही हमारे जीवन में शक्ति और शांति लाते हैं. यशोदा जयंती का पर्व जीवन में भक्ति, प्रेम और स्नेह को अपनाना चाहिए, ताकि हम आत्मिक और मानसिक शांति प्राप्त कर सकें.

यशोदा जयंती का पूजा महत्व
यशोदा जयंती का आयोजन विशेष रूप से उन लोगों द्वारा किया जाता है जो भगवान श्री कृष्ण के भक्त हैं और जो यशोदा के जीवन से प्रेरणा प्राप्त करते हैं. यह दिन माँ-बच्चे के रिश्ते को सम्मानित करने का दिन होता है, और साथ ही यह भी दर्शाता है कि भगवान और भक्त का संबंध किस प्रकार प्रेम और श्रद्धा से जुड़ा होता है. यशोदा जयंती पर श्रद्धालु विशेष रूप से कृष्ण की पूजा करते हैं और यशोदा के जीवन के आदर्शों का पालन करने का संकल्प लेते हैं.


यशोदा जयंती के दिन विशेष रूप से गोकुल व्रत और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जो कृष्ण और यशोदा की भक्ति में समर्पित होते हैं. इस दिन को विशेष रूप से भक्ति, प्रेम और त्याग के दिन के रूप में मनाया जाता है. इस अवसर पर लोग भजन, कीर्तन, कथा और पूजा का आयोजन करते हैं.

माता यशोदा का पुत्र कृष्ण के लिए वात्सल्य
यशोदा और श्री कृष्ण का संबंध केवल एक माँ और बेटे का ही नहीं था, बल्कि वह एक गहरे आध्यात्मिक बंधन का प्रतीक भी था. यशोदा के साथ कृष्ण का संबंध सच्चे प्रेम और विश्वास का था. एक प्रसिद्ध प्रसंग है जब श्री कृष्ण ने यशोदा के साथ माखन चुराया और उनकी ममता से उन्हें किसी भी प्रकार से बचाने का प्रयास किया. यशोदा ने कृष्ण को इस प्रकार दृष्टि से देखा कि उन्हें लगा जैसे वे स्वयं भगवान हैं, और फिर उन्होंने अपनी आँखों में कृष्ण की समस्त सृष्टि को देखा. यह दृश्य एक अत्यधिक अद्भुत था और यशोदा के ममता के अविभाज्य बंधन को दर्शाता है.


यशोदा का सच्चा प्रेम कृष्ण के प्रति किसी भी भौतिकवादी दृष्टिकोण से परे था. वे कृष्ण को अपनी संतान मानती थीं और भगवान होने के बावजूद उन्हें अपने गोद में खिलाती थीं. यह भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से एक अत्यंत गहरे बंधन को दर्शाता है.

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