द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर दूर होंगे सभी संकट

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से मनाया जाता है. हिंदू धर्म में चतुर्थी तिथि का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान गणेश जी क अपूजन होता है. चतुर्थी तिथि विशेष रूप से भगवान गणेश की पूजा के दिन के रूप में प्रसिद्ध है, जिसे गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है.

प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि को “संकष्टी चतुर्थी” का व्रत मनाया जाता है, जो विशेष रूप से भगवान गणेश के प्रति भक्तों के प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है. इसे द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन द्विज अर्थात ब्राह्मणों और साधु-संतों का विशेष सम्मान किया जाता है. इस व्रत का पालन विशेष रूप से मान सम्मान, पुण्य और समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी प्रभाव

संकष्टी चतुर्थी का व्रत उन सभी व्यक्तियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है जो जीवन में किसी न किसी प्रकार की परेशानियों या दुखों का सामना कर रहे हैं. यह व्रत व्यक्ति के जीवन से समस्त कष्टों को दूर करने के लिए किया जाता है. “संकष्टी” शब्द का अर्थ है कष्टों का निवारण. इस दिन का व्रत और पूजा विशेष रूप से उन भक्तों के लिए है जो किसी भी प्रकार की मानसिक, शारीरिक या आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहे होते हैं. इसके अलावा, संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश की पूजा पर आधारित है, जो विघ्नहर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं. इस दिन गणेश जी की पूजा से हर प्रकार की विघ्न-बाधाएं समाप्त होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भक्त प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करते हैं और शुद्धता का ध्यान रखते हुए पूजा स्थल को साफ करते हैं. इसके बाद, भक्त व्रत का संकल्प करते हैं और पूरे दिन का उपवास रखते हैं. इस दिन कोई भी अन्न-जल ग्रहण नहीं किया जाता. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा बड़े श्रद्धा भाव से की जाती है. विशेष रूप से, इस दिन गणेश जी को मोदक और दूर्वा अर्पित की जाती है. पूजा के दौरान भगवान गणेश के मंत्रों का जाप किया जाता है, जैसे “ॐ गं गणपतये नम:”. इस दिन गणेश जी के भजन और आरती गाना भी लोकप्रिय होता है.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का नाम इस कारण भी है क्योंकि इस दिन ब्राह्मणों और संतों का विशेष सम्मान किया जाता है. उन्हें भोजन कराया जाता है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है. उपवास रखने के बाद, शाम को चतुर्थी तिथि के समापन के समय व्रति पारण करते हैं, अर्थात उपवास खोलते हैं.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पौराणिक कथा
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है, जो भगवान गणेश के संबंध में है. कहा जाता है कि एक समय भगवान गणेश के भक्तों को कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ रहा था. तभी भगवान गणेश ने अपनी मां पार्वती से यह प्रार्थना की कि वह उनके भक्तों की सभी समस्याओं को दूर करने का कोई उपाय बताएं.

इस पर देवी पार्वती ने संकष्टी चतुर्थी के दिन उपवास करने और गणेश जी की पूजा करने का आदेश दिया. भक्त ने भगवान गणेश की उपासना की और उनका प्रिय मोदक अर्पित किया. भगवान गणेश ने उन भक्तों को आशीर्वाद दिया और उनके सभी कष्टों को समाप्त कर दिया. तभी से संकष्टी चतुर्थी का महत्व बढ़ गया और इसे श्रद्धा पूर्वक मनाया जाने लगा.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी महत्व
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का पालन शुभता देता है व्रत के दौरान उपवास से शरीर में होने वाली विषाक्तता बाहर निकलती है, जिससे स्वास्थ्य में सुधार होता है. इसके अलावा, इस दिन का उपवास आत्म-नियंत्रण की भावना को भी बढ़ावा देता है, जिससे मानसिक शांति और सुकून प्राप्त होता है. इसके अलावा, गणेश पूजा से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति मिलती है. गणेश जी की पूजा से जीवन में संतुलन और सुख-शांति का आगमन होता है.

संकष्टी चतुर्थी का व्रत विघ्न-बाधाओं को दूर करता है इस दिन ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराना शुभता को प्रदान करता है. माघ माह की द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी, विशेष धार्मिक उत्सव है, यह भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और कष्टों के निवारण का एक उत्तम साधन है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा और व्रत से जीवन में शुभता का संचार होता है, और साथ ही कल्याण होता है. इस व्रत का पालन करने से न केवल भक्तों को भौतिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि उनका मानसिक और आत्मिक विकास भी होता है.

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