थाई अमावस्या तमिल हिंदू व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण दिन है। थाई अमावसई या अमावस्या का दिन तमिल हिंदुओं के बीच बहुत बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है। इस दिन पूर्वजों की पूजा करते हैं और उपवास रखते हैं। तमिल कैलेंडर में थाई महीना उत्तरायण काल की शुरुआत का प्रतीक है और यह वह समय है जब सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ना शुरू करता है। वे इस समय को सभी आध्यात्मिक अभ्यास शुरू करने के लिए शुभ मानते हैं। थाई अमावसई वह दिन है जब तमिल लोग अपने पूर्वजों के लिए विशेष अनुष्ठान और परंपराओं के अनुसार प्रार्थना करते हैं और अपने पूर्वजों से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन पितरों की पूजा करने से नहीं चूकना चाहिए, क्योंकि अमावस्या का दिन हमारे पूर्वजों के मन को प्रसन्न करने, उनका आशीर्वाद प्राप्त करने और विभिन्न दोषों से मुक्ति पाने का शुभ दिन है। आइए जानें कि इस थाई अमावस्या के दिन हम किस समय पूजा करके पितरों का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
अमावस्या पूर्वजों की पूजा के लिए सबसे शुभ दिन है। ऐसा माना जाता है कि पूर्वज हमारे द्वारा किए गए प्रसाद, दान, पूजा को सीधे स्वीकार करने आते हैं, विशेष रूप से थाई अमावस्या और आदी अमावस्या जैसे महत्वपूर्ण अमावस्या के दिन। इसलिए, यदि हम इन महत्वपूर्ण अमावस्या के दिन उपवास करके अपने पितृ ऋण को पूरा करते हैं, तो पूर्वज सीधे हमारी प्रार्थना स्वीकार करते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं।
थाई अमावस्या 2025 मुहूर्त
थाई अमावस्या 29 जनवरी, 2025 को
अमावसाई तिथि प्रारम्भ – जनवरी 28, 2025 को 07:35 पी एम बजे
अमावसाई तिथि समाप्त – जनवरी 29, 2025 को 06:05 पी एम बजे
थाई अमावस्या के दिन सुबह किसी तालाब, नदी या समुद्र तट पर पितरों को तर्पण और अमावस्या पूजा करनी चाहिए। अमावस्या के दिन सूर्य को साक्षी मानकर पितरों को तर्पण देने तथा शाम को चंद्रमा को साक्षी मानकर दीप जलाने की परंपरा है।
थाई अमावस्या और ज्योतिष महत्व
थाई अमावस्या, हिंदू पंचांग के अनुसार, चंद्रमास की आखिरी तिथि होती है। यह दिन विशेष रूप से हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन को पवित्र माना जाता है और कई धार्मिक अनुष्ठान एवं पूजा-अर्चना की जाती है। ज्योतिष अनुसार अमावस्या का दिन विशेष रूप से उपवास, ध्यान और पितरों की पूजा करने के लिए जाना जाता है।
अमावस्या का दिन हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। इसे “माँ काली” की पूजा, पूर्वजों की तर्पण, पितरों की पूजा और विशेष रूप से श्राद्ध कार्यों के लिए जाना जाता है। यह दिन आत्मिक शांति और धार्मिक उन्नति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि अमावस्या के दिन पितृलोक में स्थित पूर्वजों को तर्पण करना, उनका आशीर्वाद प्राप्त करना और उनके पुण्य कर्मों को स्वीकार करना बहुत फायदेमंद होता है।
इस दिन विशेष रूप से तर्पण या श्राद्ध कर्म किया जाता है, जो पितरों की आत्मा की शांति और उनके उद्धार के लिए होता है। इस दिन श्रद्धालु घरों में पितरों के नाम पर विशेष रूप से जल, तिल, जौ, तर्पण सामग्री अर्पित करते हैं, ताकि उनके पापों का नाश हो और वे स्वर्ग में सुखी रहें। इसके अलावा, यह दिन विशेष रूप से देवी-देवताओं की पूजा के लिए भी उपयुक्त होता है, क्योंकि अमावस्या का दिन भगवान शिव, माता पार्वती, और भगवान यमराज की पूजा के लिए भी प्रसिद्ध है।
थाई अमावस्या का महत्व और प्रभाव
अमावस्या का दिन विशेष रूप से शांति, समृद्धि, और मानसिक शुद्धता प्राप्त करने का अवसर होता है। इस दिन उपवास और ध्यान करना व्यक्ति को मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है और आत्मा की शुद्धि होती है। यही कारण है कि इस दिन लोग साधना, ध्यान, और प्रार्थना में समय बिताते हैं। कई लोग इस दिन व्रत रखते हैं और विशेष रूप से पवित्र नदियों में स्नान करने जाते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अमावस्या के दिन स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
अमावस्या का प्रभाव केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि भौतिक दृष्टिकोण से भी देखा जाता है। यह दिन खासतौर पर शांति और बल के लिए माना जाता है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा का कोई रूप दिखाई नहीं देता, जिससे पृथ्वी पर विशेष नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम हो जाता है और शांति का वातावरण बनता है। अमावस्या के दिन किए गए अच्छे कार्यों का फल बहुत अधिक मिलता है।
अमावस्या पर विशेष पूजा
अमावस्या के दिन कई धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। सबसे प्रमुख अनुष्ठान पितृ पूजा और श्राद्ध है। पितृ पूजा में खासकर तिल, जल, गुड़, और अन्य पूजा सामग्री का उपयोग किया जाता है। इसे संतान और परिवार की सुख-शांति के लिए किया जाता है। इसके अलावा, कुछ स्थानों पर यह दिन विशेष रूप से देवी दुर्गा, काली, और शिव की पूजा के लिए होता है।
कुछ लोग इस दिन दीप जलाने की परंपरा भी निभाते हैं, खासतौर पर दीपावली के बाद आने वाली अमावस्या में। दीप जलाने से घर में अंधकार को दूर करने और सुख, समृद्धि का वास होने की कामना की जाती है। कुछ स्थानों पर लोग इस दिन विशेष रूप से गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करते हैं, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में आशीर्वाद का वास होता है।
अमावस्या के दिन विशेष रूप से तंत्र-मंत्र से जुड़ी गतिविधियाँ भी की जाती हैं। तंत्र-मंत्र का उपयोग विशेष रूप से अमावस्या के दिन नकारात्मक शक्तियों से बचने, सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने और जीवन की समस्याओं से निपटने के लिए किया जाता है। हालांकि, इसे बहुत ध्यान से और सही मार्गदर्शन के तहत ही करना चाहिए, क्योंकि यह एक संवेदनशील विषय होता है।