महातारा जयंती पूरे देश में उत्साह के साथ मनाई जाती है. इस वर्ष महातारा जयंती 17 अप्रैल 2024, के दिन मनाई जाएगी.चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष के दिन माँ तारा की उपासना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है. दस महाविद्याओं में से एक हैं भगवती तारा. देवी तारा को सूर्य प्रलय की अघिष्ठात्री देवी का उग्र रुप माना जाता है. जब चारों ओर निराशा ही व्याप्त हो तथा विपत्ति में कोई राह न दिखे तब मां भगवती तारा के रूप में उपस्थित होती हैं तथा भक्त को विपत्ति से मुक्त करती हैं.
देवी तारा शक्ति स्वरूपा हैं इनकी साधना से साधक को ज्ञान, विज्ञान और सुख-संपदा प्राप्त होती है. देवी तारा को तारिणी विद्या भी कहा जाता है. उग्र तारा, नील सरस्वती और एकजटा इन्हीं के रूप हैं. शत्रुओं का नाश करने वाली सौंदर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए सहायक मानी जाती हैं.
देवी महातारा उत्पत्ति | Origin of Devi Mahatara
सृष्टि से पहले चारों ओर घोर अन्धकार व्याप्त था न कोई तत्व था न ही कोई शक्ति थी, केवल एक अंतहीन अंधकार का साम्राज्य ही था और इसी अंधकार की देवी थी माँ काली, तब इस घोर अंधकार से एक प्रकाश की किरण उत्पन्न होती है जो तारा कही गई. यही तारा अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति है, ब्रह्माण्ड में जितने भी पिंड हैं सभी की स्वामिनी देवी तारा ही मानी जाती हैं, सृष्टि उत्पत्ति के समय प्रकाश के रूप में इनका प्रकाश हुआ इस कारण इन्हें देवी महातारा नाम प्राप्त हुआ.
देवी तारा को महानीला या नील तारा भी कहा जाता है इस नाम के पिछे एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार जब सागर मंथन हुआ तो सागर से अनेक वस्तुएं निकलती हैं और जब विष निकला, जो तीनों लोक संकट में पड़ गए. देव-दानवों, ऋषि मुनिओं ने भगवान शिव से रक्षा की गुहार लगाई, तब भगवान शिव ने उस विष को पी लिया,और विष को कंठ में ही रोक लिया किंतु विष के प्रभाव से उनका शरीर भी नीला हो गया, जब देवी ने भगवान को इस संकट में देखा तो वह भगवान शिव के भीतर प्रवेश करके विष को अपने प्रभाव से हीन कर देती हैं. किंतु विष के प्रभाव से देवी का शरीर भी नीला पड़ जाता है. तब भगवान शिव ने देवी को महानीला कह कर संबोधित किया, इस प्रकार देवी नीलतारा नाम से विराजमान हुईं.
देवी के तीन प्रमुख रूप हैं १)उग्रतारा २)एकाजटा और ३)नील सरस्वती देवी ब्रह्म की शक्ति है, देवी की प्रमुख सात कलाएं हैं जिनसे देवी, ब्रह्मांड सहित जीवों तथा देवताओं की रक्षा भी करती हैं. यह सात शक्तियां हैं परा, परात्परा, अतीता, चित्परा, तत्परा, तदतीता तथा सर्वातीता. देवी का ध्यान एवं स्मरण करने से भक्त को अनेक विद्याओं का ज्ञान प्राप्त होता है. देवी तारा के भक्त के बुद्धि बल का मुकाबला तीनों लोकों में कोई नहीं कर सकता, भोग और मोक्ष एक साथ देने में समर्थ होने के कारण इनको सिद्धविद्या कहा गया है
महातारा उपासना | Worship of Mahatara
देवी तारा की पूजा एवं मंत्रों का जप करने से वाक शक्ति, शत्रुनाश एवं मुक्ति की प्राप्ति होती है. देवी के मंत्रः “स्त्रीं हूं हृं हूं फट्” का उच्चारण करने से सभी का कल्याण होता है. इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप भक्त को सदगती प्रदान करता है. देवी तारा माता भगवती का ही एक रुप हैं इन्हीं के द्वारा सृष्टि प्रकाश मान है, देवी तारा जीवन शक्ति हैं.
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