कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत किया जाता है, पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा अर्चना की जाती है. करवा चौथ व्रत को करक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष करवा चौथ का त्योहार 20 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा. करवा चौथ का व्रत अपने पति के स्वास्थय और दीर्घायु के लिये किया जाने वाला व्रत है.
उत्तरी भारत में यह व्रत आज श्रद्धा व विश्वास की सीमाओं से आगे निकलकर, नये रंग में रंग गया है. करवा चौथ आज अपने प्रेमी, होने वाले पति और जीवन साथी के प्रति स्नेह व्यक्त करने का प्रर्याय बन गया है. आज यह केवल सुहागिनों का व्रत ही न रहकर, पतियों के द्वारा अपनी पत्नियों के लिये रखा जाने वाला पहला व्रत बन गया है.
करवा चौथ के व्रत ने बाजारीकरण को कितना लाभ पहुंचाया है, यह तो स्पष्ट है, परन्तु यह व्रत वैवाहिक जीवन को सफल और खुशहाल बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. क्योकि करवा़चौथ अब केवल लोक परम्परा न रहकर, भावनाओं के आदान-प्रदान का पर्व बन गया है.
करवा चौथ का पौराणिक महत्व | Mythological Importance of Karva Chauth
करवा चौथ पर्व का पौराणिक महत्व धर्म ग्रंथों में प्रतीत होता है. महाभारत से संबंधित कथानुसा अपने वनवास काल के दौरान अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं तथा दूसरी ओर पांडवों पर कई संकट आन पड़ते हैं यह सब देख द्रौपदी चिंता में पड़ जाती है और वह भगवान श्री श्रीकृष्ण से इन समस्याओं से मुक्ति पाने का उपाय जानने की प्रार्थना करती है. उनकी विनय सुन कृष्ण द्रौपदी से कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत रहे तो उन्हें अपने संकटों से मुक्ति मिल सकती है. कृष्ण के कथन अनुसार द्रौपदी ने पूर्ण निष्ठा भव के सतह करवा चौथ का व्रत किया. व्रत के फल स्वरुप पांडवों को पने कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है. अटूट बंधन व सौभाग्य का प्रतीक करवाचौथ व्रत आज के संदर्भ में भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की प्राचीन काल में रहा.
सरगी | Sargi
करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है. सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाती है. इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं. सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं. सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है. सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मीठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं. तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है. अपने व्रत को पूर्ण करती हैं.
करवा चौथ व्रत पूजन विधि | Karwa Chauth Vrat Pujan Vidhi
व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प करके करवा चौथ व्रत का आरंभ करना चाहिए. गेरू और पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित बनाया जाता है. पीली मिट्टी से माँ गौरी और उनकी गोद में गणेशजी को चित्रित किया जाता है. गौरी मां की मूर्ति के साथ शिव भगवान व गणेशजी की को लकड़ी के आसन पर बिठाते हैं. माँ गौरी को चुनरी बिंदी आदि सुहाग सामग्री से सजाया जाता है. जल से भरा हुआ लोटा रखा जाता है. रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाते हैं. गौरी-गणेश जी की श्रद्धा अनुसार पूजा की जाती है और कथा का श्रवण किया जाता है. पति की दीर्घायु की कामना करते हुए कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें करवा भेंट करते हैं. रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देते हैं इसके बाद पति से आशीर्वाद पाकर व्रत पूर्ण होता है.