अगहन माह एकादशी
अगहन माह में आने वाली एकादशी तिथि को बहुत ही शुभ और खास माना गया है. चतुर्मास में हर प्रबोधनी के पश्चात आने वाली ये एकादशी श्री हरि पूजन और एकादशी के जन्म को दर्शाती है. अगहन माह में आने वाली पहली एकादशी तिथि को एकादशी जन्म से भी संबंधित माना गया है. उत्पन्ना एकादशी का व्रत अगहन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है. इस व्रत का परम फल मोक्ष बताया गया है. इस दिन एकादशी का जन्म भी हुआ था इसी कारण इसे उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजा जाता है.
अगहन माह में आने वाली दूसरी एकादशी को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना गया है. इस एकादशी का समय अगहन माह के शुक्ल पक्ष में होता है. अपने नाम के अनुसार ये एकादशी मोक्ष का फल प्रदान करती है. जहां एक एकादशी उत्पन्न होती है वहीं दूसरी एकादशी मोक्ष की प्राप्ति को दर्शाती है. दोनों एकादशियों का प्रभाव जीवन को श्रेष्ठ परिणाम देने वाला होता है.
अगहन एकादशी धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
अगहन माह में आने वाली एकादशी का व्रत करने मात्र से व्यक्ति को पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. जीवन के सभी शुभ फल मिल जाते हैं. एकादशी के समय पर ब्राह्मणों को भोजन कराने का फल इस एकादशी के पुण्य के दसवें भाग के बराबर होता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. व्रत करने वाले व्यक्ति को दशमी की रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए. एकादशी के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में भगवान की पुष्प, दीप, धूपबत्ती और अक्षत से पूजा की जाती है. एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं तथा मृत्यु के पश्चात भगवान विष्णु की शरण मिलती है.
एकादशी के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान आदि नित्य कर्म करने चाहिए. स्नान के पश्चात भगवान विष्णु की दीप, धूप, नैवेद्य आदि से पूजा करनी चाहिए. रात्रि में दीपदान करना चाहिए. यह कार्य पूर्ण श्रद्धा से करना चाहिए. एकादशी की रात्रि में निद्रा का त्याग किया जाता है. एकादशी की रात्रि में भजन, कीर्तन या जागरण किया जाता है. एकादशी के दिन ब्राह्मणों को दान दिया जाता है तथा भूलों के लिए क्षमा मांगी जाती है. यदि संभव हो तो इस मास के दोनों पक्षों में एकादशी का व्रत करना चाहिए जिसके द्वारा आध्यात्मिक और धार्मिक प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त होता है.
अगहन उत्पन्ना एकादशी कथा
उत्पन्ना एकादशी व्रत प्राचीन काल में एक भयंकर राक्षस हुआ करता था. उसका नाम मुर था. उसने इंद्र आदि देवताओं को जीतकर उनके स्थान से नीचे गिरा दिया था. तब इन्द्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे मुर के अत्याचारों से उन्हें बचाएं तथा मृत्यु लोक में अपना जीवन व्यतीत करें. यह सुनकर भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे उस राक्षस को मारकर उनके प्राण बचाएंगे. भगवान विष्णु उनके साथ चल दिए, राक्षसों ने भगवान विष्णु पर अस्त्र-शस्त्र चलाना शुरू कर दिया. भगवान विष्णु का मुर के साथ कई वर्षों तक युद्ध चलता रहा, परंतु मुर को पराजित नहीं किया जा सका.
अंत में भगवान विष्णु विश्राम करने के लिए बद्रीकाश्रम की एक गहरी गुफा में चले गए. मुर भी भगवान विष्णु को मारने के लिए वहां पहुंच गया. उस समय गुफा में एक सुंदर कन्या प्रकट हुई तथा मुर से युद्ध करने लगी. उसने उसे धक्का देकर अचेत कर दिया. तथा उसका सिर काट दिया. जब भगवान विष्णु की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि किसी ने राक्षस को मार डाला है. कन्या ने बताया कि राक्षस तुम्हें मारने आ रहा था, इसलिए मैं तुम्हारे शरीर से उत्पन्न हुई तथा उसे मार डाला. भगवान विष्णु ने उसका नाम एकादशी रखा क्योंकि उसका जन्म एकादशी के दिन हुआ था.
अगहन मोक्ष एकादशी कथा
वैखानस नामक राजा ने जब अपने पितरों को कष्ट में देखा तो वह व्याकुल हो गया. वह ब्राह्मण के पास पहुंचा और स्वप्न सुनाया, उसने कहा कि पिता और पितरों की यह दशा देखकर उसे सभी सुख-सुविधाएं व्यर्थ लगने लगी हैं. तब ब्राह्मण ने उसे पर्वत नामक मुनि के बारे में बताया, जो भूत और भविष्य के बारे में जानते थे. उन्होंने राजा को मुनि से समाधान पाने का सुझाव दिया.
राजा मुनि के आश्रम पहुंचे, मुनि ने उन्हें बताया कि उनके पिता ने पिछले जन्म में कुछ गलत काम किए थे, इसलिए वे मृत्यु के बाद नरक में गए. यह सुनकर राजा ने मुनि से अपने पिता के उद्धार का उपाय बताने की प्रार्थना की. मुनि ने उसे अगहन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने को कहा, और राजा ने इस व्रत को भक्ति भाव के साथ किया एकादशी व्रत के पुण्य से राजा के पिता और पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति संभव हो जाती है.
अगहन एकादशी लाभ
इस माह में आने वाली एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के कई तरह के पाप दूर होते हैं. . मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने महाभारत के आरंभ होने से पहले अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था. इस एकादशी पर भगवान कृष्ण और गीता की पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं. ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दी जाती है. इस दिन धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भगवान दामोदर की पूजा की जाती है. मोक्ष एकादशी पूजा व्रत रखने वाले व्यक्ति को स्नान करने के बाद मंदिर में जाकर पूजा करनी चाहिए. भगवान के सामने व्रत का संकल्प लेते हुए मंदिर या घर पर ही विष्णु पाठ करना चाहिए. द्वादशी (एकादशी के एक दिन बाद) को ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने के बाद व्रत का समापन किया जाता है. व्रत की रात्रि में जागरण करने से व्रत से प्राप्त होने वाले पुण्यों में वृद्धि होती है. मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के पूर्वज, जो मृत्यु के पश्चात नरक में निवास कर रहे थे, स्वर्ग को प्राप्त होते हैं.