श्री तुलसी नामाष्टक स्तोत्रम्

कार्तिक मास में तुलसी पूजा का महात्म्य पुराणों में वर्णित है। इससे यह समझा जा सकता है कि इस माह में तुलसी की पूजा करने से पवित्रता का प्रमाण मिलता है। इस दिन पर किया जाने वाला तुलसी नामाष्टक स्त्रोत का पाठ भक्तों को सुख एवं समृद्धि प्रदान करता है. 

तुलसी पूजा के दौरान इस तुलसी नामाष्टक पूजा से मिलता है विशेष लाभ और सभी प्रकार के विशेष परिणाम.  तुलसी नामाष्टक स्तोत्र का पाठ तुलसी पूजा के दौरान करना उत्तम होता है यह दिन कार्तिक माह में किए जाने वाली तुलसी पूजा के दिन भी किया जाना उत्तम होता है. 

श्री तुलसी नामाष्टक स्तोत्रम्

वृंदा, वृन्दावनी, विश्वपुजिता, विश्वपावनी ।

पुष्पसारा, नंदिनी च तुलसी, कृष्णजीवनी ॥ 

एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम ।

य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत ॥

वृन्दायै नमः ।

वृन्दावन्यै नमः ।

विश्वपूजितायै नमः ।

विश्वपावन्यै नमः ।

पुष्पसारायै नमः ।

नन्दिन्यै नमः ।

तुलस्यै नमः ।

कृष्णजीवन्यै नमः ॥ 

शास्त्रों में कार्तिक मास को सर्वश्रेष्ठ महीनों में से एक माना गया है, स्कंद पुराण में इसकी महिमा बताई गई है। कार्तिक मास की एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का जन्म होता है इसलिए यह तिथि बहुत शुभ मानी जाती है। साथ ही इस माह में तुलसी और शालिग्राम की पूजा का भी बहुत महत्व है. भगवान विष्णु इनकी पूजा करते हैं। अनेक मतों के अनुसार प्राचीन काल में वृंदावन में तुलसी वन थे। तुलसी के सभी नामों में वृंदा और विष्णुप्रिया अधिक विशिष्ट माने गए हैं। भगवान विष्णु तुलसी जी के चरणों में शालिग्राम के रूप में निवास करते हैं। भगवान विष्णु के मस्तक पर तुलसीदल चढ़ाया जाता है।तुलसी आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। यह औषधीय गुणों से भरपूर है। तुलसी को जल चढ़ाना और शाम के समय तुलसी के नीचे दीपक जलाना बहुत अच्छा माना जाता है। तुलसी में देवी लक्ष्मी का वास माना जाता है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति कार्तिक मास में तुलसी के पास दीपक जलाता है, उसे लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

तुलसी पूजा नियम 

तुलसी के पौधे के चारों ओर खंभे बनाए जाते हैं, फिर उस पर तोरण सजाए जाते हैं। रंगोली से अष्टदल कमल बनाया जाता है। शंख, चक्र और गाय के पैर बनाए जाते हैं। तुलसी के साथ आंवले का पौधा या आंवले का फल रखा जाता है। तुलसी की पंचोपचार सर्वांग पूजा की जाती है। तुलसी माता की पूजा दशाक्षरी मंत्र से शुरू होती है। तुलसी के दशाक्षरी मंत्र- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृंदावन्ये स्वाहा का जाप किया जाता है। घी का दीपक और धूप दिखाई जाती है। सिंदूर, रोली, चंदन और नैवेद्य चढ़ाया जाता है। तुलसी को वस्त्र और आभूषणों से सजाया जाता है। लक्ष्मी अष्टोत्र या दामोदर अष्टोत्र का पाठ किया जाता है। तुलसी के चारों ओर दीप दान किया जाता है। एकादशी के दिन श्री हरि को तुलसी अर्पित करने से गौ दान के बराबर फल मिलता है यदि आप नए घर में तुलसी का पौधा, भगवान हरि नारायण की तस्वीर या मूर्ति और जल से भरा बर्तन लेकर प्रवेश करेंगे तो नए घर में धन की कभी कमी नहीं होगी।

देवउठनी एकादशी के दिन व्रत रखने वाली महिलाओं को प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में चौक बनाना चाहिए, उसके बाद भगवान विष्णु के चरणों का कलात्मक अंकन करना चाहिए तथा उसके बाद दिन की तेज धूप में विष्णु के चरणों को ढकना चाहिए। देवउठनी एकादशी के दिन रात्रि के समय सुभाषित स्त्रोत का पाठ करें, भागवत कथा व पुराण सुनें तथा भजन आदि गाएं। घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़ा व वीणा बजाएं। विभिन्न प्रकार के खेल, लीला व नृत्य आदि के साथ इस मंत्र का जाप करके भगवान को जगाया जाता है।

‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।

त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥’

‘उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।

गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥’

‘शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।’

विधिवत पूजा और तुलसी नामाष्टक पूजा 

पूजन हेतु भगवान के मंदिर या सिंहासन को नाना प्रकार की लताएं, फल, पुष्प तथा पूजा सामग्री आदि से सजाएं। आंगन में देवोत्थान का चित्र बनाएं, फिर फल, पकवान, सिंघाड़े, गन्ना आदि अर्पित करके टोकरी से ढक दें तथा दीपक जलाएं। विष्णु पूजा या पंचदेव पूजा विधान या रामार्चनचंद्रिका आदि के अनुसार भक्तिपूर्वक पूजन करना चाहिए तथा दीपक, कपूर आदि से आरती करनी चाहिए। इसके बाद इस मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करनी चाहिए।

‘यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।

तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥’

‘इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।

त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना॥’

इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।

न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन॥’

इसके अलावा प्रह्लाद, नारद, पराशर, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीष, शुक, शौनक तथा भीष्मादि भक्तों का स्मरण कर चरणामृत, पंचामृत तथा प्रसाद वितरित करें। तत्पश्चात भगवान को रथ में बैठाकर स्वयं खींचकर नगर, गांव अथवा गलियों में भ्रमण कराना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जिस समय भगवान वामन भूमि पर तीन कदम चल रहे थे, उस समय दैत्यराज बलि ने वामनजी को रथ में बैठा लिया तथा स्वयं रथ चलाया। ‘समुत्थिते ततो विष्णु क्रियाः सर्वः प्रवर्तयेत्’ के अनुसार ऐसा करने से भगवान विष्णु योग निद्रा त्याग देते हैं तथा सभी प्रकार के कार्यों के लिए तत्पर हो जाते हैं। अंत में कथा सुनकर प्रसाद वितरित करें।

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