प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है. यह व्रत उपवासक को बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है.
31 अगस्त 2024 को शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत होगा
28 दिसंबर 2024 को शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत होगा
शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य है कि इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म-जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है तथा उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है.
शनि प्रदोष व्रत कथा | Shani Pradosh Vrat Katha
प्राचीन समय में किसी नगर में एक सेठ रहता था वह धर्म कर्म का पालन करने वाला तथा दान पुन्य़ करने वाला व्यक्ति था सभी उसका सम्मान किया करते थे सब कुछ होने के बावजूद वह दुखी ही रहता था क्योंकि उसके कोई संतान नहीं थी. अपनी व्यथा से परेशान दोनो पति -पत्नी तीर्थयात्रा पर जाने का निश्चय करते हैं. इस यात्रा के दौरान उनकी भेंट तपस्वी साधू से होती है. सेठ की भक्ति से प्रभावित हो साधु संतान प्राप्ति हेतु उन्हें शनि प्रदोष व्रत के विषय में बताते हैं, तीर्थयात्रा के बाद पति-पत्नी वापस घर लौट कर नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करते हैं व्रत के फल स्वरुप सेठ दंपति को संतान की प्राप्ति होती है .
शनि प्रदोष व्रत विधि | Shani Pradosh Vrat Vidhi
प्रदोष व्रत करने के लिये त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए. नित्यकर्मों से निवृत होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें. इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है और पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किये जाते है.
ईशान कोण की दिशा में किसी एकान्त स्थल को पूजा करने के लिये प्रयोग करना विशेष शुभ रहता है. पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, मंडप तैयार किया जाता है. इस मंडप में पद्म पुष्प की आकृति पांच रंगों का उपयोग करते हुए बनाई जाती है.
प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिये कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है. इस प्रकार पूजन क्रिया की तैयारियां कर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए. पूजन में भगवान शिव के मंत्र “ॐ नम: शिवाय” इस मंत्र का जाप करते हुए शिव को जल का अर्ध्य देना चाहिए.
इस व्रत का उद्धापन करने के लिये त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है. उद्धापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है.
हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है. और शान्ति पाठ किया जाता है. अंत में ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है.
शनि प्रदोष व्रत फल | Shani Pradosh Vrat Results
शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए. अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृद्धि होती है. शनि प्रदोष व्रत द्वारा संतान सुख प्राप्त होता है.
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